नई दिल्ली
नए कृषि कानूनों के मुद्दे पर किसानों और केंद्र सरकार में टकराव बरकरार है। विज्ञान भवन में किसानों और सरकार के बीच आज पांचवें दौर की बातचीत भी बेनतीजा रही। किसानों ने साफ कर दिया है कि वे अपनी मांगों से टस से मस नहीं होंगे। वे आखिर तक कृषि कानूनों को रद्द करने की मांग पर अड़े रहे। आखिर में उन्होंने सरकार के सामने 'हां या ना' का विकल्प रख दिया। कुछ देर तक कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने अपने दो साथियों और वरिष्ठ अधिकारियों के साथ अलग से बैठक की पर आखिर में बैठक में आम सहमति नहीं बन सकी। अब अगले दौर की वार्ता 9 दिसंबर को होगी। आज की बैठक करीब 2.30 बजे शुरू हुई थी जो शाम 7 बजे तक चली। बैठक से बाहर निकलकर कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने बताया कि आज किसान संघ के नेताओं के साथ चर्चा का पांचवां दौर पूरा हुआ। चर्चा बहुत अच्छे माहौल में हुई। हमने कहा है कि MSP जारी रहेगी।
MSP पर किसी भी प्रकार का खतरा और इस पर शंका करना बेबुनियाद है लेकिन फिर भी किसी के मन में कोई शंका है तो सरकार उसका समाधान करने के लिए पूरी तरह तैयार है। APMC एक्ट राज्य का है और राज्य की मंडी को किसी भी प्रकार से प्रभावित करने का इरादा न तो हमारा है और न वो कानूनी रूप से वो प्रभावित होती है। APMC और मजबूत हो इस दिशा में सरकार के लिए जो करना है, वह करने के लिए भी सरकार तैयार है। इसमें किसी को गलतफहमी है तो सरकार समाधान करने के लिए तैयार है। आज तमाम विषयों पर बात होती रही और हम लोग चाहते थे कि कुछ विषयों पर स्पष्टता से कुछ सुझाव हमें मिल जाएं लेकिन बातचीत के दौर में यह संभव नहीं हो सका। अब 9 तारीख को फिर से बैठक होगी।
कृषि मंत्री ने कहा कि सर्दी का सीजन है, कोविड का संकट है इसलिए जो बुजुर्ग और बच्चे हैं, उन्हें अगर यूनियन के नेता घर भेज देंगे तो वे सुविधा से रह सकेंगे।
केंद्र सरकार के साथ बैठक के बाद विज्ञान भवन से बाहर निकले किसान संघों के नेताओं ने कहा कि सरकार ने उनसे कहा है कि वे 9 दिसंबर को एक प्रस्ताव देंगे। उस पर किसान आपस में चर्चा कर लेंगे और उसी दिन सरकार के साथ बैठक में उस पर बात होगी।
@6.45 अपडेट
किसान संघ के नेताओं ने मंत्रियों से साफ कह दिया है कि वे सरकार के अंतिम फैसले का इंतजार करेंगे। इसके बाद कृषि मंत्री, कृषि सचिव समेत अन्य मंत्रियों की एक अन्य कमरे में बैठक हो रही है। किसान नेताओं ने हां या ना का विकल्प रखा है। उन्होंने कहा है कि वे शाम 7 बजे तक जवाब का इंतजार करेंगे।
@6 बजे अपडेट
किसान संगठनों के प्रतिनिधियों ने मीटिंग में केंद्र सरकार से साफ कहा कि वो अपनी मांगों से पीछे हटने वाले नहीं हैं। उन्होंने कहा, 'हमारे पास एक साल का राशन-पानी है। हम कई दिनों से सड़क पर हैं। अगर सरकार चाहती है कि हम सड़क पर ही रहें तो हमें कोई दिक्कत नहीं है। हम हिंसा का रास्ता नहीं चुनेंगे। इंटेलिजेंस ब्यूरो आपको सूचना देगा कि हम प्रदर्शन स्थल पर क्या करने जा रहे हैं। हम कॉर्पोरेट फार्मिंग नहीं चाहते हैं। इस कानून से सरकार फायदे में रहेगी ना कि किसान।' वहीं, केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर किसानों से अलग से बातचीत कर रहे हैं। उन्होंने किसानों से आग्रह किया कि वो प्रदर्शन में शामिल बुजुर्गों और बच्चों को घर भिजवा दें।
