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राशन की सेंट्रल सप्लाई जारी रखेगी सेना

सशस्त्र बलों में राशन की क्वॉलिटी पर विवाद के बाद इसकी सप्लाई के सेंट्रल सिस्टम पर सवाल खड़े किए जा रहे हैं। इसे पुराना और खर्चीला बताया जा रहा है। फिलहाल सेना की इसमें बदलाव की कोई योजना नहीं है

रमेश तिवारी | नवभारत टाइम्स 14 Feb 2017, 8:37 am
नई दिल्ली
नवभारतटाइम्स.कॉम central system will continue supplying military rations
राशन की सेंट्रल सप्लाई जारी रखेगी सेना

सशस्त्र बलों में राशन की क्वॉलिटी पर विवाद के बाद इसकी सप्लाई के सेंट्रल सिस्टम पर सवाल खड़े किए जा रहे हैं। इसे पुराना और खर्चीला बताया जा रहा है। फिलहाल सेना की इसमें बदलाव की कोई योजना नहीं है।

सेना चावल, गेहूं, दालों आदि जैसे ड्राई राशन की सप्लाई के लिए सेंट्रल सिस्टम पर निर्भर है। जो आइटम सेंट्रल खरीदारी में उपलब्ध नहीं होते, सिर्फ उन्हें विशेष प्रक्रिया के जरिये लोकल लेवल पर खरीदे जाने की इजाजत है।

रिपोर्टें आ चुकी हैं कि सेंट्रल सिस्टम में कुछ चीजें जरूरत से ज्यादा तो कुछ जरूरत से कम रह जाती हैं। इंडियन डिफेंस अकाउंट सर्विस में लंबा वक्त बिताकर रिटायर हुए अमित कौशिश का भी मानना है कि जिस तरह से ड्राई राशन की खरीद और और वितरण का काम हो रहा है, वह कुशल और बचत वाली व्यवस्था नहीं है। इसमें कई बार राशन खराब हो जाता है, बर्बाद हो जाता है।

क्वॉलिटी पर असर पड़ता है। अगर लागत कम हो और चीज सीधे पहुंचे तो क्वॉलिटी बेहतर होगी। फ्रेश चीजों की सप्लाई डिपो तक होती है। वहां भी सेना के लोगों को 10 किलो मीट लेना हो तो पूरी गाड़ी लेकर आते हैं। यह प्रभावी व्यवस्था नहीं है।

राशन का विवाद हाल में तब गहराया जब एक विडियो सामने आया, जिसमें खाने की क्वॉलिटी पर जवान की ओर से सवाल उठाया गया। तब रक्षा मंत्री को कहना पड़ा कि वह खुद खाने की क्वॉलिटी पर नजर रख रहे हैं।

सेना के सूत्रों का कहना है कि क्वॉलिटी की समस्या कहीं किसी एक जगह हो सकती है, लेकिन ज्यादातर सप्लाई हाई क्वॉलिटी की होती है। बड़ी मात्रा में खरीदारी के लिए सेंट्रल सिस्टम ही सस्ता है। फिर दूरदराज के हिस्से कई महीने तक कटे रहते हैं, उन इलाकों के लिए छोटे स्तर पर खरीदारी कठिन है।

राशन की सेंट्रल खरीद का यह ब्रिटिश सिस्टम 74 साल पुराना है। ब्रिटेन और दूसरे कई विकसित देशों की सेनाओं ने समय के साथ इस सिस्टम को छोड़ दिया। 2010 में सीएजी (महालेखापरीक्षक) भी राशन के सप्लाई चेन मैनेजमेंट पर सवाल उठा चुके हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक खाद्य वस्तुओं की खरीदारी पर हुए खर्च का 70 फीसदी हिस्सा उसे यूनिटों तक पहुंचाने पर खर्च हो गए।

अमित कौशिश का भी मानना है कि सेंट्रलाइज्ड सिस्टम का विकल्प ढूंढा जाना चाहिए। ड्राई राशन की सप्लाई का स्केल बड़ा है, सो इसके लिए बातचीत होनी चाहिए।ऑनलाइन एक विकल्प हो सकता है। पूरे हिंदुस्तान में रेट कॉन्ट्रैक्ट किया जा सकता है।

यूनिटों से कहा जा सकता है कि वे इनसे सीधे खरीद कर सकते हैं। बेचने वालों से भी कहा जा सकता है कि आप राशन सीधे कंस्यूमिंग यूनिट तक पहुंचाएं। सेना के सूत्रों का कहना है कि फील्ड और दूरदराज के इलाकों में पूरा मैनेजमेंट प्राइवेट हाथों में सौंपना संभव नहीं है।
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रमेश तिवारी

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