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लोकसभा स्पीकर ओम बिरला: विनम्रता के साथ सख्ती, खाना-पीना छोड़कर कामकाज

राजस्थान की कोटा-बूंदी सीट से चुनकर दूसरी बार संसद पहुंचे ओम बिरला का संसदीय अनुभव भले ही कम हो, लेकिन वह जिस अंदाज में उन्होंने इस सदन को संभाला है उसकी काफी चर्चा हो रही है।

नवभारतटाइम्स.कॉम 25 Jul 2019, 6:47 pm
नई दिल्ली
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चेहरे पर मुस्कान के साथ पक्ष-विपक्ष के सांसदों के साथ एक सा व्यवहार और सदन में कामकाज का बेहतर माहौल बनाकर लोकसभा स्पीकर ओम बिरला ने अपनी अलग पहचान बना ली है। सदन में वोटिंग के दौरान 'यस-नो की परंपरा को हां-नहीं' में बदलने वाले स्पीकर की विनम्रता के कायल खुद प्राधनमंत्री नरेंद्र मोदी भी हैं तो दूसरी तरफ वह सदन में व्यवस्था बनाए रखने के लिए सख्ती में भी कमी नहीं रखते। लोकसभा में इस बार रेकॉर्ड कामकाज का श्रेय उन्हें ही दिया जा रहा है।

राजस्थान की कोटा-बूंदी सीट से चुनकर दूसरी बार संसद पहुंचे ओम बिरला का संसदीय अनुभव भले ही कम हो, लेकिन जिस अंदाज में उन्होंने सदन को अब तक संभाला है उसकी काफी चर्चा हो रही है। अधिक से अधिक सांसद अपने क्षेत्र की समस्याओं को उठा सकें, इसके लिए उन्होंने शून्य काल की समयसीमा (60 मिनट) को भी खत्म कर दिया है। अक्सर लंच लेट होता है और सांसद डिनर टाइम तक लोकसभा में बहस करते नजर आते हैं। पिछले दिनों तृणमूल कांग्रेस के सांसद सौगत रॉय ने तो यहां तक कहा कि आप (स्पीकर) नए सांसदों को बोलने का मौका देने के लिए अपनी भूख की पीड़ा को भूल गए हैं। आप इस बात पर एक उदाहरण हैं कि कामकाज कैसे किया जाना चाहिए।

'आसन पैरों पर है'
जब भी किसी बात पर हंगामा बढ़ता है तो स्पीकर का इतना कहना काफी होता है-'आसन पैरों पर है'। संसदीय परंपरा है कि जब भी स्पीकर खड़े होते हैं, दूसरे सदस्य बैठ जाते हैं। हालांकि, अक्सर ऐसा होता था कि सांसद स्पीकर के निर्देशों को अनसुना करते हुए टीका-टिप्पणी में जुटे रहते थे, लेकिन नए स्पीकर 'आसन पैरों पर है' कहकर सांसदों को मर्यादा याद दिलाने में कामयाब रहते हैं।

यस-नो अब हां-नहीं
संसद में किसी प्रस्ताव या बिल पर वोटिंग के दौरान स्पीकर यस या नो में जवाब मांगते थे, लेकिन बिरला ने इसे हां या ना में बदल दिया है। वह पुरानी रवायतों और नियमों को बदलने के पक्षधर हैं। गुरुवार को भी तृणमूल कांग्रेस के सांसद कल्याण बनर्जी के सुझाव का समर्थन करते हुए स्पीकर ने कहा कि अंग्रेजों के समय बने कानूनों को बदलने का प्रयास किया जाए।

पक्ष-विपक्ष का साथ
निर्विरोध स्पीकर चुने गए बिरला अब तक सभी पक्षों को साथ लेकर चलने में कामयाब रहे हैं। अक्सर संसद के बाहर और भीतर सांसद इस बात के लिए ओम बिरला की तारीफ करते हैं। सदन में अक्सर देखा जा रहा है कि वह विपक्षी सांसदों को अपनी बात रखने का पूरा मौका देते हैं तो अनुशासन का पाठ सत्ता पक्ष के सांसदों को भी पढ़ाते हैं। कई बार अनावश्यक टोका-टिप्पणी पर उन्होंने मंत्रियों को भी फटकार लगाई है।

20 सालों में सबसे अधिक कामकाज
यह 17वीं लोकसभा का पहला सत्र है। उत्पादकता के मामले में 20 वर्षों का रेकॉर्ड टूट गया है। पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च के जारी आंकड़े बताते हैं कि 16 जुलाई तक लोकसभा की उत्पादकता 128% रही जो 20 वर्षों के दौरान आहूत किसी भी सत्र के मुकाबले सबसे ज्यादा है। इसने करीब-करीब 125% प्रॉडक्टिवटी वाले 2016 के बजट सत्र और फिर 2014 के शीत सत्र को पीछे छोड़ दिया।

'सुबह 3 बजे तक सदन चालने को तैयार'सबसे ज्यादा उत्पादक दिन 11 जुलाई रहा जब सदन में रेल मंत्रालय के लिए लेखा अनुदान पर मध्य रात्रि तक बहस हुई। सूत्रों ने कहा कि लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने लोकसभा सचिवालय को अहले सुबह तक के लिए जरूरी वस्तुओं की व्यवस्था करने का निर्देश दिया था क्योंकि पहले सुबह 3 बजे तक सदन चलाने की योजना बनी थी। 16 जुलाई को भी लोकसभा की कार्यवाही मध्य रात्रि तक चली। लोकसभा अपने तय समय से अधिक काम कर रही है और उसने विधायी कार्यों को पूरा करने के लिये दो बार मध्यरात्रि तक काम किया है।

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