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Assembly Elections 2021 Analysis: दांव पर 824 सीटें, बस 64 जीती थी BJP, इस बार पलटेगी बाजी? समझिए पूरा 'वोट गणित'

Assembly Elections 2021 पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव की तारीखों (Vidhansabha Chunav 2021) का ऐलान हो गया है। पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, असम, केरल और पुडुचेरी में क्या चुनावी समीकरण हैं, आइए जानते हैं।

नवभारतटाइम्स.कॉम 3 Mar 2021, 7:58 am
पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है। पश्चिम बंगाल (West Bengal Assembly Elections 2021) में ममता बनर्जी के सामने बीजेपी की कड़ी चुनौती है। तमिलनाडु (Tamil Nadu Assembly Elections 2021) में जयललिता और करुणानिधि के निधन के बाद पहली बार हो रहे चुनाव अहम हैं। केरल (Kerala Assembly Elections 2021) में लेफ्ट के साथ-साथ राहुल गांधी की परीक्षा है। वहीं असम (Assam Assembly Elections 2021) में एनआरसी और सीएए के शोर के बीच सर्बानंद सोनोवाल के लिए मुकाबला आसान नहीं है। इसके साथ ही पुडुचेरी (Puducherry Assembly Elections 2021) के जरिए बीजेपी दक्षिण में अपना आधार बढ़ाने की पुरजोर कोशिश में है।
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Assembly Elections 2021 Analysis: दांव पर 824 सीटें, बस 64 जीती थी BJP, इस बार पलटेगी बाजी? समझिए पूरा 'वोट गणित'


पश्चिम बंगाल में कुल वोटर- 7.2 करोड़

जिन पांच राज्यों में चुनाव का ऐलान हुआ है, उनमें पश्चिम बंगाल का चुनाव काफी हाई वोल्टेज वाला है। तृणमूल कांग्रेस प्रमुख और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की बीजेपी से तीखी जुबानी जंग चल रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, अमित शाह से लेकर योगी आदित्यनाथ तक बीजेपी के अभियान को धार दे रहे हैं। ममता बनर्जी अपने राजनीतिक करियर की सबसे कठिन लड़ाई लड़ रही हैं। ममता ने इसे बंगाल अपनी बेटी चाहता है (बंगला निजेर मेयेके चाये) बनाम बाहरी की जंग के रूप में प्रचारित किया है। अगर यहां वह जीतती हैं तो एंटी बीजेपी पॉलिटिक्स की हीरो बनकर उभरेंगी। इससे न सिर्फ बंगाल बल्कि पूरे देश में उनका कद बहुत ऊंचा हो जाएगा। वहीं अगर बीजेपी जीतती है तो इसे बड़ी कामयाबी माना जाएगा। बंगाल में बीजेपी को ममता राजनैतिक और सांस्कृतिक रूप से बाहरी कहकर निशाना साधती रही हैं। आजादी के बाद से यहां हुए चुनावों में या तो लेफ्ट जीती है या फिर कांग्रेस और उससे निकली तृणमूल कांग्रेस। इस चुनाव में जो भी जीतेगा उसे 2024 के लोकसभा चुनाव में बढ़त रहेगी। पीएम मोदी और अमित शाह जिस तरह इस चुनाव के केंद्र में हैं, उससे लोगों की दिलचस्पी बढ़ गई है। वहीं लेफ्ट-कांग्रेस गठबंधन को यह साबित करना है कि बंगाल की राजनीति में वह पूरी तरह खत्म नहीं हुई है। 2019 के लोकसभा चुनाव में अलायंस सिर्फ दो सीटों पर जीता था, जबकि उसे सिर्फ 9 विधानसभा में बढ़त हासिल हुई थी।

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तमिलनाडु में कुल वोटर- 6.1 करोड़

यहां हर दूसरे चुनाव में सत्ता परिवर्तन का इतिहास रहा है। हालांकि 2016 में जयललिता ने इस तिलिस्म को तोड़ दिया था। 1984 के बाद पहली बार ऐसा हुआ था, जब किसी पार्टी ने लगातार दूसरी बार सत्ता हासिल की थी। स्विंग स्टेट के रूप में देखे जाने वाला तमिलनाडु ऐसा राज्य है, जहां कांग्रेस को कुछ संभावनाएं दिख रही हैं। यहां वह मुख्य विपक्षी पार्टी डीएमके की जूनियर पार्टनर है। डीएमके की अगुआई वाले अलायंस ने 2019 के लोकसभा चुनाव में राज्य की 39 में से 38 सीटें जीती थीं। विधानसभा चुनाव में भी गठबंधन फ्रंटरनर माना जा रहा है। लेकिन अम्मा यानी जयललिता की विरासत के सहारे चुनाव में उतर रही एआईएडीएमके भी रेस से बाहर नहीं है। बीजेपी के साथ पार्टी का गठबंधन है। चुनाव ना सिर्फ ईपीएस (पलनिसामी) और उनके सहयोगियों के लिए लिटमस टेस्ट है, बल्कि शशिकला के लिए भी परीक्षा है, जो जयललिता की विरासत की दावेदार हैं। जेल में बंद होने की वजह से वह तैयारियां नहीं कर सकीं लेकिन एआईएडीएमके को वह चोट पहुंचा सकती हैं। डीएमके में स्टालिन की लीडरशिप पर सवाल नहीं है लेकिन करुणानिधि की विरासत का असली दावेदार जताने के लिए उन्हें सीएम की कुर्सी पर कब्जा करना जरूरी है। बीजेपी यहां कमजोर है लेकिन एआईएडीएमके के सहयोग से वह कुछ बढ़त की उम्मीद कर रही है।

