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Madrasa History In India: 1,100 साल पहले गौरी था गद्दी पर और जब भारत में खुला पहला मदरसा

Madrasa Survey in UP: उत्तर प्रदेश में मदरसे का सर्वे का काम शुरू होने के बाद सियासी बवाल मचा हुआ है। लेकिन क्या आपको भारत में मदरसों का इतिहास पता है। इस्लामिक सल्तनत के दौरान भारत में पहले मदरसे की स्थापना हुई थी। मदरसा ज्ञान का केंद्र रहा है।

Curated byसत्यकाम अभिषेक | नवभारतटाइम्स.कॉम 14 Sep 2022, 9:37 pm

हाइलाइट्स

  • भारत में मदरसों को लेकर आजकल सियासी घमासान मचा हुआ है
  • यूपी में मदरसे का सर्वे कराया जा रहा है जबकि असम में कुछ मदरसों को ढहाया गया है
  • मदरसों में विज्ञान से लेकर साहित्य की शिक्षा दी जाती रही है
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नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश में मदरसों के सर्वे की कवायद के बाद काफी सियासी बवाल मचा हुआ है। AIMIM के मुखिया असदुद्दीन ओवैसी तो सीधे-सीधे राज्य की योगी आदित्यनाथ सरकार पर हमला किया है। हाल के दिनों में मदरसों के लेकर कई सवाल उठे हैं। असम में तो हेमंत विस्व शर्मा सरकार ने कई मदरसों को ढहवा दिया। राज्य सरकार ने आरोप लगाया था कि कुछ मदरसों में आतंकी गतिविधियों को बढ़ावा दिया जाता है। आम धारणा ये भी बन गई है कि मदरसों में तालीम की जगह कट्टरपंथ को बढ़ावा दिया जाता है। तो क्या सच में मदरसे में आतंकी गतिविधियों को अंजाम दिया जाता है? या फिर मदरसों की स्थापना का मकसद कुछ और रहा है? आखिर भारत में मदरसों की स्थापना कब हुई? आइए जानते हैं।
मदरसे के इतिहास को समझिए
आम तौर पर मदरसे को कट्टरपंथी ज्ञान का केंद्र बताने वाले इसके इतिहास से परिचित नहीं होते हैं। इसे समझने के लिए हमें 1,000 साल पीछे जाना होगा। इन इस्लामिक स्कूलों का इतिहास कभी वैभवशाली भी रहा था। कभी इन मदरसों में देश के पहले राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद, समाज सुधारक राजा राम मोहन राय और कथा सम्राट मुंशी प्रेमंचद ने भी मदरसों से ही शुरुआती तालीम हासिल की थी। भारत में मदरसा की स्थापना मुगल शासन के प्रारंभ होने के साथ ही हुई थी। मदरसा मुस्लिम समाज की जिंदगी का हिस्सा रहा है। मध्यकालीन भारत के दौर में मदरसे की भूमिका सरकार को श्रमशक्ति प्रदान करने की रही थी। कहा जाता है कि भारत में पहले मदरसे की स्थापना मोहम्मद गौरी के शासनकाल के दौरान सन् 1192 में अजमेर में स्थापित की गई थी। इसके अलावा खिलजी, तुगलक वंश के दौरान भी भारत में मदरसों की स्थापना जारी रही। मुहम्मद बिन तुगलक का भाई और उसका उत्तराधिकारी फिरोज शाह तुगलक (1309-1388) तो लोगों के बीच शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए और ज्यादा इच्छुक था। वह लड़कियों और यहां तक कि दासों को भी शिक्षा देने का हिमायती था। बताया जाता है कि तुगलक के काल के दौरान करीब 1 लाख 80 हजार दासों ने विज्ञान, कला और क्रॉफ्ट में शिक्षा ग्रहण किया था। मोरक्को के यात्री इब्न बतुता (Ibn Batuta) ने अपने संस्मरण में लिखा है कि उस दौरान भारत में लड़कियों के लिए 13 मदरसे थे।
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मदरसा क्या होता है?
मदरसा शब्द की उत्पत्ति अरबिक वर्ड 'D-R-S' से हुई है। मदरसा का मतलब 'पढ़ाई का स्थान' होता है। आधुनिक अरब में मदरसा का मतलब कोई शैक्षिक संस्थान से होता रहा है। ये संस्थान धर्मनिरपेक्ष और आधुनिक हुआ करते हैं। दक्षिण एशिया में मदरसा का मतलब उच्च इस्लामिक शिक्षा का केंद्र माना जाता रहा है। यहां छात्रों को इस्लामिक कानून और तकनीक सिखाया जाता है। मदरसा ज्ञान हासिल करने का जरिया तो रहा है। एक जो सबसे अहम बात ये थी कि यहां मोहम्मद साहब के जीवन और पवित्र कुरान को जीवन में उतारने की सीख भी दी जाती है। इस्लामिक दुनिया में बगदाद में अबासिद काल (Abbasid Period)के दौरान जो मदरसे स्थापित किए गए थे उनका काम यूनान से लेकर यूरोप तक ज्ञान का प्रचार-प्रसार करना था। दुनिया का सबसे पुराना मदरसा मोरक्को के फेज में स्थित है। इसकी स्थापना 859 में हुई थी। यह मदरसा अभी भी बरकरार है और ये यूनिवर्सिटी ऑफ अल कारावियान (University of AL Qarawiyyin) के साथ अटैच है। मोहम्मद बिन तुगलक (1290-1351) के शासनकाल के दौरान कहा जाता है कि दिल्ली में हजारों मदरसे बनाए गए थे। यहां तालीम देने वाले शिक्षकों को सरकार के खजाने से वेतन दिया जाता था।
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क्या मदरसा में कट्टरपंथी शिक्षा दी जाती थी?