@5.30 बजे अपडेट
विज्ञान भवन में सरकार के साथ 5वें दौर की बैठक में भाग ले रहे किसान नेताओं ने साफ कह दिया है कि सरकार को हमारी मांगों पर एक फैसला लेना होगा वरना, हम बैठक से बाहर जा रहे हैं। उधर, समाचार एजेंसी ANI से जम्हूरी किसान सभा के महासचिव कुलवंत सिंह संधू ने कहा कि कनाडा की संसद में वहां के सांसदों ने यह मुद्दा उठाया था तो कनाडा के पीएम ने भारत सरकार को पत्र लिखा। अगर कनाडा की संसद में इस मामले पर चर्चा हो सकती है तो हमारी संसद में क्यों नहीं?
@5 बजे अपडेट
ब्रेक के बाद मीटिंग फिर से शुरू हो गई है। रिपोर्ट के मुताबिक बैठक में सरकार की ओर से कानूनों में संशोधन की बात रखी गई, पर किसान कानूनों को पूरी तरह से रद्द करने की मांग पर अड़े हैं।
@4 बजे अपडेट
सूत्रों के मुताबिक केंद्रीय मंत्री सोम प्रकाश ने किसान नेताओं से कहा कि सरकार पंजाब की भावनाओं को समझती है और उनकी चिंताओं का समाधान करने के लिए तैयार है। उधर, किसान नेता आज की बैठक में भी कृषि कानूनों को रद्द किए जाने की मांग पर कायम हैं।
आज भी किसानों ने अपना खाना खाया, जो कुछ देर पहले एक वाहन से उनके लिया विज्ञान भवन लाया गया था। किसान नेताओं ने लाइन में लग कर प्लेट में भोजन लिया और वहीं जमीन पर बैठकर खाने लगे।
अब आगे सरकार से कोई बातचीत नहीं: किसान
पांचवें दौर की बैठक के दौरान, किसानों के प्रतिनिधियों ने केंद्र सरकार से पिछली बैठक का पॉइंटवाइज जवाब देने की मांग की। इसपर सरकार राजी हो गई है। सरकार अपने जवाब किसान संगठनों के प्रतिनिधियों को उपलब्ध कराएगी। न्यूज एजेंसी ANI के मुताबिक, बैठक में किसानों ने कहा कि उन्हें इस पूरे विवाद का कोई हल/पक्का वादा चाहिए। उन्होंने कहा कि वे आगे चर्चा नहीं चाहते और यह भी नहीं जानना चाहते कि सरकार ने उनकी मांगों पर क्या फैसला किया है। इससे पहले, आजाद किसान संघर्ष समिति के पंजाब प्रमुख हरजिंदर सिंह टांडा ने ANI से बातचीत में कहा, "हम कानूनों का पूरी तरह से रोलबैक चाहते हैं। अगर सरकार हमारी मांग नहीं मानती तो हम धरना जारी रखेंगे।"
कुछ सुधारों को वापस ले सकती है सरकार
कृषि कानूनों पर मचे विवाद को देखते हुए केंद्र सरकार उसमें थोड़ा संशोधन कर सकती है। रॉयटर्स ने अधिकारियों के हवाले से जानकारी दी है कि सरकार समान अवसर बनाए रखने के लिए नई होलसेल मार्केट पर टैक्स लगाने पर विचार कर रही है। क्रेता और विक्रेताओं के बीच विवाद की स्थिति में सरकार किसानों को और ऊपरी अदालत में अपील की छूट दे सकती है।
सरकार को उम्मीद, आज निकल आएगा हल
