नई दिल्ली
भारत के आम मुसलमानों में अलग-थलग पड़ने की भावना का बिल्कुल भी नहीं होने का दावा करते हुए पूर्व केंद्रीय मंत्री आरिफ मोहम्मद खान ने कहा है कि अगर ऐसी कोई भावना है तो वह सिर्फ मुस्लिम समुदाय के एलीट लोगों में है। वरिष्ठ पत्रकार सईद नकवी की पुस्तक ‘बीइंग द अदर: द मुस्लिम इन इंडिया’ के लॉन्च के दौरान हाल ही में खान ने इस कथित धारणा को खारिज किया कि देश के मुसलमानों में अलग-थलग पड़ने की भावना बढ़ रही है।
उन्होंने कहा कि अगर ऐसा कुछ है तो उसके लिए इस समुदाय के लोग खुद जिम्मेदार हैं क्योंकि वे अलग पहचान बरकरार रखना चाहते हैं। शाह बानो मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद संसद में विधेयक लाए जाने का विरोध करते हुए राजीव गांधी की सरकार से 1986 में इस्तीफा देने वाले खान ने सईद नकवी की ओर से व्यक्त किए गए विचार का विरोध किया। नकवी ने हिंदुओं और मुसलमानों के बीच बढ़ती खाई और अलग-थलग पड़ने की भावना बढ़ने को लेकर चिंता जताई और यह भी कहा कि यह माहौल लंबे समय से चला आ रहा है।
नकवी के विचार का विरोध करते हुए खान ने इस माहौल के लिए मुस्लिम समुदाय के एलीट लोगों को जिम्मेदार ठहराया। उन्होंने कहा जब मुस्लिम ‘हम अपना मिल्ली तसखुश (पहचान) बरकरार रखना चाहते हैं’ जैसा नारा लगाएंगे तो यह होना स्वाभाविक है। खान ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट की ओर से तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं के भरण-पोषण के लिए जो फैसला आया उसकी पृष्ठभूमि में मुसलमानों ने यह नारा दिया था।
उन्होंने कहा, ‘इस नारे का क्या मतलब है? इसका यह मतलब है कि हम अलग हैं। दूसरा व्यक्ति यह नहीं कह रहा है कि हम अलग हैं लेकिन मैं कह रहा हूं कि मैं अलग हूं।’
खान ने कहा, ‘आम मुसलमानों में अलग-थलग पड़ने की भावना जैसी कोई समस्या नहीं है और वे हमारे देश की उस सभ्यता का हमेशा हिस्सा रहे हैं जो 6000 साल पुरानी है।’
भारत के आम मुसलमानों में अलग-थलग पड़ने की भावना का बिल्कुल भी नहीं होने का दावा करते हुए पूर्व केंद्रीय मंत्री आरिफ मोहम्मद खान ने कहा है कि अगर ऐसी कोई भावना है तो वह सिर्फ मुस्लिम समुदाय के एलीट लोगों में है। वरिष्ठ पत्रकार सईद नकवी की पुस्तक ‘बीइंग द अदर: द मुस्लिम इन इंडिया’ के लॉन्च के दौरान हाल ही में खान ने इस कथित धारणा को खारिज किया कि देश के मुसलमानों में अलग-थलग पड़ने की भावना बढ़ रही है।
उन्होंने कहा कि अगर ऐसा कुछ है तो उसके लिए इस समुदाय के लोग खुद जिम्मेदार हैं क्योंकि वे अलग पहचान बरकरार रखना चाहते हैं। शाह बानो मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद संसद में विधेयक लाए जाने का विरोध करते हुए राजीव गांधी की सरकार से 1986 में इस्तीफा देने वाले खान ने सईद नकवी की ओर से व्यक्त किए गए विचार का विरोध किया। नकवी ने हिंदुओं और मुसलमानों के बीच बढ़ती खाई और अलग-थलग पड़ने की भावना बढ़ने को लेकर चिंता जताई और यह भी कहा कि यह माहौल लंबे समय से चला आ रहा है।
नकवी के विचार का विरोध करते हुए खान ने इस माहौल के लिए मुस्लिम समुदाय के एलीट लोगों को जिम्मेदार ठहराया। उन्होंने कहा जब मुस्लिम ‘हम अपना मिल्ली तसखुश (पहचान) बरकरार रखना चाहते हैं’ जैसा नारा लगाएंगे तो यह होना स्वाभाविक है। खान ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट की ओर से तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं के भरण-पोषण के लिए जो फैसला आया उसकी पृष्ठभूमि में मुसलमानों ने यह नारा दिया था।
उन्होंने कहा, ‘इस नारे का क्या मतलब है? इसका यह मतलब है कि हम अलग हैं। दूसरा व्यक्ति यह नहीं कह रहा है कि हम अलग हैं लेकिन मैं कह रहा हूं कि मैं अलग हूं।’
खान ने कहा, ‘आम मुसलमानों में अलग-थलग पड़ने की भावना जैसी कोई समस्या नहीं है और वे हमारे देश की उस सभ्यता का हमेशा हिस्सा रहे हैं जो 6000 साल पुरानी है।’