नई दिल्ली
साल 2019 के आखिरी महीनों में कोरोना वायरस नामक जानलेवा बीमारी ने दुनिया में दस्तक दे दी। हिंदुस्तान इससे बिल्कुल बेफिक्र था क्योंकि ज्यादातर मामले चीन में आ रहे थे। नवम्बर और दिसंबर तक आते-आते कोरोना ने और भी मुल्कों को अपनी जद में ले लिया। साल 2020 का स्वागत लोगों ने बिल्कुल वैसा ही किया जैसा हर साल करते हैं। मगर इसके तुरंत बाद से ही भारत में हलचल पैदा होने लगी। 30 जनवरी को भारत में पहला मामला सामने आया। इसके बाद कोरोना ने यहां आम जनजीवन ही अस्त व्यस्त कर दिया। भारत के मेडिकल साइंस का लोहा मानी दुनिया
हालांकि भारत के मेडिकल साइंस का डंका पूरे विश्व में पहले से ही बजता था मगर कोरोना काल में पूरे विश्व ने देख भी लिया। भारत में इतनी आबादी होने के बावजूद यहां पर कोरोना से होने वाली मौतों का आंकड़ा और मुल्कों से काफी रहा। खुद को विकसित राष्ट्र और महाशक्ति कहने वाला अमेरिका में तो इतनी मौतें हुईं कि लाशों के दफ्ताने के लाले पड़ गए मगर उस वक्त भारत के डॉक्टरों की खोज जारी रही और किसी भी प्रकार से वो केवल जान बचानें में लगे रहे।
सब करते रहे चर्चा, हमने किए प्रयोग
भारत ने कोरोना को रोकने और उसका इलाज करने के लिए विभिन्न दवाओं के प्रयोग किया। इससे भारत ने दुनिया में अपनी क्षमता पर भी बहस की। एम्स के डायरेक्टर डॉ रणदीप गुलेरिया ने कहा कि उदाहरण के लिए स्टेरॉयड (Steroids) को ले लीजिए। भारत ने इसका इस्तेमाल यूके के परीक्षण करने से काफी पहले से शुरू कर दिया था। जैसे ही हमको लगा कि ये रोगियों को बचा सकता है हमने इस्तेमाल किया। वहीं यूके ने बहुत बाद में इसको उपयोगी घोषित किया।
हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वाइन का इस्तेमाल
मलेरिया से बचाने वाली हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वाइन का इस्तेमाल प्रोफिलैक्सिस के लिए व्यापक रूप से किया गया था। भारत में इसका इस्तेमाल काफी पहले से ही शुरू कर दिया था जबकि अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इसके उपयोगिता की बात काफी बाद में कही। ट्रंप ने जब हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वाइन का नाम लिया तब ये पूरी दुनिया में सुर्खियों में आई मगर भारत ने गंभीर मरीजों के इलाज के लिए पहले ही इसे देना शुरू कर दिया था। हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वाइन दवा को बाद में कोरोना के इलाज के अनुपयुक्त बताया गया और इसको बंद कर दिया गया।
प्लाज्मा ने बचाई जान
मैक्स हेल्थकेयर के ग्रुप मेडिकल डायरेक्टर डॉ संदीप बुधिराजा ने कहा कि हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वाइन के अलावा अन्य बीमारियों के लिए इस्तेमाल की जाने वाली कई दवाओं को कोविद -19 रोगियों के इलाज के लिए आजमाया गया क्योंकि इसका कोई तय इलाज नहीं था। उन्होंने कहा कि दिल्ली में व्यापक रूप से प्लाज्मा प्लाज्मा थेरेपी का उपयोग किया गया था। हालांकि, अभी तक इसकी प्रभावकारिता पर कोई एकमत नहीं है, हमने कई रोगियों में सकारात्मक परिणाम देखे हैं, जिन्हें प्लाज्मा थेरेपी दी गई।
रेमेडिसविर वैक्सीन का प्रयोगएम्स भोपाल के निदेशक डॉ सरमन सिंह ने कहा, यहां तक कि उन्होंने कोविद -19 रोगियों के इलाज में कुछ रोधी दवाओं जैसे माइकोबैक्टीरियम डब्ल्यू, एक एंटी-कुष्ठरोधी दवा की सुरक्षा और प्रभावकारिता का आकलन करने के लिए परीक्षण किया। रेमेडिसविर, जिसे मूल रूप से इबोला के इलाज के लिए विकसित किया गया था। इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च ने कोविद -19 के लिए प्रायोगिक चिकित्सा के रूप में आगे आया। लोक नायक अस्पताल के चिकित्सा निदेशक डॉ सुरेश कुमार ने कहा, "हम मरीजों का इलाज करने के लिए रेमेडिसविर का उपयोग कर रहे हैं।"