किसान आंदोलन को विपक्ष का चौतरफा समर्थन मिलने से सरकार के लिए स्थिति विकट हो गई है। लेफ्ट दलों ने किसानों की मांगों को जायज ठहराया है। दूसरी तरफ, केंद्रीय कृषि राज्य मंत्री कैलाश चौधरी ने कहा कि आज की मीटिंग में किसानों के संदेहों को दूर किया जाएगा। उन्होंने कहा, "यह विपक्ष की राजनीति है। वे प्रदर्शन को और भड़का रहे हैं।' उन्होंने उम्मीद जताई कि आज दोपहर होने वाली बैठक में कोई न कोई हल निकल आएगा और किसान आंदोलन वापस ले लेंगे।
दिल्ली के बॉर्डर्स पर जारी है किसानों का प्रदर्शन
हजारों किसानों ने दिल्ली की सीमाओं पर डेरा डाल रखा है। सिंघु बॉर्डर हो या फिर नोएडा से लगा चिल्ला बॉर्डर, किसान सड़कें जाम कर बैठे हुए हैं। चिल्ला बॉर्डर पर समाजवादी पार्टी के एक नेता किसानों के लिए खाने-पीने का सामान लेकर पहुंचे थे। किसानों ने किसी राजनीतिक पार्टी से मदद नहीं लेने की बात कहकर उन्हें वापस लौटाया।
नए कृषि कानून को लेकर किसानों को हैं ये 8 डर:
1. किसानों का मानना है कि कृषि बाजार और कंट्रैक्ट फार्मिंग पर कानून से बड़ी कंपनियों को बढ़ावा मिलेगा। कृषि खरीद पर कंपनियों का नियंत्रण होगा। कृषि उत्पादों की सप्लाई और मूल्यों पर भी उनका कब्जा हो जाएगा। भंडारण, कोल्ड स्टोरेज, फूड प्रोसेसिंग और फसलों के ट्रांसपोटेशन पर भी एकाधिकार की आशंका। नए कानून से मंडी सिस्टम के खत्म हो जाएगा।
2. आवश्यक वस्तु कानून में संशोधन से जमाखोरी और ब्लैक मार्केटिंग को बढ़ावा मिलेगा। सभी शहरी और ग्रामीण गरीबों को बड़े किसानों और प्राइवेट फूड कॉर्पोरेशनों के हाथों में छोड़ देना होगा।
3. कृषि व्यापार कंपनियां, प्रोसेसिंग कंपनियां, होलसेलर्स, ऐक्सपोर्टर्स और बड़े रिटेलर्स अपने हिसाब से बाजार को चलाने की कोशिश करेंगे। इससे किसानों को नुकसान होगा।
4. कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग वाले कानून से जमीन के मालिकाना हक खतरे में पड़ जाएगा। इससे कॉन्ट्रैक्ट और कंपनियों के बीच कर्ज का मकड़जाल फैलेगा। कर्ज वसूलने के लिए कंपनियों का अपना मैकनिजम होता है।
5. किसान अपने हितों की रक्षा नहीं कर पाएंगे। 'फ्रीडम ऑफ चॉइस' के नाम पर बड़े कारोबारी इसका लाभ उठाएंगे।
6. इस कानून में विवादों के निपटारा के लिए SDM कोर्ट को फाइनल अथॉरिटी बनाया जा रहा है। किसानों की मांग है कि उन्हें उच्च अदालतों में अपील का अधिकार मिलना चाहिए।
7. कृषि अवशेषों के जलाने पर किसानों को सजा देने को लेकर भी किसानों में रोष है। किसानों का कहना है कि नए कानून में किसानों को आर्थिक तौर पर मजबूत किए बिना नियम बना दिए गए हैं।
8. प्रस्तावित इलेक्ट्रिसिटी (संशोधन) कानून के कारण किसानों को निजी बिजली कंपनियों के निर्धारित दर पर बिजली बिल देने को मजबूर होना पड़ेगा।
नए कृषि कानूनों के मुद्दे पर किसानों और केंद्र सरकार में टकराव बरकरार है। विज्ञान भवन में किसानों और सरकार के बीच आज पांचवें दौर की बातचीत भी बेनतीजा रही। किसानों ने साफ कर दिया है कि वे अपनी मांगों से टस से मस नहीं होंगे। वे आखिर तक कृषि कानूनों को रद्द करने की मांग पर अड़े रहे। आखिर में उन्होंने सरकार के सामने 'हां या ना' का विकल्प रख दिया। कुछ देर तक कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने अपने दो साथियों और वरिष्ठ अधिकारियों के साथ अलग से बैठक की पर आखिर में बैठक में आम सहमति नहीं बन सकी। अब अगले दौर की वार्ता 9 दिसंबर को होगी। आज की बैठक करीब 2.30 बजे शुरू हुई थी जो शाम 7 बजे तक चली।
