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नए आर्मी चीफ की नियुक्ति पर विपक्ष ने उठाए सवाल, पूछा- वरिष्ठता को क्यों किया गया नजरअंदाज

सरकार ने लेफ्टिनेंट जनरल बिपिन रावत को नया आर्मी चीफ नियुक्त किया है, वह 31 दिसंबर को पद संभालेंगे। 33 साल बाद आर्मी चीफ की नियुक्ति में सरकार ने वरिष्ठता को नजरअंदाज किया है, जिस पर विपक्ष ने सवाल उठाया है।

नवभारतटाइम्स.कॉम 18 Dec 2016, 11:21 am
नई दिल्ली
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नए आर्मी चीफ की नियुक्ति पर विपक्ष ने उठाए सवाल, पूछा- वरिष्ठता को क्यों किया गया नजरअंदाज

सरकार ने लेफ्टिनेंट जनरल बिपिन रावत को नया आर्मी चीफ नियुक्त किया है, वह 31 दिसंबर को पद संभालेंगे। 33 साल बाद आर्मी चीफ की नियुक्ति में सरकार ने वरिष्ठता को नजरअंदाज किया है, जिस पर विपक्ष ने सवाल उठाया है। कांग्रेस नेता मनीष तिवारी ने सरकार से इस बात का जवाब मांगा है कि वरिष्ठता को नजरअंदाज क्यों किया गया। तिवारी ने कहा, 'लेफ्टिनेंट जनरल रावत की क्षमता पर कोई संदेह नहीं है, लेकिन सरकार को इसका जवाब देना चाहिए कि आर्मी चीफ की नियुक्ति में 3 सीनियर अफसरों पर उन्हें तवज्जो क्यों दी गई।'

जेडीयू नेता केसी त्यागी ने भी नए आर्मी चीफ की नियुक्ति में वरिष्ठता का सम्मान न किए जाने पर सवाल उठाया है। उन्होंने कहा कि नियुक्तियों में पारदर्शिता जरूरी है। सीपीआई नेता डी राजा ने कहा कि सेना को किसी विवाद में घसीटना ठीक नहीं है लेकिन सरकार को बताना चाहिए क्यों वरिष्ठता को नजरअंदाज किया गया। तृणमूल कांग्रेस ने भी सरकार से इस पर सफाई मांगी है। दूसरी तरफ फौज के पूर्व अफसरों ने सरकार के कदम का यह कहकर बचाव किया है कि सेना प्रमुख की नियुक्ति को विवाद में घसीटना ठीक नहीं है। रक्षा विशेषज्ञ और सेवानिवृत्त कर्नल अनिल कौल ने नियुक्ति को सही ठहराया है।



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दूसरी तरफ रक्षा मंत्रालय से जुड़े सूत्रों के मुताबिक लेफ्टिनेंट जनरल रावत को मौजूदा सभी लेफ्टिनेंट जनरलों में इस जिम्मेदारी के लिए सबसे उपयुक्त समझा गया। खासतौर पर उभरती चुनौतियों से निपटने, नॉर्थ में मिलिट्री फोर्स के पुनर्गठन, पश्चिमी फ्रंट पर लगातार जारी आतंकवाद और प्रॉक्सी वॉर और पूर्वोत्तर में जारी संघर्ष के लिहाज से उन्हें सबसे सही विकल्प माना गया।

सरकारी सूत्रों ने कहा कि लेफ्टिनेंट जनरल रावत के पास अशांत इलाकों में लंबे समय तक काम करने का अनुभव है। बीते तीन दशकों में वह भारतीय सेना में अहम पदों पर काम कर चुके हैं। सूत्रों के मुताबिक वह कई बड़े ऑपरेशन्स की कमान संभाल चुके हैं। पाकिस्तान से लगती एलओसी, चीन से जुड़ी एलएसी और पूर्वोत्तर में वह कई अहम जिम्मेदारियां संभाल चुके हैं। उन्हें संतुलित तरीके से सैन्य संचालन, बचाव अभियान चलाने और सिविल सोसाइटी से संवाद स्थापित करने के लिए जाना जाता है।

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इस बार रक्षा मंत्रालय की ओर से बार-बार संकेत दिए गए थे कि सिर्फ वरिष्ठता आधार न हो। बिपिन रावत ले. ज. बख्शी से जूनियर तो हैं हीं, दक्षिणी कमान के प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल पीएम हैरिज से भी जूनियर हैं। लेफ्टिनेंट जनरल बिपिन रावत ने 1 सितंबर को वाइस चीफ का कार्य भार संभाला था, जिससे वह आर्मी चीफ की रेस में प्रबल दावेदार माने जा रहे थे। ऊंचाई वाले इलाकों में अभियान चलाने और उग्रवाद से निपटने का उन्हें खासा अनुभव है। उनकी नियुक्ति चीन से लगे लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल और कश्मीर में रह चुकी है।

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सेना में किसी वरिष्ठ अधिकारी को नजरअंदाज कर उससे जूनियर को कमान सौंपे जाने का यह पहला उदाहरण नहीं है। 1983 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने लेफ्टिनेंट जनरल एसके सिन्हा पर ले. जनरल ए. एस वैद्य को तवज्जो देते हुए सेना प्रमुख की जिम्मेदारी सौंप दी थी। इससे नाराज होकर सिन्हा ने इस्तीफा सौंप दिया था। इससे पहले 1972 में इंदिरा गांधी सरकार ने खासे लोकप्रिय रहे लेफ्टिनेंट जनरल पीएस भगत को नजरअंदाज कर दिया था।

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