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दक्षिण एशियाई देशों में चीन के बढ़ते असर से भारत चिंतित

दक्षिण पूर्व एशियाई देशों में चीन के बढ़ते प्रभाव पर भारत करीबी नजर रख रहा है। नरेन्द्र मोदी सरकार की ईस्ट पॉलिसी के तहत भारत ने इन देशों में पिछले 3 वर्षों में इंफ्रास्ट्रक्चर और अन्य प्रोजेक्ट्स पर काम किया है, लेकिन एक्सपर्ट्स का मानना है कि 'वन बेल्ट, वन रोड' या OBOR प्रोजेक्ट के तहत चीन के भारी इनवेस्टमेंट

ईटी हिंदी 4 May 2017, 8:34 am
दीपांजन रॉय चौधरी, नई दिल्ली
नवभारतटाइम्स.कॉम chinas obor initiative may create political and economic instability in south asia experts
दक्षिण एशियाई देशों में चीन के बढ़ते असर से भारत चिंतित

दक्षिण पूर्व एशियाई देशों में चीन के बढ़ते प्रभाव पर भारत करीबी नजर रख रहा है। नरेन्द्र मोदी सरकार की ईस्ट पॉलिसी के तहत भारत ने इन देशों में पिछले 3 वर्षों में इंफ्रास्ट्रक्चर और अन्य प्रोजेक्ट्स पर काम किया है, लेकिन एक्सपर्ट्स का मानना है कि 'वन बेल्ट, वन रोड' या OBOR प्रोजेक्ट के तहत चीन के भारी इनवेस्टमेंट से इस रीजन में राजनीतिक और आर्थिक अस्थिरता पैदा हो सकती है, जिसका असर भारत पर भी पड़ेगा।

कंबोडिया और लाओस जैसे देशों में चीन के इनवेस्टमेंट का मकसद रीजनल कनेक्टिविटी के साथ ही अपना प्रभाव बढ़ाना भी है।

चीन की ओर से 14-15 मई को OBOR पर आयोजित की जा रही मीटिंग में कंबोडिया, लाओस, इंडोनेशिया और म्यांमार हिस्सा लेने जा रहे हैं। हालांकि, चीन के साथ अपने कमजोर राजनीतिक संबंधों के मद्देनजर वियतनाम के इस मीटिंग में शामिल होने की संभावना कम है।

चीन अपने देश के दक्षिणी हिस्से से दक्षिणपूर्ण एशियाई देशों तक नॉर्थ-साउथ ट्रांसपोर्ट लिंक का कंस्ट्रक्शन कर रहा है। एशियन डिवेलपमेंट बैंक के मुताबिक, दक्षिणपूर्ण एशियाई देशों को अपनी इकनॉमिक ग्रोथ और बढ़ती जनसंख्या की जरूरतों के कारण एनर्जी और ट्रांसपोर्टेशन जैसे सेक्टर्स में बड़े इनवेस्टमेंट चाहिए।

हालांकि, बहुत से दक्षिणपूर्ण एशियाई देशों के साथ आर्थिक संबंध मजबूत होने के बावजूद इन देशों के साथ सुरक्षा को लेकर चीन का सहयोग नहीं बढ़ा है। चीन के एक्सपर्ट्स का मानना है कि ये देश इनवेस्टमेंट तो लेंगे, लेकिन चीन की राजनीतिक और सुरक्षा की जरूरतों को पूरा नहीं करेंगे। ऐसे देशों में सिंगापुर, वियतनाम और म्यांमार शामिल हैं।

साउथ चाइना सी रीजन में चीन के दावों को लेकर सिंगापुर ने नियमों पर आधारित एक वैश्विक आदेश की मांग की है। म्यांमार में चीन की फंडिंग वाले डैम और पोर्ट प्रोजेक्ट्स को लेकर दोनों देशों के बीच तनाव की स्थिति है। वियतनाम के दशकों से चीन के साथ राजनीतिक संबंध अच्छे नहीं हैं और साउथ चाइना सी में चीन के आक्रामक कदमों से दोनों देशों के बीच मतभेद और बढ़े हैं। इंडोनेशिया और मलेशिया को भी इससे दिक्कत हो रही है। हालांकि, इन दोनों देशों में चीन बहुत से इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स पर काम कर रहा है।

एक्सपर्ट्स ने चेतावनी दी है कि कंबोडिया की स्थिति श्रीलंका के कर्ज के जाल में फंसने जैसी हो सकती है। कंबोडिया के साथ चीन के सबसे करीबी राजनीतिक संबंध है। कंबोडिया पर चीन का बड़ा आर्थिक और राजनीतिक प्रभाव है। कंबोडिया के प्रधानमंत्री हुन सेन ने हाल ही में चीन को कंबोडिया का सबसे भरोसेमंद दोस्त कहा था। चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने भी पिछले वर्ष कंबोडिया के राजा नोरोडोम सिहामोनी की चीन यात्रा के दौरान उन्हें अपने भाई की तरह बताया था।

कंबोडिया को चीन से भारी मात्रा में हथियार और निवेश मिल रहा है। चीन से लगातार कर्ज मिलने के कारण कंबोडिया उसका हर मोर्चे पर समर्थन करता है। इसका एक प्रमाण कंबोडिया के अपने देश में ताइवान का झंडा फहराने पर लगाए गए प्रतिबंध से मिला था।

हालांकि, जानकारों का मानना है कि कंबोडिया को कर्ज लेने के अपने स्रोतों को बढ़ाने के साथ ही चीन पर अपनी निर्भरता कम करनी चाहिए।

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