ऐपशहर

मौत के डर ने जिंदगी के प्रति नजरिया बदल दिया: मनीषा कोइराला

कैंसर से लड़कर जिंदगी की जंग जीतने वाली बॉलिवुड की मशहूर ऐक्ट्रेस मनीषा कोइराला खुद को विजेता की तरह महसूस करती हैं। उनका कहना है कि इस बीमारी और इस दौरान घटी घटनाओं ने जीवन के प्रति उनके प्यार को कहीं अधिक बढ़ा दिया है। उनका कहना है कि अब वह लोगों और रिश्तों की अहमियत कहीं ज्यादा समझने लगी हैं...

नवभारत टाइम्स 11 Jun 2017, 10:05 am
90 के दशक में मनीषा कोइराला का जलवा था। उन्हें बेहतरीन अदाकारी के लिए जाना जाता था। 'दिल से' और 'बॉम्बे' जैसी फिल्मों में उनकी ऐक्टिंग को काफी सराहा गया। फिर अचानक उनका करियर डगमग होने लगा, जब एक-एक करके उनकी फिल्में फ्लॉप होने लगीं। साथ ही, उनकी सेहत भी बिगड़ने लगी। पता चला कि मनीषा को कैंसर हो गया है, लेकिन उन्होंने हौसला नहीं खोया। कैंसर से वह जमकर लड़ीं और अब करीब चार साल से वह कैंसर से पूरी तरह फ्री हैं। फिलहाल मनीषा ने 'डियर माया' नामक फिल्म से कमबैक किया है। वह ऐक्टर संजय दत्त की जिंदगी पर बन रही फिल्म में भी नजर आएंगी। कैंसर से संघर्ष और जिंदगी के फलसफे पर मनीषा की बातें गौर करने लायक हैं...
नवभारतटाइम्स.कॉम fear of death changed my thoughts about life
मौत के डर ने जिंदगी के प्रति नजरिया बदल दिया: मनीषा कोइराला


जिंदगी में कुछ भी तय नहीं
यह जिंदगी की अनिश्चितता ही है जो इसे नाजुक, लेकिन खूबसूरत बनाती है। करीब 20-25 साल पहले मैंने वह जिंदगी जी, जिसकी बहुत सारे लोग सिर्फ कल्पना कर पाते हैं। मैं हमेशा से एक मशहूर कलाकार बनना चाहती थी और इस खेल में टॉप पर रहना चाहती थी। मैं नेपाल की हूं, लेकिन इंडियन फिल्म इंडस्ट्री में सफल और पॉपुलर ऐक्ट्रेस बनने में मैं कामयाब रही। मैंने 5 अलग-अलग भाषाओं में करीब 80 फिल्में कीं। ईमानदारी से बताऊं तो कुछ क्वॉलिटी और बाकी क्वांटिटी। कई अवॉर्ड भी मिले। मैंने अपनी जिंदगी में जिन चीजों को पाने का सपना देखा, उससे भी ज्यादा चीजें मुझे मिल रही थीं। मेरे दोनों हाथ भरे हुए थे। मैं अपनी जिंदगी को इंजॉय कर रही थी, लेकिन जिंदगी ने मेरे लिए कुछ और ही प्लान कर रखा था। जल्द ही मैं एक ऐसे चक्रवात में फंस गई, जहां चीजें धीरे-धीरे हाथ से निकलने लगीं। शुरुआत में यह सब बहुत धीरे-धीरे हुआ मसलन मैंने एक खराब फिल्म साइन की, उसका खराब रिव्यू मिला। फिर एक और खराब फिल्म, फिर एक और...। लेकिन मैंने इसकी कतई परवाह नहीं की क्योंकि उस वक्त भी बहुत सारे अच्छे डायरेक्टर मुझे अपनी फिल्मों में लेना चाहते थे। ऐसे में मुझे लगता था कि मैं जब चाहूं, वापसी कर सकती हूं। लेकिन ऐसा हो न सका। मैंने एक खराब लाइफस्टाइल अपना ली थी, जिसकी वजह से गलत संगत में फंस गई। बेचैन होकर मैं एक खराब रिश्ते से निकलकर दूसरे में फंस रही थी। लाइफ बेकार हो रही थी, लेकिन मैं इस बात को स्वीकार नहीं करना चाहती थी। मुझे झटका तब लगा जब मेरी शादी टूट गई। मानो यही काफी नहीं था। इसके फौरन बाद मुझे खतरनाक टाइप के कैंसर से पीड़ित होने की जानकारी मिली।

