'जन्नत 2' से बॉलीवुड में धमाकेदार एंट्री करने वाली ईशा गुप्ता ने 'राज 3' और 'कमांडो 2' जैसी फिल्मों में भी जबरदस्त काम किया है। बीते दिनों रिलीज हुई वेब सीरीज 'आश्रम 3' में भी उनको दर्शकों का काफी प्यार मिला। भारतीय एथलीट पीटी उषा की बायोपिक की तमन्ना रखने वाली ऐक्ट्रेस आज भी ऑटो रिक्शे पर बेफिक्री से घूमने निकल पड़ती हैं। समाजसेवा से जुड़ी रहने वाली ईशा चाहती हैं कि देश में महिलाओं से छेड़छाड़ से संबंधित मामलों में कानून और सख्त किए जाएं। बीते दिनों वह लखनऊ आई थीं। इस दौरान उन्होंने हमसे अपने एक दशक के करियर, महिलाओं से जुड़े मुद्दों और इंडस्ट्री के भाषा विवाद पर दिल खोलकर बात की। आज भी मुंबई में ऑटो रिक्शे से घूमने निकल पड़ती हूं
इंडस्ट्री में एक दशक पूरा करने के बाद मैं खुद में काफी बदलाव महसूस करती हूं। यह सबके साथ होता कि जो हम कल थे, वो आज नहीं हैं। मेरे हिसाब से एक इंसान को हमेशा कुछ बेहतर करने के लिए बदलना चाहिए। बुरा इंसान नहीं बनना चाहिए। बदलाव को कभी-कभार लोग नकारात्मक तरीके से भी लेते हैं पर समय के साथ चेंज जरूरी है। मैं जो दस साल पहले हुआ करती थी, वो अब नहीं हूं। मैं खुद नहीं जानती कि मुझमें क्या बदलाव आए हैं लेकिन बिल्कुल सच है कि मैंने उस जिंदगी को खुलकर जिया है। मैंने खुद में पहले और अब में कोई फर्क नहीं किया है। तब मैं फ्रेशर थी और अब थोड़ा अनुभवी हो चुकी हूं। एक चीज सेम भी है कि मैं अब भी खुद को वही लड़की मानती हूं, जिसके पिता एयरफोर्स में थे। मैंने लॉ की पढ़ाई की है और अब मैं ऐक्टिंग कर रही हूं। मैं मुंबई में कई बार रिक्शे से घूमने निकल जाती हूं और जब कोई फोटो क्लिक करता है तो पता चलता है कि अच्छा मैं तो हीरोइन हूं।
पढ़ें: ईशा गुप्ता एक्टिंग नहीं बल्कि इस फील्ड में बनाना चाहती थीं करियर, बोलीं- बस एग्जाम क्लियर करना है
भाग्य का लिखा होकर रहता है
अब तक का सफर मैं बहुत अच्छा मानती हूं। अक्सर लोग मुझसे पूछते हैं कि आप ऐक्टर कैसे बनीं तो मैं उनसे यही कहती हूं कि भगवान आपके लिए जो लिखकर भेजता है, वो होकर रहता है। अगर मैं शायद इंडस्ट्री में नहीं होती तो अभी यूके में ही रह रही होती और वहां किसी फर्म में काम कर रही होती। यूके से ही मैंने लॉ की पढ़ाई की है। उन दिनों कुछ समय के लिए मैं छुट्टियां बिताने इंडिया (दिल्ली) आई थी। किसी ने अप्रोच किया कि अरे तुम तो मिस इंडिया रह चुकी हो फिर फिल्मों में क्यों नहीं ट्राई करती। वहीं से एक बात लगी और लगा कि मुझे कुछ करना चाहिए। फिर एक साल ऐक्टिंग और डांस सीखा। 'जन्नत-2' मेरा दूसरा ऑडिशन था और मुझे यह फिल्म मिल गई थी। खुश हूं कि उस फिल्म और गानों को दर्शकों ने खूब पसंद किया था।
सामाजिक मुद्दों पर बननी चाहिए फिल्में