पुराने समय में मदरसा इस्लामिक ज्ञान का प्रतीक माना जाता था। यहां बड़े पैमाने पर लोगों को शिक्षा प्रदान की जाती थी। इस दौर के मदरसे की ये खासियत थी कि ये धर्मनिरपेक्ष स्वरूप के थे और यहां गैर मुस्लिम समुदाय के बच्चे भी शिक्षा के लिए आते थे। 19वीं सदी के अंत तक मदरसों की धर्मनिरपेक्षता बरकरार रही थी। दरअसल, 1844 से मदरसे में बदलाव आना शुरू हुआ। मदरसे से पासआउस ग्रेजुएट छात्रों को सरकारी नौकरियों पर रोक लगा दी गई। इसके मुस्लिम समुदाय में बड़े गुस्से का माहौल बना क्योंकि उस दौर में अचानक से अंग्रेजी को स्वीकार करना इतना आसान नहीं था। परिणास्वरूप मुस्लिम समुदाय दुविधा में पड़ गए। अंग्रेजों ने मुसलमानों की पारंपरिक शिक्षा की रीढ़ तोड़कर रख दी। और शिक्षा व्यवस्था को धार्मिक और गैर धार्मिक श्रेणी में बांट दिया।
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मदरसा व्यवस्था कैसे चलती थी?
मदरसा व्यवस्था आम लोगों के दान से चलती थी और इसमें सभी छात्रों को मुफ्त में शिक्षा दी जाती थी। मदरसे में गांव से लेकर शहरी सभी छात्रों को शिक्षा दी जाती थी और यहां गरीब-अमीर का कोई भेदभाव नहीं था। समय बदलने के बाद कुछ मदरसे तो सरकार से स्वायत्त बने रहे लेकिन कुछ मदरसों ने राज्य सरकार के साथ संबंध हो गए। मदरसे में पढ़ने वाले बच्चो को मुंशी, मौलवी, कामिल, आलिम, काबिल, फैजल और मुमताजुल अफजल जैसी डिप्लोमा और डिग्री दी जाती थी।
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मदरसों का सिलेबस कैसा था?
मदरसों के सिलेबस को वर्तमान और पूर्व के विद्वान उलेमाओं के सुझाव के आधार पर बनाया गया था। आधुनिक सिलेबस में तो छात्रों को कंप्यूटर की शिक्षा भी दी जाने लगी है। मदरसों में अकीद, दिनायत, कुरान, उर्दू, हिंदी, इंग्लिश, गणित, भूगोल, विज्ञान, अरबी, पर्सियन, मांटिग, फिलॉसफी, हैत, उरोज, कलाम, मा-अनी-वा-बयान, इतिहास, तफसीर, हदी वा उसूल ए हदीस जैसे विषय पढ़ाए जाते हैं। मदरसा अपने छात्रों को विश्वविद्यालयों द्वारा ऑफर किए जाने ब्रिज कोर्स के लिए भेजती है। इसके जरिए मदरसा के छात्रों को मुख्य धारा की उच्च शिक्षा मिल पाती है।

दारुल उलूम देवबंद की कब हुई स्थापना?
भारत के मशहूर मदरसा दारुल उलूम देवबंद (Darul Uloom Deoband) की स्थापना 1866 में हुई थी। उस दौरान देवबंदी मदरसा पूरे देश में फैल गए थे। इस दौरान इन मदरसों पर तालिबान जैसे कट्टरपंथियों के साथ मिलीभगत का आरोप लगा था। हकीकत ये थी कि 1919 में देवबंदी स्कॉलर के एक बड़े समूह ने एक राजनीतिक दल जमात उलेम-ए-हिंद की स्थापना की थी। इस संगठन ने बाद में भारत के विभाजन का विरोध भी किया था। जब अंग्रेजों ने अपनी शिक्षा व्यवस्था को फैलाने के लिए सख्ती की तो मदरसों को सबसे ज्यादा नुकसान हुआ। उस दौरान मदरसों को मिलने वाली सहायता राशि रुक गई। धीरे-धीरे मदरसे पैसे के लिए दूसरे रास्ते तलाशने लगा।
लेखक के बारे में
सत्यकाम अभिषेक
सत्यकाम अभिषेक नवभारत टाइम्स ऑनलाइन में असिस्टेंट एडिटर हैं. यूनिवार्ता, सहारा, ज़ी न्यूज़ से होते हुए अब नवभारत टाइम्स में सेंट्रल टीम और शिफ्ट हेड हैं.... और पढ़ें

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