नई दिल्ली
पहले चरण का लोकसभा चुनाव होने में अब एक महीने से भी कम वक्त रह गया है। लेकिन देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस इसकी तैयारियों में पीछे नजर आ रही है। नामांकन प्रक्रिया शुरू हो चुकी, कई क्षेत्रीय पार्टियों ने तो अपने उम्मीदवारों तक का ऐलान कर दिया है। लेकिन कांग्रेस के लिए कुछ राज्यों में अभी भी गठबंधन का पेच फंसा है। माना जा रहा है इस समस्या के पीछ वजह कांग्रेस का रवैया है। दूसरे दल पार्टी की उम्मीदें पूरी नहीं कर सकते। राजनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण राज्य बिहार के साथ-साथ पश्चिम बंगाल और दिल्ली में भी अबतक कुछ साफ नहीं हुआ है। समझिए तीनों राज्यों की स्थिति बिहार
यहां सीटों को लेकर लालू की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) और कांग्रेस एकमत नहीं हैं। आरजेडी नेता तेजस्वी यादव भले ही महागठबंधन के कायम होने का दावा कर रहे हैं लेकिन अंदरखाने में सीट को लेकर रार की खबरें हैं। बिहार की 40 लोकसभा सीटों में से कांग्रेस 15 चाहती थी और बाद में 11 तक आ गई। लेकिन आरजेडी 19 अपने पास रखकर कांग्रेस को सिर्फ 9 देने पर अड़ी हुई है।
दिल्ली
अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी (आप) दिल्ली में कांग्रेस से गठबंधन को लेकर आतुर है। लेकिन दिल्ली कांग्रेस में इसपर दो फाड़ नजर आती हैं। पार्टी में शीला दीक्षित और उनके सहयोगी इस गठबंधन के खिलाफ हैं। वहीं पार्टी के कुछ पूर्व अध्यक्ष और दिल्ली के कांग्रेस प्रभारी पीसी चाको इस गठबंधन की वकालत कर रहे हैं। एनसीपी नेता शरद पवार भी मध्यस्थ का रोल निभाते हुए दोनों पार्टियों के शीर्ष नेताओं से मिल चुके हैं। अब इसपर आखिरी फैसला राहुल गांधी को लेना है। अगर दिल्ली में गठबंधन हो जाता है तो आप हरियाणा, पंजाब और गोवा में भी इसपर विचार करने को तैयार दिखती है।
पढ़ें: आप से गठबंधन पर बंटी कांग्रेस, लेटर वॉर शुरू
पश्चिम बंगाल
ममता बनर्जी के गढ़ में कांग्रेस पार्टी लेफ्ट फ्रंट से गठबंधन चाहती है। लेकिन स्थिति अबतक साफ ही नहीं हो पाई। दोनों पार्टियों ने एक दूसरे से बातचीत का रास्ता तो खुला रखा है लेकिन अंतिम फैसला नहीं हो पा रहा। मंगलवार को लेफ्ट ने 32 सीटों पर उम्मीदवार उतार दिए लेकिन उन चार सीटों को खाली रखा जहां से 2014 में कांग्रेस को जीत मिली थी। लेकिन कांग्रेस ऐसे सीट शेयरिंग पर राजी नहीं है। प्रदेश नेताओं का कहना है कि यह 'दया' दिखाने जैसा है। हालांकि कांग्रेस ने भी फिलहाल सिर्फ 11 ही सीटों पर उम्मीदवारों का ऐलान किया है। वह 5 सीट लेफ्ट फ्रंट के लिए खाली छोड़ना चाहती है।
महाराष्ट्र, कर्नाटक में ही स्थिति साफ
फिलहाल कांग्रेस के लिए महाराष्ट्र और कर्नाटक में गठबंधन खतरे से बाहर है। झारखंड में भी समझौता हो चुका है लेकिन कुछ सीटों पर चर्चा बाकी है। वहीं जम्मू कश्मीर में भी बुधवार को नैशनल कॉन्फ्रेंस से समझौता हो गया है। वहां जम्मू और उधमपुर से कांग्रेस लड़ेगी। श्रीनगर से फारुख अब्दुल्ला लड़ेंगे। वहीं अनंतनाग और बारामुला में दोनों दलों के बीच 'दोस्ताना लड़ाई' होगी।