मेरे हिसाब से फिल्में सभी मुद्दों पर बननी चाहिए क्योंकि हमारा सिनेमा हमेशा समाज को आईना दिखाने का काम करता आया है। खासकर, सामाजिक मुद्दों को जगह जरूर मिलनी चाहिए। फिल्में इसलिए बननी चाहिए क्योंकि इनके जरिए हम ज्यादा ऑडियंस तक पहुंच पाते हैं। इंसानी फितरत रही है कि जब कोई लेक्चर देता है तो हमें पसंद नहीं आता, लेकिन जब फिल्मों में मनोरंजन के साथ पेश किया जाता है तो वह लोगों के दिलों पर गहरी छाप छोड़ता है, जो कहीं-न-कहीं हमारी जिम्मेदारी बनती है कि हम अपनी ऑडियंस के साथ न्याय करें। गर्ल चाइल्ड पर फिल्में बननी चाहिए। सबसे जरूरी शिक्षा है तो इस मुद्दे पर भी सिनेमा में काम होना चाहिए।
अपराधियों में हो पुलिस और सरकार का खौफ
सिर्फ महिलाओं ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया के सामने तमाम दिक्कतें हैं। महिलाओं को बराबरी का दर्जा भी दिया जा रहा है। भारत की बात करूं तो मेरे हिसाब से महिलाओं से छेड़छाड़ को लेकर कानून थोड़ा और सख्त होना चाहिए, ताकि अपराधियों में पुलिस और सरकार दोनों का खौफ बना रहे।
दोनों इंडस्ट्री के काम का तरीका अलग
भाषा विवाद को मैं नहीं मानती हूं। साउथ हो या नॉर्थ लेकिन है तो हमारे देश की ही भाषा। हमें यही देखना चाहिए कि हमारा भारतीय सिनेमा बहुत अच्छा कर रहा है। अभी मैं दो महीने अमेरिका में रहकर आई हूं। मुझसे वहां लोग आरआरआर मूवी के बारे में बात कर रहे थे। बात यह नहीं है कि हिंदी फिल्में फ्लॉप हो रही हैं और साउथ की फिल्में हिट हो रही हैं। एक भारतीय होने के नाते हमें इस बात का गर्व होना चाहिए कि भारतीय फिल्में इतना अच्छा कर रही हैं। फिर चाहे वह किसी भी भाषा में हो। काम का तरीका दोनों इंडस्ट्री का अलग है।
अच्छे रोल हो रहे हैं ऑफर
पीटी उषा पर अगर फिल्म बनेगी तो मैं उसे जरूर करना चाहूंगी। मैं स्कूल के दिनों में एथलीट रह चुकी हूं। अब भी मैं दौड़ती हूं। मुझे हमेशा से ही अच्छे रोल करने को मिले हैं। आगे भी ऐसे ही बढ़िया किरदार ऑफर हो रहे हैं। अगले साल मेरी 'आश्रम-4' रिलीज होगी। इसके अलावा, एक साइकलॉजिकल थ्रिलर फिल्म भी पाइपलाइन में है। बाकी आगे देखते हैं कि किस्मत क्या-क्या काम करवाती है। (By-यश दीक्षित)
इंडस्ट्री में एक दशक पूरा करने के बाद मैं खुद में काफी बदलाव महसूस करती हूं। यह सबके साथ होता कि जो हम कल थे, वो आज नहीं हैं। मेरे हिसाब से एक इंसान को हमेशा कुछ बेहतर करने के लिए बदलना चाहिए। बुरा इंसान नहीं बनना चाहिए। बदलाव को कभी-कभार लोग नकारात्मक तरीके से भी लेते हैं पर समय के साथ चेंज जरूरी है। मैं जो दस साल पहले हुआ करती थी, वो अब नहीं हूं। मैं खुद नहीं जानती कि मुझमें क्या बदलाव आए हैं लेकिन बिल्कुल सच है कि मैंने उस जिंदगी को खुलकर जिया है। मैंने खुद में पहले और अब में कोई फर्क नहीं किया है। तब मैं फ्रेशर थी और अब थोड़ा अनुभवी हो चुकी हूं। एक चीज सेम भी है कि मैं अब भी खुद को वही लड़की मानती हूं, जिसके पिता एयरफोर्स में थे। मैंने लॉ की पढ़ाई की है और अब मैं ऐक्टिंग कर रही हूं। मैं मुंबई में कई बार रिक्शे से घूमने निकल जाती हूं और जब कोई फोटो क्लिक करता है तो पता चलता है कि अच्छा मैं तो हीरोइन हूं।
पढ़ें: ईशा गुप्ता एक्टिंग नहीं बल्कि इस फील्ड में बनाना चाहती थीं करियर, बोलीं- बस एग्जाम क्लियर करना है
भाग्य का लिखा होकर रहता है
