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मुस्लिम महिलाओं को मस्जिद में प्रवेश की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट में दंपती की याचिका

सुप्रीम कोर्ट में सबरीमाला फैसले का हवाला देते हुए पुणे के एक दंपती ने मस्जिदों में मुस्लिम महिलाओं के प्रवेश के लिए याचिका दाखिल की है। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि महिलाओं को मस्जिद में प्रवेश से रोकना लैंगिक भेदभाव है और यह मूल अधिकारों का हनन है।

टाइम्स न्यूज नेटवर्क 16 Apr 2019, 11:17 am

हाइलाइट्स

  • याचिकाकर्ता की दलील, कुरआन में या मोहम्मद साहेब ने इस तरह की पाबंदी का नहीं किया जिक्र
  • पुणे के दंपती ने SC में दी याचिका में कहा, 'यह लैंगिक भेदभाव, प्रार्थना के अधिकार से वंचित रखना'
  • याचिकाकर्ताओं ने इससे पहले कई मस्जिदों के प्रमुख के पास भी अपील की, लेकिन सुनवाई नहीं हुई
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नई दिल्ली
पुणे के मुस्लिम दंपती ने सुप्रीम कोर्ट में महिलाओं के मस्जिद में प्रवेश को लेकर याचिका दायर की है। दंपती ने सर्वोच्च अदालत में याचिका दायर कर मांग की है कि महिलाओं को मस्जिद में प्रवेश की अनुमति मिले और उन्हें प्रार्थना करने का भी अधिकार मिले। याचिकाकर्ता की दलील है कि पवित्र कुरआन और मोहम्मद साहेब ने महिलाओं के मस्जिद में प्रवेश का कभी विरोध नहीं किया।
'महिलाओं पर बैन मूल अधिकारों का हनन'
याचिकाकर्ता दंपती ने इससे पहले कई मस्जिदों में महिलाओं के प्रवेश के लिए अपील की थी, लेकिन सफलता नहीं मिलने पर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। याचिकाकर्ता का कहना है कि महिलाओं को मस्जिद में प्रवेश से रोकना गैर-कानूनी और गैर-संवैधानिक है और यह मूलभूत अधिकारों का उल्लंघन करता है।

महिलाओं को मस्जिद में प्रवेश नहीं देना लैंगिक भेदभाव

याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया, 'पुरुषों की ही तरह महिलाओं को भी अपनी धार्मिक मान्यता के आधार पर प्रार्थना का अधिकार है। इस वक्त उन मस्जिदों में तो महिलाओं को प्रवेश की अनुमति दी जाती है जिनका प्रबंधन जमात-ए-इस्लामी के अधीन है लेकिन सुन्नी मत के अन्य पंथों की मस्जिदों में महिलाओं का प्रवेश वर्जित है। जिन मस्जिदों में महिलाओं को प्रवेश की इजाजत है वहां भी उनके प्रवेश और निकास के लिए अलग दरवाजे हैं और इन मस्जिदों में उनके लिए अलग से नमाज पढ़ने की व्यवस्था होती है। इन मस्जिदों में भी पुरुषों के साथ नमाज की उनको अनुमति नहीं दी जाती है। इस तरह का लैंगिक भेदभाव नहीं होना चाहिए। पवित्र शहर मक्का में भी महिलाओं और पुरुषों के बीच इस तरह का कोई भेदभाव नहीं होता है।'

सबरीमाला फैसले का भी दिया हवाला

याचिकाकर्ताओं की यह भी दलील है कि कुरआन में स्त्री और पुरुष के आधार पर भेदभाव नहीं किया गया है। सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश की अनुमति दी है, इसी फैसले का हवाला देते हुए याचिकार्ताओं ने मस्जिदों में महिलाओं के प्रवेश की मांग की। याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि धर्म का हवाला देकर महिलाओं के प्रार्थना कर सकने के मूलभूत अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता।

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