MSP पर किसी भी प्रकार का खतरा और इस पर शंका करना बेबुनियाद है लेकिन फिर भी किसी के मन में कोई शंका है तो सरकार उसका समाधान करने के लिए पूरी तरह तैयार है। APMC एक्ट राज्य का है और राज्य की मंडी को किसी भी प्रकार से प्रभावित करने का इरादा न तो हमारा है और न वो कानूनी रूप से वो प्रभावित होती है। APMC और मजबूत हो इस दिशा में सरकार के लिए जो करना है, वह करने के लिए भी सरकार तैयार है। इसमें किसी को गलतफहमी है तो सरकार समाधान करने के लिए तैयार है। आज तमाम विषयों पर बात होती रही और हम लोग चाहते थे कि कुछ विषयों पर स्पष्टता से कुछ सुझाव हमें मिल जाएं लेकिन बातचीत के दौर में यह संभव नहीं हो सका। अब 9 तारीख को फिर से बैठक होगी।
कृषि मंत्री ने कहा कि सर्दी का सीजन है, कोविड का संकट है इसलिए जो बुजुर्ग और बच्चे हैं, उन्हें अगर यूनियन के नेता घर भेज देंगे तो वे सुविधा से रह सकेंगे।
केंद्र सरकार के साथ बैठक के बाद विज्ञान भवन से बाहर निकले किसान संघों के नेताओं ने कहा कि सरकार ने उनसे कहा है कि वे 9 दिसंबर को एक प्रस्ताव देंगे। उस पर किसान आपस में चर्चा कर लेंगे और उसी दिन सरकार के साथ बैठक में उस पर बात होगी।
@6.45 अपडेट
किसान संघ के नेताओं ने मंत्रियों से साफ कह दिया है कि वे सरकार के अंतिम फैसले का इंतजार करेंगे। इसके बाद कृषि मंत्री, कृषि सचिव समेत अन्य मंत्रियों की एक अन्य कमरे में बैठक हो रही है। किसान नेताओं ने हां या ना का विकल्प रखा है। उन्होंने कहा है कि वे शाम 7 बजे तक जवाब का इंतजार करेंगे।
@6 बजे अपडेट
किसान संगठनों के प्रतिनिधियों ने मीटिंग में केंद्र सरकार से साफ कहा कि वो अपनी मांगों से पीछे हटने वाले नहीं हैं। उन्होंने कहा, 'हमारे पास एक साल का राशन-पानी है। हम कई दिनों से सड़क पर हैं। अगर सरकार चाहती है कि हम सड़क पर ही रहें तो हमें कोई दिक्कत नहीं है। हम हिंसा का रास्ता नहीं चुनेंगे। इंटेलिजेंस ब्यूरो आपको सूचना देगा कि हम प्रदर्शन स्थल पर क्या करने जा रहे हैं। हम कॉर्पोरेट फार्मिंग नहीं चाहते हैं। इस कानून से सरकार फायदे में रहेगी ना कि किसान।' वहीं, केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर किसानों से अलग से बातचीत कर रहे हैं। उन्होंने किसानों से आग्रह किया कि वो प्रदर्शन में शामिल बुजुर्गों और बच्चों को घर भिजवा दें।
@5.30 बजे अपडेट
विज्ञान भवन में सरकार के साथ 5वें दौर की बैठक में भाग ले रहे किसान नेताओं ने साफ कह दिया है कि सरकार को हमारी मांगों पर एक फैसला लेना होगा वरना, हम बैठक से बाहर जा रहे हैं। उधर, समाचार एजेंसी ANI से जम्हूरी किसान सभा के महासचिव कुलवंत सिंह संधू ने कहा कि कनाडा की संसद में वहां के सांसदों ने यह मुद्दा उठाया था तो कनाडा के पीएम ने भारत सरकार को पत्र लिखा। अगर कनाडा की संसद में इस मामले पर चर्चा हो सकती है तो हमारी संसद में क्यों नहीं?