अब तक का सफर मैं बहुत अच्छा मानती हूं। अक्सर लोग मुझसे पूछते हैं कि आप ऐक्टर कैसे बनीं तो मैं उनसे यही कहती हूं कि भगवान आपके लिए जो लिखकर भेजता है, वो होकर रहता है। अगर मैं शायद इंडस्ट्री में नहीं होती तो अभी यूके में ही रह रही होती और वहां किसी फर्म में काम कर रही होती। यूके से ही मैंने लॉ की पढ़ाई की है। उन दिनों कुछ समय के लिए मैं छुट्टियां बिताने इंडिया (दिल्ली) आई थी। किसी ने अप्रोच किया कि अरे तुम तो मिस इंडिया रह चुकी हो फिर फिल्मों में क्यों नहीं ट्राई करती। वहीं से एक बात लगी और लगा कि मुझे कुछ करना चाहिए। फिर एक साल ऐक्टिंग और डांस सीखा। 'जन्नत-2' मेरा दूसरा ऑडिशन था और मुझे यह फिल्म मिल गई थी। खुश हूं कि उस फिल्म और गानों को दर्शकों ने खूब पसंद किया था।
सामाजिक मुद्दों पर बननी चाहिए फिल्में
मेरे हिसाब से फिल्में सभी मुद्दों पर बननी चाहिए क्योंकि हमारा सिनेमा हमेशा समाज को आईना दिखाने का काम करता आया है। खासकर, सामाजिक मुद्दों को जगह जरूर मिलनी चाहिए। फिल्में इसलिए बननी चाहिए क्योंकि इनके जरिए हम ज्यादा ऑडियंस तक पहुंच पाते हैं। इंसानी फितरत रही है कि जब कोई लेक्चर देता है तो हमें पसंद नहीं आता, लेकिन जब फिल्मों में मनोरंजन के साथ पेश किया जाता है तो वह लोगों के दिलों पर गहरी छाप छोड़ता है, जो कहीं-न-कहीं हमारी जिम्मेदारी बनती है कि हम अपनी ऑडियंस के साथ न्याय करें। गर्ल चाइल्ड पर फिल्में बननी चाहिए। सबसे जरूरी शिक्षा है तो इस मुद्दे पर भी सिनेमा में काम होना चाहिए।
अपराधियों में हो पुलिस और सरकार का खौफ
सिर्फ महिलाओं ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया के सामने तमाम दिक्कतें हैं। महिलाओं को बराबरी का दर्जा भी दिया जा रहा है। भारत की बात करूं तो मेरे हिसाब से महिलाओं से छेड़छाड़ को लेकर कानून थोड़ा और सख्त होना चाहिए, ताकि अपराधियों में पुलिस और सरकार दोनों का खौफ बना रहे।
दोनों इंडस्ट्री के काम का तरीका अलग
भाषा विवाद को मैं नहीं मानती हूं। साउथ हो या नॉर्थ लेकिन है तो हमारे देश की ही भाषा। हमें यही देखना चाहिए कि हमारा भारतीय सिनेमा बहुत अच्छा कर रहा है। अभी मैं दो महीने अमेरिका में रहकर आई हूं। मुझसे वहां लोग आरआरआर मूवी के बारे में बात कर रहे थे। बात यह नहीं है कि हिंदी फिल्में फ्लॉप हो रही हैं और साउथ की फिल्में हिट हो रही हैं। एक भारतीय होने के नाते हमें इस बात का गर्व होना चाहिए कि भारतीय फिल्में इतना अच्छा कर रही हैं। फिर चाहे वह किसी भी भाषा में हो। काम का तरीका दोनों इंडस्ट्री का अलग है।
अच्छे रोल हो रहे हैं ऑफर
पीटी उषा पर अगर फिल्म बनेगी तो मैं उसे जरूर करना चाहूंगी। मैं स्कूल के दिनों में एथलीट रह चुकी हूं। अब भी मैं दौड़ती हूं। मुझे हमेशा से ही अच्छे रोल करने को मिले हैं। आगे भी ऐसे ही बढ़िया किरदार ऑफर हो रहे हैं। अगले साल मेरी 'आश्रम-4' रिलीज होगी। इसके अलावा, एक साइकलॉजिकल थ्रिलर फिल्म भी पाइपलाइन में है। बाकी आगे देखते हैं कि किस्मत क्या-क्या काम करवाती है। (By-यश दीक्षित)