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UP Chunav 2022: भक्त प्रह्लाद नगरी में बीजेपी का दावा पहली बार मजबूत, मोदी लहर में भी BJP नहीं जीत पाई थी ये सीट... आज तक नहीं खिला कमल

Hardoi Sadar Assembly Constituency: हरदोई की सदर विधानसभा सीट दिग्गज नेता नरेश अग्रवाल का गढ़ रही है। यहां से एक बार उनके पिता बाबू श्रीश चन्द्र अग्रवाल और सात बार नरेश खुद व तीन बार उनके बेटे नितिन अग्रवाल ने जीत दर्ज की है।

guest Sapna-Misra | Lipi 18 Jan 2022, 4:45 pm
सुधांशु मिश्र, हरदोई
नवभारतटाइम्स.कॉम 00

यूपी के हरदोई जिले में भक्त प्रह्लाद की नगरी में बीजेपी का दावा पहली बार मजबूत स्थिति में दिखाई दे रहा है। यदि यहां की सदर विधानसभा सीट की बात की जाए तो इस सीट पर बीजेपी ने कभी भी जीत का स्वाद नहीं चखा है। यह सीट पूर्व राज्यसभा सदस्य नरेश अग्रवाल का गढ़ मानी जाती है। आंकड़े भी इस बात की गवाही देते हैं कि पिछले दस चुनाव में से सात पर लगातार नरेश अग्रवाल व तीन बार लगातार उनके बेटे नितिन अग्रवाल इस सीट पर जीत दर्ज करा चुके हैं।

सूबे की राजधानी लखनऊ से 110 किलोमीटर दूर हरदोई सदर रेलमार्ग और सड़क मार्ग से जुड़ा हुआ है। आजादी के बाद से उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों के इतिहास में देंखे तो 1951 में हरदोई (पूर्वी) नाम से पहचान वाली यह सीट आरक्षित श्रेणी में थी।

किन्दर लाल चुने गए थे पहले विधायक
पहले चुनाव में बाबू किन्दर लाल 21247 मत हासिल कर विधायक बने थे, लेकिन इसी वर्ष किन्दर लाल सांसद का चुनाव लड़े और विजयी हुए, जिसके बाद उन्होंने यह सीट छोड़ दी और उपचुनाव हुआ तो कांग्रेस के चंद्रहास 27160 मत विजयी हुए। वर्ष 1957 में कांग्रेस के बाबू बुलाकी राम, 1962 में कांग्रेस के महेश सिंह जीते। वर्ष 1967 में हुए चुनाव में धर्मगज सिंह निर्दलीय तौर पर लड़े और कांग्रेस प्रत्याशी को पछाड़कर जीते। 1969 में धर्मगज सिंह की पत्नी आशा कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में जीतीं। 1974 के चुनाव में कांग्रेस ने श्रीशचंद्र अग्रवाल को टिकट दिया और उन्होंने जीत हासिल की। 1977 में आपातकाल के बाद हुए चुनाव में कांग्रेस विरोधी लहर के बाद भी दिग्गज नेता धर्मगज सिंह ने यह सीट कांग्रेस की झोली में डाल दी।

1980 में शुरू हुआ नरेश का सफर
1980 में सदर सीट से कांग्रेस ने बाबू श्रीशचंद्र अग्रवाल के पुत्र नरेश अग्रवाल को मैदान में उतारा और यहां से ही उनकी जीत का सिलसिला शुरू हुआ, जो अब तक बरकरार है। 1985 में कांग्रेस ने विधायक नरेश अग्रवाल की जगह उमा त्रिपाठी को टिकट दिया और वह जीत गईं। वर्ष 1989 में कांग्रेस ने फिर उमा त्रिपाठी को ही टिकट दिया, लेकिन नरेश अग्रवाल ने कांग्रेस छोड़कर निर्दलीय चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। 1991 में कांग्रेस में नरेश की वापसी हुई और पार्टी ने उन्हें टिकट दिया और नरेश ने जीत हासिल की। वर्ष 1993 के चुनाव में सपा-बसपा ने गठबंधन से चुनाव लड़ा, लेकिन कांग्रेस के नरेश अग्रवाल गठबंधन पर भारी पड़े और रिकार्ड 41605 मत पाकर कर जीत हासिल की। 1996 में कांग्रेस-बसपा का गठबंधन हुआ, जिसमें नरेश अग्रवाल ने फिर जीत दर्ज की। वर्ष 2002 में हुए चुनाव में नरेश अग्रवाल पहली बार समाजवादी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़े और जीत दर्ज की।

2008 में नरेश ने बेटे को सौंप दी सीट
मई 2008 में नरेश अग्रवाल विधानसभा की सदस्यता और सपा छोड़ बसपा में चले गए और हरदोई सदर की सीट अपने एमबीए करके गुरुग्राम में नौकरी करने वाले अपने बेटे नितिन अग्रवाल को सौंप दी। उपचुनाव में बसपा से नितिन अग्रवाल 65533 वोट पाकर निर्वाचित हुए। 2012 में नितिन अग्रवाल को सपा ने उम्मीदवार बनाया तो उन्होंने 110063 मत हासिल कर रेकॉर्ड जीत हासिल की थी। वर्ष 2017 में समाजवादी पार्टी ने फिर नितिन अग्रवाल को प्रत्याशी बनाया। इस चुनाव में बीजेपी के राजबक्श सिंह को उतारा। मोदी लहर में यह मुकाबला बहुत कड़ा रहा। पीएम नरेंद्र मोदी ने बीजेपी प्रत्याशी को जिताने के लिए यहां बड़ी जनसभा की, लेकिन नरेश की व्यूह रचना के आगे बीजेपी के सभी दिग्गजों की रणनीति फेल हो गयी और नितिन अग्रवाल ने बेहद करीबी मुकाबले में 5109 मतों से जीत दर्ज की।

जातीय समीकरण
इस बार इस सीट पर 413133 वोटर हैं। इसमें 220645 पुरुष मतदाता,192464 महिला मतदाता हैं, जबकि 24 थर्ड जेंडर हैं। जातीय समीकरण देखें तो प्रमुख रूप से अनुसूचित जाति के मतदाताओं की संख्या लगभग 110000 है, जिनमें पासी मतदाता 60 हजार से अधिक। करीब चालीस हजार ब्राह्मण और 35 हजार ठाकुर मतदाता हैं। तीस हजार मुस्लिम और करीब 28 हजार वैश्य मतदाता हैं। इसके अलावा कुशवाहा और पाल समाज के भी करीब चालीस हजार मतदाता इस विधानसभा में है।

इस बार कमल खिलने के आसार
इस सीट पर न तो कभी जनसंघ सफल हुई और न ही भाजपा का कमल खिल पाया, लेकिन आगामी चुनाव में यह सीट पर कमल खिल सकता है, क्योंकि हरदोई के दिग्गज नेता नरेश अग्रवाल, जो इस सीट पर अजेय रहे हैं व उनके बेटे नितिन अग्रवाल भाजपा में हैं। नितिन लगातार तीन बार इस सीट को जीत कर हैट्रिक बना चुके हैं। हालांकि, इस बार का चुनाव नितिन के लिए बड़ी चुनौती है। साथ ही नरेश की प्रतिष्ठा भी दांव पर लगी है। कुल मिलाकर इस सीट पर इस बार चुनाव रोचक होने वाला है।

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