मौत का खौफ
मेरा कैंसर काफी एक्स्ट्रीम तरह का था। डॉक्टर्स ने इलाज से पहले मुझसे हमेशा के लिए दिल को नुकसान होने, हमेशा के लिए सुनने की क्षमता खोने और हमेशा के लिए किडनी में दिक्कत होने के पेपर पर साइन कराए। यही नहीं, मुझसे कहा गया कि हो सकता है कि मेरे हाथ पूरी जिंदगी कांपते रहें। इसके बाद मैं डर गई। बहुत डर गई। मुझे डर लगने लगा कि ये मेरे आखिरी दिन हो सकते हैं। मैं 'डी' यानी डेथ शब्द का सामना कर रही थी। अकल्पनीय और अगाध मौत। मैंने सोचना शुरू किया, अगर ये मेरी जिंदगी के आखिरी दिन हों तो मैंने अभी तक की जिंदगी में क्या किया? क्या मैंने सही तरीके से जिंदगी जी और क्या मुझे उस पर फक्र है? इसके बाद मेरी सोच बदलने लगी।

समझ आई लोगों की अहमियत
फिर मैंने तय किया कि मैं अपनी हेल्थ का पूरा ख्याल रखूंगी। इसकी देखभाल करूंगी। मैंने लोगों और चीजों की अहमियत समझी। इसके बाद अपने परिवार के साथ मेरा रिश्ता बेहतर हो गया। एक वक्त था जब मेरे आसपास ढेरों दोस्त होते थे, लेकिन आज मेरे पास मुट्ठी भर दोस्त हैं। अच्छा यह है कि जो भी हैं, उनके साथ मेरी बहुत गहरी बॉन्डिंग है, ज्यादा मायने वाला रिश्ता है। मुझे समझ आ गया कि ज्यादा रिश्ते रखने से कहीं जरूरी सच्चे रिश्तों को बनाए रखना है।

कैंसर से लड़कर सीखा
कैंसर से लड़ाई के बाद मैंने जिदंगी के कुछ बेसिक नियम तलाशे। चूंकि ये नियम बहुत सिंपल हैं, इसलिए हम इन्हें नजरअंदाज कर देते हैं। लेकिन हमें ऐसा नहीं करना चाहिए। मैंने पाया कि यह जिंदगी एक नेमत है, एक गिफ्ट है और जो भी कुछ इस जिंदगी में मिलता है, वह भी एक गिफ्ट है। हमें इसकी हिफाजत करने और इसे सहेजकर रखने की जरूरत है। हमें इसका शुक्रगुजार होना चाहिए। दोनों हाथ पसारकर इसे गले लगाना चाहिए। जिंदगी के सफर में जो लोग हमें मिलते हैं, वे भी गिफ्ट ही हैं। इन दरम्यान मुझे आत्मविश्लेषण की अहमियत पता चली। मैंने जाना कि किस तरह हमें अपनी जिंदगी के सच के साथ जीना चाहिए। हमें खुद की तलाश करनी चाहिए। हम हर दिन सचाई और पैशन के साथ जी सकते हैं। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप किसी भी चीज के लिए कितना तैयार हैं। जिंदगी आपको सरप्राइज देने के लिए रास्ता तलाश ही लेती है, लेकिन चॉइस हमारी होती है। हम चाहें तो इसके शिकार हो जाएं, इसे अपने से बड़ा बना लें और उसके जरिए खुद को परिभाषित करने लगें या फिर इसे अपनी तरक्की का प्लेटफॉर्म बना लें। दरअसल, हर समस्या के पीछे एक सबक और संदेश छुपा होता है। यकीन मानिए, हम किसी भी खराब स्थिति को उल्लास और उत्साह का मौका बना सकते हैं और ऐसा करने की समझ और हिम्मत हमारे अपने अंदर होती है।
Entertainmentकी ताजा खबरें, ब्रेकिंग न्यूज, अनकही और सच्ची कहानियां, सिर्फ खबरें नहीं उसका विश्लेषण भी। इन सब की जानकारी, सबसे पहले और सबसे सटीक हिंदी में देश के सबसे लोकप्रिय, सबसे भरोसेमंद Hindi Newsडिजिटल प्लेटफ़ॉर्म नवभारत टाइम्स पर
ट्रेंडिंग