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पहलाज निहलानी को पागलखाने में होना चाहिए: अनुराग कश्यप

हाल ही में अपनी विवादस्पद फिल्म 'उड़ता पंजाब' से चर्चा में रहे अनुराग कश्यप की अगली फिल्म...

नवभारत टाइम्स 25 Jun 2016, 9:35 am
रेखा खान, मुंबई
नवभारतटाइम्स.कॉम pahlaj nihlani should be in mental asylum
पहलाज निहलानी को पागलखाने में होना चाहिए: अनुराग कश्यप


हाल ही में अपनी विवादस्पद फिल्म 'उड़ता पंजाब' से चर्चा में रहे अनुराग कश्यप की अगली फिल्म 'रमन राघव' रिलीज हो गई है। इस खास मुलाकात में उन्होंने सेंसर बोर्ड के साथ विवाद और डार्क सब्जेक्ट वाली फिल्मों समेत कई मुद्दों पर बात की । पेश हैं इस बातचीत के कुछ दिलचस्प अंश:

'उड़ता पंजाब' को जिस तरह विवादों का और आपको जिस तरह के आरोपों का सामना करना पड़ा, उसके बाद क्या सिनेमा के प्रति आपके जुनून को आघात लगा?

बिल्कुल भी नही। मुझे शुरू से मालूम था कि मैं जिस तरह का सिनेमा बनाना चाहता हूं, मार्केट भी उसके पक्ष में नहीं था। मेरे घरवालों को भी नहीं लगता था कि इस तरह का सिनेमा हो सकता है। मुझे पता था कि इसमें वक्त लगेगा और लड़ाई लंबी है। सात साल की लड़ाई के बाद फाइनली फिल्में बाहर निकलनी शुरू हुईं। उसके बाद फिर दिक्कत नहीं आई। 'देव डी' हो या 'गुलाल', 'गर्ल्स इन यलो बूट', हो या 'गैंग्स ऑफ वासेपुर' या फिर 'अगली', मेरी किसी फिल्म में कोई दिक्कत नहीं आई और सेंसर में भी कोई काटा-छांटी नहीं हुई। मुझे लगा कि वे अब मेरे बनाए हुए सिनेमा को समझने लगे हैं। दूसरी फिल्मों के लिए भी दरवाजे खुले, मगर फिर पिछले दो साल ऐसे आए, जैसे काली आंधी आई हो। हर फिल्म एक इकलौते आदमी की मनमानी का शिकार होने लगी। ऐसे में किसी न किसी को तो खड़ा होना था, सो हम खड़े हो गए।

आपको अंदाजा था कि स्थिति इतनी बदतर हो जाएगी और सेंसर से लड़ाई व्यक्तिगत आरोप-प्रत्यारोप तक पहुंच जाएगी?

हम जानते थे कि हालात बदतर होंगे, क्योंकि पहलाज जी आदमी ही ऐसे ही हैं। उनको समझ में नहीं आता कि वे बोल क्या रहे हैं। वह अपने अगले इंटरव्यू में पिछले इंटरव्यू को नकार देते हैं। वे खुद को कॉन्ट्राडिक्ट करते हैं। हमारा मुद्दा एक ही था कि आप जब एक जिम्मेदार पद पर बैठे हो, तो फिर आप दादागिरी नहीं कर सकते। उन्होंने जब मुझ पर पैसे खाने का आरोप लगाया, तो मुझे बहुत हंसी आई। अगर मैं उन पर केस कर देता, तो उनके लिए साबित करना भारी पड़ जाता। मगर मैंने उनकी सीनियरिटी का लिहाज किया। मगर मुझे लगता है उन्हें पागलखाने में होना चाहिए। हम बस यही चाहते हैं कि वे हमारे ऊपर थोपे ना जाएं और सेंसर बोर्ड से हट जाएं।


इतनी लड़ाई लड़ने के बाद भी 'उड़ता पंजाब' रिलीज से ऐन पहले ऑनलाइन लीक हो गई। क्या वो आपके लिए शॉकिंग था?

शॉकिंग इसलिए था, क्योंकि यह ब्रीच ऑफ ट्रस्ट है, क्योंकि जो ट्रस्ट सर्कल था, जैसे कि डायरेक्टर, प्रड्यूसर, सेंसर बोर्ड आदि, उसी ट्रस्ट सर्कल से फिल्म लीक हुई। वो बहुत दुखदाई था। हम तो लोगों से रिक्वेस्ट ही कर सकते थे, जो हमने की। हमने यही कहा कि आप दो दिन रुक जाइए और फिर फिल्म देखिए। जहां तक बिजनस के प्रभावित होने की बात है, तो कई लोग कह सकते हैं कि फिल्म लीक नहीं हुई होती, तो पहले दिन का बिजनस 12 करोड़ होता, मगर यह भी कहा जा सकता है कि विवाद के कारण फिल्म का बिजनस 7 करोड़ से 10 करोड़ हो गया। हमारे लिए सबसे अच्छी बात यही है कि कोई डरा नहीं। जो पूरी इंडस्ट्री में कोई नहीं कर पाया, वो पहलाज जी ने कर दिखाया। उन्होंने पूरी इंडस्ट्री को एकजुट कर दिया।

'उड़ता पंजाब' बनाते समय आपने बॉक्स ऑफिस के गणित को ध्यान में नहीं रखा?