पहले चरण का लोकसभा चुनाव होने में अब एक महीने से भी कम वक्त रह गया है। लेकिन देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस इसकी तैयारियों में पीछे नजर आ रही है। नामांकन प्रक्रिया शुरू हो चुकी, कई क्षेत्रीय पार्टियों ने तो अपने उम्मीदवारों तक का ऐलान कर दिया है। लेकिन कांग्रेस के लिए कुछ राज्यों में अभी भी गठबंधन का पेच फंसा है। माना जा रहा है इस समस्या के पीछ वजह कांग्रेस का रवैया है। दूसरे दल पार्टी की उम्मीदें पूरी नहीं कर सकते। राजनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण राज्य बिहार के साथ-साथ पश्चिम बंगाल और दिल्ली में भी अबतक कुछ साफ नहीं हुआ है। समझिए तीनों राज्यों की स्थिति
यहां सीटों को लेकर लालू की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) और कांग्रेस एकमत नहीं हैं। आरजेडी नेता तेजस्वी यादव भले ही महागठबंधन के कायम होने का दावा कर रहे हैं लेकिन अंदरखाने में सीट को लेकर रार की खबरें हैं। बिहार की 40 लोकसभा सीटों में से कांग्रेस 15 चाहती थी और बाद में 11 तक आ गई। लेकिन आरजेडी 19 अपने पास रखकर कांग्रेस को सिर्फ 9 देने पर अड़ी हुई है।
दिल्ली
अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी (आप) दिल्ली में कांग्रेस से गठबंधन को लेकर आतुर है। लेकिन दिल्ली कांग्रेस में इसपर दो फाड़ नजर आती हैं। पार्टी में शीला दीक्षित और उनके सहयोगी इस गठबंधन के खिलाफ हैं। वहीं पार्टी के कुछ पूर्व अध्यक्ष और दिल्ली के कांग्रेस प्रभारी पीसी चाको इस गठबंधन की वकालत कर रहे हैं। एनसीपी नेता शरद पवार भी मध्यस्थ का रोल निभाते हुए दोनों पार्टियों के शीर्ष नेताओं से मिल चुके हैं। अब इसपर आखिरी फैसला राहुल गांधी को लेना है। अगर दिल्ली में गठबंधन हो जाता है तो आप हरियाणा, पंजाब और गोवा में भी इसपर विचार करने को तैयार दिखती है।
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पश्चिम बंगाल
ममता बनर्जी के गढ़ में कांग्रेस पार्टी लेफ्ट फ्रंट से गठबंधन चाहती है। लेकिन स्थिति अबतक साफ ही नहीं हो पाई। दोनों पार्टियों ने एक दूसरे से बातचीत का रास्ता तो खुला रखा है लेकिन अंतिम फैसला नहीं हो पा रहा। मंगलवार को लेफ्ट ने 32 सीटों पर उम्मीदवार उतार दिए लेकिन उन चार सीटों को खाली रखा जहां से 2014 में कांग्रेस को जीत मिली थी। लेकिन कांग्रेस ऐसे सीट शेयरिंग पर राजी नहीं है। प्रदेश नेताओं का कहना है कि यह 'दया' दिखाने जैसा है। हालांकि कांग्रेस ने भी फिलहाल सिर्फ 11 ही सीटों पर उम्मीदवारों का ऐलान किया है। वह 5 सीट लेफ्ट फ्रंट के लिए खाली छोड़ना चाहती है।
महाराष्ट्र, कर्नाटक में ही स्थिति साफ
फिलहाल कांग्रेस के लिए महाराष्ट्र और कर्नाटक में गठबंधन खतरे से बाहर है। झारखंड में भी समझौता हो चुका है लेकिन कुछ सीटों पर चर्चा बाकी है। वहीं जम्मू कश्मीर में भी बुधवार को नैशनल कॉन्फ्रेंस से समझौता हो गया है। वहां जम्मू और उधमपुर से कांग्रेस लड़ेगी। श्रीनगर से फारुख अब्दुल्ला लड़ेंगे। वहीं अनंतनाग और बारामुला में दोनों दलों के बीच 'दोस्ताना लड़ाई' होगी।