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2+2 वार्ता से पहले भारत बोला, ईरान से तेल इंपोर्ट पर US के दबाव में नहीं आएंगे

अमेरिका के साथ गुरुवार को प्रस्तावित 2+2 डायलॉग के महत्व को स्वीकार करते हुए भारत ने कहा है कि ईरान के साथ तेल आयात पर US के दबाव में काम करने की किसी तरह की कोई बाध्यता नहीं है।

टाइम्स न्यूज नेटवर्क 4 Sep 2018, 8:27 pm
सचिन पराशर, नई दिल्ली
नवभारतटाइम्स.कॉम प्रतीकात्मक तस्वीर।
प्रतीकात्मक तस्वीर।

रूस के साथ S-400 मिसाइल डिफेंस सिस्टम की खरीद पर अमेरिकी प्रतिबंधों के खतरे के बीच भारत ने US को रणनीतिक संबंधों की याद दिलाई है। अमेरिका के साथ गुरुवार को प्रस्तावित 2+2 डायलॉग के महत्व को स्वीकार करते हुए भारत ने कहा है कि ईरान के साथ तेल आयात पर US के दबाव में काम करने की किसी तरह की कोई बाध्यता नहीं है।

अमेरिका के विदेश मंत्री माइक पॉम्पियो, रक्षा मंत्री जिम मैटिस और भारत में उनकी समकक्ष सुषमा स्वराज व निर्मला सीतारमण के बीच रणनीतिक रूप से अहम 2+2 वार्ता होनी है। इस वार्ता के संबंध में आधिकारिक सूत्रों ने कहा कि हम उम्मीद करते हैं कि अमेरिका हमारे साथ चले आ रहे रणनीतिक संबंधों को नहीं भूलेगा। उन्होंने वार्ता को इस साल भारत में होने वाले सबसे अहम रणनीतिक वार्ता भी माना।

यह बहुप्रतिक्षित वार्ता तब होने जा रही है जब भारत पर अमेरिकी प्रतिबंध का खतरा मंडरा है। यह खतरा ईरान के साथ तेल आयात और रूस के साथ 6 अरब डॉलर के रक्षा सौदे को लेकर सामने आया है। उम्मीद की जा रही है कि ये दोनों मुद्दे इस वार्ता के अहम हिस्से होंगे। भारत ने अमेरिका के दबाव के बावजूद रूस के साथ S-400 खरीद की डील पर आगे बढ़ने का फैसला लिया है।

अमेरिका के सामने 3 बिंदुओं में अपनी बात रखेगा भारत
6 सितंबर को इस खास बातचीत में ईरान के साथ तेल आयात से जुड़े मुद्दे पर अमेरिका के सामने तीन बिंदु रखे जाएंगे। पहला यह कि भारत अपनी 83 फीसदी ऊर्जा जरूरतों को आयात के जरिये पूरा करता है। इसमें से भी 25 फीसदी क्रूड ईरान से आयात किया जाता है। दूसरा यह कि भारत ने क्रूड आयात पर अमेरिका से दूसरे सस्ते-व्यवहारिक विकल्पों पर सुझाव मांगा है।

सूत्रों के मुताबिक तीसरे बिंदु के रूप में भारत ने यह भी कहा है कि उसकी कुछ रिफाइनरियां खास किस्म के क्रूड के हिसाब से बनी हैं। उन्होंने कहा कि इन सबके बावजूद तेल आयात पर अमेरिकी या ईरान के दबाव में किसी तरह का कोई फैसला लेने का सवाल ही नहीं है। आधिकारिक सूत्रों ने कहा कि भारत ईरान को एक नाभिकीय हथियार वाले मुल्क के रूप में नहीं देखना चाहता। इसके बावजूद वह नाभिकीय ऊर्जा के शांतिपूर्ण इस्तेमाल के ईरान के अधिकार का सम्मान करता है।

समझौता हुआ तो भारत को मिलेगी US की अत्याधुनिक मिलिटरी तकनीक
कूटनीतिक वार्ता में भारत की यह पोजिशनिंग 2015 के संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के संकल्प 2231 के अनुरूप ही है। गुरुवार को अमेरिका के साथ वार्ता के बाद कम्युनिकेशंस, कॉम्पैटिबिलिटी ऐंड सिक्यारिटी अग्रीमेंट (COMCASA) पर हस्ताक्षर होगा या नहीं, इस सवाल पर भी सूत्रों ने टिप्पणी की। सूत्रों के मुताबिक अगर इन दोनों देशों के बीच इस पर हस्ताक्षर नहीं हो सके तो भी सिद्धांततः इस अग्रीमेंट को सपॉर्ट की घोषणा की जा सकती है।

इस अग्रीमेंट से भारत को अमेरिका से इंक्रिप्टेड सिक्यॉर कम्युनिकेशन टेक्नॉलजी हासिल होगी। इसके अलावा भारत की पहुंच अमेरिका की अत्याधुनिक मिलिटरी टेक्नॉलजी तक भी होगी जिसमें युद्धक प्रिडेटर ड्रोन भी शामिल हैं। सूत्रों के मुताबिक इस वार्ता में भारत सरकार जापान, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया के साथ मिलकर चतुर्भुजीय हिंद-प्रशांत रणनीति को भी ज्यादा तवज्जो नहीं देगी।

'हिंद-प्रशांत की नई रणनीति को तवज्जो नहीं'
सूत्रों के मुताबिक भारत नहीं चाहता है कि इसे 'ग्रेट स्ट्रैटिजिक गेम प्लान' के तौर पर देखा जाए। भारत की संपूर्ण सुरक्षा के संदर्भ में हिंद-प्रशांत कोई मैकनिज्म नहीं बल्कि एक नई अवधारणा, एक विचार है। भारत के लिए हिंद महासागर एक खुला और समावेशी क्षेत्र है। सूत्रों ने बताया कि इस वार्ता के दौरान आतंकवाद पर भी चर्चा होगी। हालांकि उन्होंने इस सवाल का जवाब देने से परहेज किया कि पाकिस्तान स्थित आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद चीफ मसूद अजहर पर बैन का नया प्रस्ताव लाने के लिए अमेरिका पर दबाव डाला जाएगा या नहीं।

क्या है 2+2 वार्ता: विदेश नीति के संबंध में 2+2 वार्ता को उस संबंध में परिभाषित किया जाता है जब दो देश दो-दो मंत्रिस्तरीय वार्ता में शामिल होते हैं। सामान्यतया 2+2 डायलॉग में दोनों देशों की तरफ से उनके विदेश और रक्षा मंत्री हिस्सा लेते हैं। जापान डायलॉग के इस फ्रेमवर्क का इस्तेमाल अमेरिका, रूस, फ्रांस और ऑस्ट्रेलिया के साथ अपनी रणनीतिक बातचीत के लिए करता है। 2010 में भारत और जापान के बीच भी इस तरह की वार्ता हो चुकी है।

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