हमें लगा कि यह फिल्म बनानी जरूरी है। सभी जानते थे कि यह फिल्म कंट्रोल करके बनानी है। इसमें इतने सारे बड़े स्टार्स जुड़े और सभी ने अपनी कास्ट कंट्रोल की। फिल्म के सभी कलाकारों करीना, शाहिद, आलिया, दिलजीत आदि ने अपने मेहनताने से बहुत कम पैसे लिए। हर किसी को इस फिल्म पर विश्वास था। इस तरह की मुद्दे वाली फिल्म से आप कंटेंट ही काट दोगे, तो फिर बचेगा क्या? मगर कोर्ट के फैसले से सभी फिल्मकारों को ताकत मिली है।





अपनी फिल्मों के लिए आप हमेशा डार्क सब्जेक्ट ही क्यों चुनते हैं?

ऐसा क्यों होता है कि जो चीज हमें विचलित करती है, हम उसे नकारना चाहते हैं। एक आर्टिस्ट का काम होता है कि वह अपनी कला के जरिए लोगों को झकझोरे। हम लोग अपने समाज को चैलेंज ही नहीं करते। मुझे डार्क विषय पसंद हैं, मगर मैं डार्क और उदास तबीयत का बिल्कुल नहीं हूं। मैं बहुत खुशहाल आदमी हूं। जानता हूं कि कॉमेडी बनाने वाले अंदर से कितने डार्क तबीयत के होते हैं। मेरे अंदर जो है, मैं उसे उंडेल देता हूं। मैं अंदर से बहुत खाली रहता हूं। लोग ये सवाल क्यों नहीं करते कि हमारी फिल्मों में सबकुछ इतना फेक और गुलाबी क्यों है? मुझे लगता है कि 'उड़ता पंजाब' जैसी डार्क फिल्म से लोगों को फर्क पड़ेगा। जैसे 'अगली' के बाद लोगों के जेहन में बहुत सारे सवाल उठे थे।

'बॉम्बे वेलवेट' में क्या चूक हुई?

उस फिल्म में बहुत सारी गड़बड़ियां हुईं। हम शुरू से ही बैकफुट पर चले गए। मैंने कभी इतने पैसों से डील नहीं किया था। 'बॉम्बे वेलवेट' से मैंने सबक लिया कि अब ऐसा कुछ भी करना ही नहीं है, जिससे मैं प्रेशर में आ जाऊं।

आपकी बेटी को आपका सिनेमा कितना पसंद आता है?

मेरी बेटी ने हाल ही में मेरा सिनेमा देखना शुरू किया है। छह महीने पहले तक तो वह मेरी फिल्में देखती भी नहीं थी। उसने हाल ही में 'गैंग्स ऑफ वासेपुर' देखी और वो मुझ पर पूरी तरह फिदा हो गई।

इस तरह की विचलित करने वाली फिल्मों के बाद जब आप पूरी तरह से निचुड़ जाते हैं, तो खुद को तरोताजा कैसे करते हैं?

मैं इस तरह की फिल्में बनाकर खाली हो जाता हूं। उसके बाद मैं खूब घूमता हूं। पढ़ता हूं। फिर मुझे कोई चीज विचलित करती है और मैं उसे निकाल देता हूं। मेरे अंदर जो जहर आता है, मैं उसी को फिल्म में कन्वर्ट कर देता हूं।

बॉलिवुड में नवाज की उड़ान को आप कैसे देखते हैं?

नवाज की उड़ान को देखकर संतुष्टि भी होती है और खुशी भी। नवाज की वजह से कई लोग सपने देखने की हिम्मत करेंगे। नवाज की कहानी की सबसे बड़ी बात यह है कि उसे रातों-रात कुछ नहीं मिला। करीब 14 -15 साल के बाद तो लोगों ने उसे पहचानना शुरू किया। तो लोगों को इस बात का अहसास भी है कि अगर आपका सफर सच्चा है, तो आपको वक्त भी लगता है।



'रमन राघव' की कहानी कहना आपके लिए क्यों जरूरी था?

आप जब फिल्म देखेंगी, तो आपको यह बात समझ में आएगी। मुझे लगता है कि इस तरह की साइकी को भी समझना जरूरी है। हमारे देश में लोगों को पता ही नहीं है कि सीरियल किलर होता क्या है? एक शख्स, जो परिवार के सब लोगों को मार देता है, उस अपराध और क्रूरता के पीछे उसकीमानसिकता क्या होती है, यह जानना भी तो जरूरी है। हम लोग शुतुरमुर्ग हैं, जो आंखें हमेशा बंद रखना चाहते हैं। अपने आस-पास की कटुता और क्रूरता को देखना ही नहीं चाहते।

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