@5 बजे अपडेट
ब्रेक के बाद मीटिंग फिर से शुरू हो गई है। रिपोर्ट के मुताबिक बैठक में सरकार की ओर से कानूनों में संशोधन की बात रखी गई, पर किसान कानूनों को पूरी तरह से रद्द करने की मांग पर अड़े हैं।
@4 बजे अपडेट
सूत्रों के मुताबिक केंद्रीय मंत्री सोम प्रकाश ने किसान नेताओं से कहा कि सरकार पंजाब की भावनाओं को समझती है और उनकी चिंताओं का समाधान करने के लिए तैयार है। उधर, किसान नेता आज की बैठक में भी कृषि कानूनों को रद्द किए जाने की मांग पर कायम हैं।
आज भी किसानों ने अपना खाना खाया, जो कुछ देर पहले एक वाहन से उनके लिया विज्ञान भवन लाया गया था। किसान नेताओं ने लाइन में लग कर प्लेट में भोजन लिया और वहीं जमीन पर बैठकर खाने लगे।
अब आगे सरकार से कोई बातचीत नहीं: किसान
पांचवें दौर की बैठक के दौरान, किसानों के प्रतिनिधियों ने केंद्र सरकार से पिछली बैठक का पॉइंटवाइज जवाब देने की मांग की। इसपर सरकार राजी हो गई है। सरकार अपने जवाब किसान संगठनों के प्रतिनिधियों को उपलब्ध कराएगी। न्यूज एजेंसी ANI के मुताबिक, बैठक में किसानों ने कहा कि उन्हें इस पूरे विवाद का कोई हल/पक्का वादा चाहिए। उन्होंने कहा कि वे आगे चर्चा नहीं चाहते और यह भी नहीं जानना चाहते कि सरकार ने उनकी मांगों पर क्या फैसला किया है। इससे पहले, आजाद किसान संघर्ष समिति के पंजाब प्रमुख हरजिंदर सिंह टांडा ने ANI से बातचीत में कहा, "हम कानूनों का पूरी तरह से रोलबैक चाहते हैं। अगर सरकार हमारी मांग नहीं मानती तो हम धरना जारी रखेंगे।"
कुछ सुधारों को वापस ले सकती है सरकार
कृषि कानूनों पर मचे विवाद को देखते हुए केंद्र सरकार उसमें थोड़ा संशोधन कर सकती है। रॉयटर्स ने अधिकारियों के हवाले से जानकारी दी है कि सरकार समान अवसर बनाए रखने के लिए नई होलसेल मार्केट पर टैक्स लगाने पर विचार कर रही है। क्रेता और विक्रेताओं के बीच विवाद की स्थिति में सरकार किसानों को और ऊपरी अदालत में अपील की छूट दे सकती है।
सरकार को उम्मीद, आज निकल आएगा हल
किसान आंदोलन को विपक्ष का चौतरफा समर्थन मिलने से सरकार के लिए स्थिति विकट हो गई है। लेफ्ट दलों ने किसानों की मांगों को जायज ठहराया है। दूसरी तरफ, केंद्रीय कृषि राज्य मंत्री कैलाश चौधरी ने कहा कि आज की मीटिंग में किसानों के संदेहों को दूर किया जाएगा। उन्होंने कहा, "यह विपक्ष की राजनीति है। वे प्रदर्शन को और भड़का रहे हैं।' उन्होंने उम्मीद जताई कि आज दोपहर होने वाली बैठक में कोई न कोई हल निकल आएगा और किसान आंदोलन वापस ले लेंगे।
