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UP Chunav: सपा को परिवारवाद के साये से बाहर निकालने में जुटे अखिलेश...या अपने रंग में रंग रहे?

समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव ने मुलायम सिंह यादव के परिवारवाद से खुद को अलग करना शुरू कर दिया है। विधानसभा चुनाव में उनका यह पैतरा साफ दिख रहा है।

Edited byराहुल पराशर | आईएएनएस 26 Jan 2022, 3:19 pm

हाइलाइट्स

  • समाजवादी पार्टी से परिवार की छाप को मिटाने की कोशिश कर रहे अखिलेश यादव
  • सैफई परिवार को यूपी चुनाव के मैदान में इस बार नहीं दी जा रही है तबज्जो
  • अखिलेश ने मुलायम के प्रति वफादारों को दे दिया बड़ा संकेत, बढ़ा है बिखराव
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लखनऊ: उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 (UP Election 2022) में समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) सत्ता पाने की कवायद में जुटी है। इसलिए सपा मुखिया अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) इस बार कोई भी रिस्क लेने के मूड में नहीं दिख रहे हैं। वह अपने परिवारवाद के लगे आरोप से भी छुटकारा पाना चाहते है। इसलिए वह अपने कुनबे से दूर रहकर रहकर अपने को वन मैन शो के रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं। सपा मुखिया अखिलेश यादव इन दिनों पार्टी को नए सिरे से गढ़ने में लगे है। इस कारण वह पार्टी में सैफाई कुनबे की छाप नहीं चाहते है।
अखिलेश यादव परिवारवाद को बढ़ावा देने के आरोप से खुद को बचाए रखने की पूरी कोशिश रहे हैं। उनका पूरा प्रयास विपक्षी दलों की ओर से परिवारवाद के मसले पर होने वाले हमलों से समाजवादी पार्टी और खुद को बचाना है। इसी कारण वह इस चुनाव में अकेले ही सारी सियासी बिसात बिछाने में जुटे हुए है। अभी तक जो सूची आयी है उसमें मुलायम परिवार से अखिलेश यादव करहल और उनके चाचा शिवपाल जसवंत नगर से चुनावी मैदान में ताल ठोक रहे हैं। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि मुलायम सिंह यादव जब राजनीति में आए तो उन्होंने सबसे पहले अपने कुनबे को तेजी से बढ़ाया और पदों पर भी रहे।

मुलायम परिवार पर लगता रहा है आरोप
मुलायम परिवार पर समाजवादी पार्टी में परिवारवाद स्थापित करने का आरोप लगता रहा है। यह दिखता भी है। वर्तमान समय में मुलायम सिंह मैनपुरी से सांसद है। अखिलेश आजमगढ़ से सांसद हैं तो चाचा रामगोपाल यादव राज्यसभा सांसद है। शिवपाल यादव जसवंतनगर विधानसभा से विधायक है। इसके अलावा मुलायम सिंह के बड़े भाई अभयराम सिंह के बेटे धर्मेंद्र यादव बदायूं संसदीय सीट से लोकसभा सदस्य रह चुके हैं। वे वर्ष 2019 में स्वामी प्रसाद मौर्य की बेटी संघमित्रा मौर्य से चुनाव हार गए थे। तेज प्रताप यादव मुलायम सिंह के बड़े भाई रतन सिंह के पोते हैं। वह भी मैनपुरी सांसद रह चुके हैं।

पत्नी भी रह चुकी हैं सांसद
पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश की पत्नी डिंपल यादव कन्नौज संसदीय सीट से सांसद रह चुकी है। वे भी वर्ष 2019 के चुनाव में भाजपा के सुब्रत पाठक से चुनाव हार गई थीं। रामगोपाल यादव के पुत्र अक्षय यादव भी फिरोजाबाद से सांसद रह चुके हैं। इसके आलावा शिवपाल के बेटे आदित्य यादव भी सक्रिय राजनीति में है। वह इस बार चुनाव भी लड़ना चाहते थे। इसके अलावा मुलायम के दूसरी पत्नी साधना के बेटे प्रतीक यादव की पत्नी हैं अपर्णा यादव। वह लखनऊ कैंट से चुनाव भी लड़ चुकी है। लेकिन इस बार टिकट की गुंजाइश न बन पाने के कारण भाजपा शामिल हो गई हैं।