साल 2019 के आखिरी महीनों में कोरोना वायरस नामक जानलेवा बीमारी ने दुनिया में दस्तक दे दी। हिंदुस्तान इससे बिल्कुल बेफिक्र था क्योंकि ज्यादातर मामले चीन में आ रहे थे। नवम्बर और दिसंबर तक आते-आते कोरोना ने और भी मुल्कों को अपनी जद में ले लिया। साल 2020 का स्वागत लोगों ने बिल्कुल वैसा ही किया जैसा हर साल करते हैं। मगर इसके तुरंत बाद से ही भारत में हलचल पैदा होने लगी। 30 जनवरी को भारत में पहला मामला सामने आया। इसके बाद कोरोना ने यहां आम जनजीवन ही अस्त व्यस्त कर दिया।
हालांकि भारत के मेडिकल साइंस का डंका पूरे विश्व में पहले से ही बजता था मगर कोरोना काल में पूरे विश्व ने देख भी लिया। भारत में इतनी आबादी होने के बावजूद यहां पर कोरोना से होने वाली मौतों का आंकड़ा और मुल्कों से काफी रहा। खुद को विकसित राष्ट्र और महाशक्ति कहने वाला अमेरिका में तो इतनी मौतें हुईं कि लाशों के दफ्ताने के लाले पड़ गए मगर उस वक्त भारत के डॉक्टरों की खोज जारी रही और किसी भी प्रकार से वो केवल जान बचानें में लगे रहे।
सब करते रहे चर्चा, हमने किए प्रयोग
भारत ने कोरोना को रोकने और उसका इलाज करने के लिए विभिन्न दवाओं के प्रयोग किया। इससे भारत ने दुनिया में अपनी क्षमता पर भी बहस की। एम्स के डायरेक्टर डॉ रणदीप गुलेरिया ने कहा कि उदाहरण के लिए स्टेरॉयड (Steroids) को ले लीजिए। भारत ने इसका इस्तेमाल यूके के परीक्षण करने से काफी पहले से शुरू कर दिया था। जैसे ही हमको लगा कि ये रोगियों को बचा सकता है हमने इस्तेमाल किया। वहीं यूके ने बहुत बाद में इसको उपयोगी घोषित किया।
हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वाइन का इस्तेमाल
मलेरिया से बचाने वाली हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वाइन का इस्तेमाल प्रोफिलैक्सिस के लिए व्यापक रूप से किया गया था। भारत में इसका इस्तेमाल काफी पहले से ही शुरू कर दिया था जबकि अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इसके उपयोगिता की बात काफी बाद में कही। ट्रंप ने जब हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वाइन का नाम लिया तब ये पूरी दुनिया में सुर्खियों में आई मगर भारत ने गंभीर मरीजों के इलाज के लिए पहले ही इसे देना शुरू कर दिया था। हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वाइन दवा को बाद में कोरोना के इलाज के अनुपयुक्त बताया गया और इसको बंद कर दिया गया।
प्लाज्मा ने बचाई जान
मैक्स हेल्थकेयर के ग्रुप मेडिकल डायरेक्टर डॉ संदीप बुधिराजा ने कहा कि हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वाइन के अलावा अन्य बीमारियों के लिए इस्तेमाल की जाने वाली कई दवाओं को कोविद -19 रोगियों के इलाज के लिए आजमाया गया क्योंकि इसका कोई तय इलाज नहीं था। उन्होंने कहा कि दिल्ली में व्यापक रूप से प्लाज्मा प्लाज्मा थेरेपी का उपयोग किया गया था। हालांकि, अभी तक इसकी प्रभावकारिता पर कोई एकमत नहीं है, हमने कई रोगियों में सकारात्मक परिणाम देखे हैं, जिन्हें प्लाज्मा थेरेपी दी गई।
रेमेडिसविर वैक्सीन का प्रयोगएम्स भोपाल के निदेशक डॉ सरमन सिंह ने कहा, यहां तक कि उन्होंने कोविद -19 रोगियों के इलाज में कुछ रोधी दवाओं जैसे माइकोबैक्टीरियम डब्ल्यू, एक एंटी-कुष्ठरोधी दवा की सुरक्षा और प्रभावकारिता का आकलन करने के लिए परीक्षण किया। रेमेडिसविर, जिसे मूल रूप से इबोला के इलाज के लिए विकसित किया गया था। इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च ने कोविद -19 के लिए प्रायोगिक चिकित्सा के रूप में आगे आया। लोक नायक अस्पताल के चिकित्सा निदेशक डॉ सुरेश कुमार ने कहा, "हम मरीजों का इलाज करने के लिए रेमेडिसविर का उपयोग कर रहे हैं।"