दिल्ली के बॉर्डर्स पर जारी है किसानों का प्रदर्शन
हजारों किसानों ने दिल्ली की सीमाओं पर डेरा डाल रखा है। सिंघु बॉर्डर हो या फिर नोएडा से लगा चिल्ला बॉर्डर, किसान सड़कें जाम कर बैठे हुए हैं। चिल्ला बॉर्डर पर समाजवादी पार्टी के एक नेता किसानों के लिए खाने-पीने का सामान लेकर पहुंचे थे। किसानों ने किसी राजनीतिक पार्टी से मदद नहीं लेने की बात कहकर उन्हें वापस लौटाया।
नए कृषि कानून को लेकर किसानों को हैं ये 8 डर:
1. किसानों का मानना है कि कृषि बाजार और कंट्रैक्ट फार्मिंग पर कानून से बड़ी कंपनियों को बढ़ावा मिलेगा। कृषि खरीद पर कंपनियों का नियंत्रण होगा। कृषि उत्पादों की सप्लाई और मूल्यों पर भी उनका कब्जा हो जाएगा। भंडारण, कोल्ड स्टोरेज, फूड प्रोसेसिंग और फसलों के ट्रांसपोटेशन पर भी एकाधिकार की आशंका। नए कानून से मंडी सिस्टम के खत्म हो जाएगा।
2. आवश्यक वस्तु कानून में संशोधन से जमाखोरी और ब्लैक मार्केटिंग को बढ़ावा मिलेगा। सभी शहरी और ग्रामीण गरीबों को बड़े किसानों और प्राइवेट फूड कॉर्पोरेशनों के हाथों में छोड़ देना होगा।
3. कृषि व्यापार कंपनियां, प्रोसेसिंग कंपनियां, होलसेलर्स, ऐक्सपोर्टर्स और बड़े रिटेलर्स अपने हिसाब से बाजार को चलाने की कोशिश करेंगे। इससे किसानों को नुकसान होगा।
4. कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग वाले कानून से जमीन के मालिकाना हक खतरे में पड़ जाएगा। इससे कॉन्ट्रैक्ट और कंपनियों के बीच कर्ज का मकड़जाल फैलेगा। कर्ज वसूलने के लिए कंपनियों का अपना मैकनिजम होता है।
5. किसान अपने हितों की रक्षा नहीं कर पाएंगे। 'फ्रीडम ऑफ चॉइस' के नाम पर बड़े कारोबारी इसका लाभ उठाएंगे।
6. इस कानून में विवादों के निपटारा के लिए SDM कोर्ट को फाइनल अथॉरिटी बनाया जा रहा है। किसानों की मांग है कि उन्हें उच्च अदालतों में अपील का अधिकार मिलना चाहिए।
7. कृषि अवशेषों के जलाने पर किसानों को सजा देने को लेकर भी किसानों में रोष है। किसानों का कहना है कि नए कानून में किसानों को आर्थिक तौर पर मजबूत किए बिना नियम बना दिए गए हैं।
8. प्रस्तावित इलेक्ट्रिसिटी (संशोधन) कानून के कारण किसानों को निजी बिजली कंपनियों के निर्धारित दर पर बिजली बिल देने को मजबूर होना पड़ेगा।