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केरल में कुल वोटर- 2.6 करोड़

कांग्रेस से लोकसभा चुनाव में पिछड़ने के बाद एलडीएफ (वाम मोर्चा) ने स्थानी निकाय चुनाव में जीत के साथ जोरदार वापसी की है। ऐसी धारणा बनी है कि जमात के साथ कांग्रेस के गठबंधन से लेफ्ट के आधार वोटों में सेंध लगी है। इसके साथ ही लेफ्ट अपनी अंदरूनी समस्याओं से जूझ रहा है। लेफ्ट को कांग्रेस से असली चुनौती मिल रही है। हालांकि बीजेपी भी पहले के मुकाबले कहीं बड़े रूप में अपनी मौजूदगी दर्ज करा रही है। वहीं लेफ्ट नेतृत्व को सबरीमाला मामले में भी चुनौती का सामना करना पड़ सकता है। उसे सबरीमाला और सीएए प्रदर्शनकारियों पर केस वापस लेने का नुकसान उठाना पड़ सकता है। पश्चिम बंगाल में तीसरे नंबर की पार्टी बनने के बाद केरल के किले को बरकरार रखना सीपीएम के लिए अहम है। इसके साथ ही राहुल गांधी के नेतृत्व के लिए भी यह चुनाव महत्वपूर्ण हैं। लोकसभा चुनाव में अमेठी में हार और वायनाड में जीत के बाद राहुल केरल में ज्यादा सक्रिय दिख रहे हैं।

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असम में कुल वोटर- 2.2 करोड़

2016 में असम में बीजेपी ने अभूतपूर्व जीत हासिल की थी। कभी कांग्रेस के गढ़ रहे इस राज्य में पार्टी अपनी पकड़ बरकरार रखने की उम्मीद कर रही है। असम गण परिषद (एजीपी) जैसी क्षेत्रीय पार्टियां भी मैदान में हैं। कांग्रेस को इस चुनाव में दिवंगत तरुण गोगोई की कमी खलेगी, जिन्हें केंद्र सरकार ने पद्म भूषण दिया है। कांग्रेस के साथ बदरुद्दीन अजमल की एयूडीएफ का गठबंधन मुस्लिम वोटों को बिखरने से रोकेगा और बीजेपी को कड़ी चुनौती का सामना करना होगा। कांग्रेस-एयूडीएफ गठबंधन सीएए के मुद्दे पर क्षेत्रीय अस्मिता के सहारे बीजेपी को निशाने पर लेंगे। बीजेपी को सीएम सर्बानंद सोनोवाल की निर्विवाद छवि और विकास कार्यों पर भरोसा है। पार्टी को उम्मीद है कि वह असम को अपने पास बरकरार रखेगी, जो पूर्वोत्तर में उसकी महत्वाकांक्षाओं के लिए बहुत अहम है।

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पुडुचेरी में कुल वोटर- 9.8 लाख

दक्षिण में अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए यह केंद्र शासित प्रदेश बीजेपी के लिए सबसे अच्छा मौका है। पार्टी कर्नाटक से आगे नहीं बढ़ पाई है। बीजेपी ने यहां एआईएनआरसी नेता और पूर्व सीएम एन रंगासामी के साथ गठबंधन किया है। उन्हें सादगीपसंद राजनेता माना जाता है। एआईडीएमके यहां तीसरी सहयोगी है। कांग्रेस और डीएमके के विधायकों के इस्तीफे के बाद उसकी उम्मीदें परवान चढ़ी हैं। इस्तीफों के बाद चुनाव के ऐलान से चंद दिनों पहले वी नारायणसामी की सरकार गिर गई थी। कांग्रेस और डीएमके को यहां कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ेगा। गठबंधन में एकता कायम नहीं रह सकी और कई विधायकों ने चुनाव से पहले पार्टी छोड़ दी। कांग्रेस के लिए राह मुश्किल है, वहीं विपक्ष रंगासामी की क्षेत्रीय पकड़ के सहारे चुनावी वैतरणी पार करने की कवायद में जुटा है।

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