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विरोधियों को साधने वाले प्रमोद महाजन और अरुण जेटली, क्या मोदी को इनके जैसी कमी खल रही है ?

अब जब केंद्र की तरफ से विवादित तीन कृषि कानून वापिस लेने की घोषणा की जा चुकी है। ऐसे में राजनीतिक रूप से मजबूत माने जाने वाले पीएम मोदी और एनडीए सरकार को लेकर सवाल भी उठ रहे हैं। क्या पीएम मोदी को अटल बिहारी वाजपेयी के दौर में विरोधियों को साधने वाले प्रमोद महाजन और अरुण जेटली की कमी खल रही है।

Edited byअनिल कुमार | टाइम्स न्यूज नेटवर्क 28 Nov 2021, 2:10 pm

हाइलाइट्स

  • मजबूत छवि के विपरीत मोदी सरकार ने कृषि कानून वापस लेने पर हुई मजबूर
  • पार्टी लाइन से परे विरोधियों को साधने, आम सहमति बनाने वाले नेता का अभाव
  • जेटली के बाद मौजूदा समय में कृषि कानून को लेकर नहीं दिखी पर्दे के पीछे बातचीत
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नई दिल्ली
टीवी एक्ट्रेस कंगना रनौत का ने हाल ही में एक कहा कि देश को असली आजादी साल 1947 में नहीं बल्कि 2014 में मिली। इसे एक तरफ जहां मोदी सरकार की तारीफ व मजबूती के रूप में देखा गया तो दूसरी तरफ इस पर विवाद भी हुआ। हालांकि, इस संदर्भ में साल 1991 को नहीं भूला जा सकता है। सीनियर जर्नलिस्ट सागरिका घोष ने टाइम्स ऑफ इंडिया में लिखे लेख में इस संबंध में 1991 में तत्कालीन पीएम पीवी नरसिम्हा राव और वित्त मंत्री मनमोहन सिंह का जिक्र किया है। लेख में राव-मनमोहन की जोड़ी के आर्थिक सुधार को भारत को हमेशा के लिए बदल देने वाला बताया गया।
अब जब केंद्र की तरफ से विवादित तीन कृषि कानून वापिस लेने की घोषणा की जा चुकी है। ऐसे में राजनीतिक रूप से मजबूत माने जाने वाले पीएम मोदी और एनडीए सरकार को लेकर सवाल भी उठ रहे हैं। किसानों के लगातार विरोध प्रदर्शन की वजह से अपनी छवि के ठीक उलट मोदी सरकार को 2020 के कृषि कानूनों को वापस लेने का कदम उठाने को मजबूर होना पड़ा। यहां एक सवाल और उठता है कि क्या पीएम मोदी को अटल बिहारी वाजपेयी के दौर में विरोधियों को साधने वाले प्रमोद महाजन और अरुण जेटली की कमी खल रही है।

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इस सवाल के पीछे वजह यह भी है कि पीएम मोदी के उलट प्रधानमंत्री के रूप में एनडीए का नेतृत्व करने वाले अटल बिहारी वाजपेयी ने बड़े पैमाने पर विनिवेश का ना सिर्फ फैसला लिया बल्कि अमल भी किया। लेख में लिखा गया है कि पीवी नरसिम्हा राव, अटल बिहार वाजपेयी और मनमोहन सिंह की सुधार सफलता आज के लिए सबक देती है।


प्रधान मंत्री के रूप में तीनों कट्टर लोकतांत्रिक थे। राव के संसदीय मामलों के मंत्री के रूप में वीसी शुक्ला और गुलाम नबी आजाद विपक्ष तक पहुंचने में माहिर थे। इसी तरह अटल बिहार वाजपेयी के पास प्रमोद महाजन के रूप में पार्टी लाइन से परे एक विरोधियों को साधने और सहमति बनाने वाला तुरुप का पत्ता था। राव, वाजपेयी और मनमोहन ने गठबंधन का नेतृत्व किया। ऐसे में न केवल विपक्ष के साथ बल्कि सहयोगियों के साथ भी सहमति का पुल बनाने की जरूरत थी।


तत्काल आवश्यक आर्थिक सुधारों के लिए व्यापक राजनीतिक वर्ग का साथ महत्वपूर्ण बन गया है। पीएम मोदी के कार्यकाल के दौरान, अरुण जेटली के प्रयासों के कारण जीएसटी सुधारों को विपक्ष का सहयोग मिला था। वीसी शुक्ल और प्रमोद महाजन की तरफ अरुण जेटली के हर पार्टी में दोस्त थे। जेटली के जाने के बाद कृषि बिल 2020 को लेकर पर्दे के पीछे बातचीत बिल्कुल खत्म दिखी। इसके साथ ही, किसानों के संगठनों के साथ बातचीत की जिम्मेदारी उठाने वालों (जैसे कृषिमंत्री नरेंद्र तोमर) लोगों ने विश्वास की कमी को पाटने का बोझ नहीं उठा सके।
मूल लेख को अंग्रेजी में यहां पढ़ सकते हैं।
लेखक के बारे में
अनिल कुमार
अनिल पिछले एक दशक से अधिक समय से मीडिया इंडस्ट्री में एक्टिव हैं। दैनिक जागरण चंडीगढ़ से 2009 में रिपोर्टिंग से शुरू हुआ सफर, दैनिक भास्कर, राजस्थान पत्रिका, अमर उजाला, जनसत्ता.कॉम होते हुए नवभारतटाइम्स.कॉम तक पहुंच चुका है। मूल रूप से बिहार के रहने वाले हैं लेकिन पढ़ाई-लिखाई दिल्ली से हुई है। स्पोर्ट्स और एजुकेशन रिपोर्टिंग के साथ ही सेंट्रल डेस्क पर भी काम करने का अनुभव है। राजनीति, खेल के साथ ही विदेश की खबरों में खास रुचि है।... और पढ़ें

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