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सरकार की सलाह, चुनिंदा मामलों पर फोकस करे सुप्रीम कोर्ट

जजों की भर्ती को लेकर भारत के मुख्य न्यायाधीश टी.एस ठाकुर की भावुक अपील के कुछ दिनों बाद गुरुवार को मोदी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को सलाह दी। इसमें आत्म नियंत्रण और हाई कोर्ट के हर फैसले में दखल नहीं देने व SC के संघीय संवैधानिक मसले पर फोकस करने की बात कही गई है।

ईटी 29 Apr 2016, 1:50 pm
समन्यव राउतरे, नई दिल्ली जजों की भर्ती को लेकर भारत के मुख्य न्यायाधीश टी.एस ठाकुर की भावुक अपील के कुछ दिनों बाद गुरुवार को मोदी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को कुछ सलाह दी। इसमें सर्वोच्च अदालत से आत्म नियंत्रण, हाई कोर्ट के हर फैसले में दखल नहीं देने, कॉर्पोरेट्स पर मुकदमे की कीमत का बोझ डालने और उच्चतम न्यायालय के सिर्फ संघीय संवैधानिक मसले पर फोकस करने की बात कही गई है।
नवभारतटाइम्स.कॉम after cjis appeal center gives certain suggestions to supreme court
सरकार की सलाह, चुनिंदा मामलों पर फोकस करे सुप्रीम कोर्ट


हालांकि, अटॉर्नी जनरल ने राजधानी के विज्ञान भवन में आयोजित एक कार्यक्रम में CJI की ओर से जजों की भर्ती की मांग पर सीधा कुछ नहीं कहा। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट को अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट की तर्ज पर चुनिंदा संवैधानिक मसले पर फोकस करने की सलाह दी।

उन्होंने कहा, 'अपील के लिए नैशनल कोर्ट न तो व्यवहारिक है और न ही इसकी जरूरत है। सुप्रीम कोर्ट में अपील बुनियादी संवैधानिक अधिकार है। अगर आप 80 फीसदी मामलों में इस अधिकार की कटौती करते हैं, तो आप संविधान को पंगु करेंगे और लोगों को न्याय के अधिकार से वंचित करेंगे।' उन्होंने अदालत से लंबित मुकदमों की चुनौती से निपटने की खातिर खुद ही एक तंत्र तैयार करने का सुझाव दिया।

मुख्य न्यायाधीश ठाकुर, जस्टिस आर भानुमति और यू.यू ललित की खंडपीठ के सामने उन्होंने कहा, 'हमेशा कुछ मामलों में गड़बड़ी होगी, कुछ गलत फैसले होंगे। हाई कोर्ट के फैसलों से जुड़ी ऐसी सभी गलतियों को ठीक करने की इच्छा पर लगाम लगानी चाहिए। यह खुद से हारने जैसा मामला है।'

अटॉर्नी जनरल का कहना था कि अदालत को वैसे कॉर्पोरेट घरानों पर तगड़ी फीस लगानी चाहिए, जो अंतहीन मुकदमों में शामिल हैं। उन्होंने कहा कि हमारे सिस्टम में मुकदमा लड़ने वालों को सिर्फ वकीलों की फीस चुकानी पड़ती है। अटॉर्नी जनरल ने सलाह दी कि कॉर्पोरेट मामलों में हारने वाली पार्टी से अदालत का समय और साधन बर्बाद करने के लिए खर्च वसूला जाना चाहिए।

इस पर CJI ने पूछा कि क्या राजकीय तंत्र की तरफ से दायर मुकदमों पर भी यह बात लागू होगी। उन्होंने कहा, 'क्या यह बेहद गंभीर मसला नहीं है? क्या भारत सरकार इस पर गंभीरता से विचार कर रही है?' इस पर अटॉर्नी जनरल का कहना था कि अदालत इस तरह की बहस के लिए सही फॉरम नहीं है और CJI को यह मसला लॉ कमिशन को भेजना चाहिए।

हालांकि CJI अटॉर्नी जनरल की राय से संतुष्ट नहीं हुए और उन्होंने कहा कि इससे पहले लॉ कमिशन की तरफ से 2 बार जजों की संख्या में 6 से 7 गुना इजाफे का सुझाव दिया जा चुका है, ताकि मुकदमों की संख्या में अचानक से आई बाढ़ से निपटा जा सके। चीफ जस्टिस का कहना है कि बहरहाल वह इस मसले को बड़ी खंडपीठ को सौंप रहे हैं, जो इस पर विस्तार से विचार करेगी और सरकार को कुछ सुझाव देगी।

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