सपा को अपने रंग में ढालने की कोशिश
सपा के एक वरिष्ठ नेता का कहना है कि राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव इन दिनों पार्टी को अपने रंग में ढालने में लगे है। वह कोई ऐसा कदम नहीं उठाना चाहते हैं, जिससे विरोधी उन पर उंगली उठा सकें। यही कारण वह अपने परिवार के लोगों को इस बार के चुनाव में ज्यादा दखल नहीं देने दे रहे हैं। सैफाई परिवार के कई लोग चुनाव लड़ना चाहते थे। लेकिन, उन्हें हरी झंडी नहीं मिली। चाहे शिवपाल के बेटे हों या रामगोपाल के अन्य रिश्तेदार। टिकट न मिलने से ही अपर्णा यादव और हरिओम यादव जैसे उनके सगे रिश्तेदार आज पार्टी में नहीं है। पार्टी को परिवाद की छवि से निकालने की पूरी कवायद में जुटे हैं।

मुलायम ने परिवार को आगे बढ़ाया
वरिष्ठ राजनीतिक विष्लेषक रतनमणि लाल कहते हैं कि सपा संस्थापक मुलायम सिंह ने अपने स्तर से परिवार के लोगों को पद और जिम्मेदारी देकर आगे बढ़ाया। परिवार के मुखिया होने के नाते उन्होंने यह कदम उठाया। अपने लोगों का जो उन्होंने जगह दी, उसमें अखिलेश, शिवपाल, रामगोपाल थे। इसके अलावा भाई, भतीजे और भांजे, सभी इसमें शामिल थे। अखिलेश एक मात्र वह व्यक्ति है जो मुलायम के उत्तराधिकारी होंने के नाते वह रीति दोहरा सकते हैं, जो मुलायम ने चलाई थी। मुलायम परिवार को संतुलित करके चलने वाले नेता थे। मुलायम ने जितने लोगों को पार्टी-पावर कॉरिडोर में जगह दी, उनकी निष्ठा मुलायम के प्रति आज भी है।

अब नेता जी उतने सक्रिय नहीं हैं। ऐसे में इन लोगों को अखिलेश पार्टी में जगह क्यों देंगे? रतनमणि कहते हैं कि सैफाई कुनबे से भी अखिलेश की दूरी दिख रही है। उनकी ओर से बहुत स्पष्ट संकेत है। वही लोग पार्टी में पद और जगह पाएंगे, जिनकी निष्ठा पार्टी और अखिलेश के प्रति होगी। जिनकी प्रतिबद्धता नेता जी के प्रति थी, वे पिछले 25 सालों से पद पा चुके हैं। अखिलेश अब कोई जिम्मेदारी उठाने को तैयार नहीं हैं। वे समाजवादी पार्टी को जमीनी स्तर पर अपनी पार्टी बनाना चाहते है। अब वह चाहते हैं कि पार्टी में अखिलेश की छाप हो।
लेखक के बारे में
राहुल पराशर
नवभारत टाइम्स डिजिटल में सीनियर डिजिटल कंटेंट क्रिएटर। पत्रकारिता में प्रभात खबर से शुरुआत। राष्ट्रीय सहारा, हिंदुस्तान, दैनिक जागरण, दैनिक भास्कर से होते हुए टाइम्स इंटरनेट तक का सफर। डिजिटल जर्नलिज्म को जानने और सीखने की कोशिश। नित नए प्रयोग करने का प्रयास। मुजफ्फरपुर से निकलकर रांची, पटना, जमशेदपुर होते हुए लखनऊ तक का सफर।... और पढ़ें

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