नई दिल्ली
लोकसभा में नागरिकता संशोधन विधेयक को लेकर चर्चा के दौरान कांग्रेस ने स्वतंत्रता सेनानी वीर सावरकर पर देश के विभाजन का विचार पेश करने का आरोप लगाया। कांग्रेस के सीनियर लीडर मनीष तिवारी ने कहा कि गृह मंत्री अमित शाह ने 1947 में धर्म के आधार पर देश के विभाजन के लिए कांग्रेस को जिम्मेदार ठहराया था, लेकिन यह सच नहीं है। उन्होंने कहा कि तथ्य यह है कि पहली बार अहमदाबाद में 1935 में वीर सावरकर ने द्विराष्ट्र का सिद्धांत दिया था। हिंदू महासभा के अधिवेशन में उन्होंने यह बात कही थी। उनके इस आरोप पर बीजेपी सांसदों ने ऐतराज भी जताया। नागरिकता संशोधन विधेयक को लेकर सरकार पर वार करते हुए मनीष तिवारी ने कहा कि हम नागरिकों में कोई भेदभाव नहीं करते हैं तो फिर नागरिकता देने में भी ऐसा नहीं किया जाना चाहिए।
'हर शरणार्थियों को देखें बराबरी की नजर से'
मनीष तिवारी ने कहा कि आखिर हम अलग-अलग देशों के शरणार्थियों के लिए अलग-अलग कानून क्यों बनाएं। उन्होंने कहा कि हम शरणार्थियों में धर्म नहीं देख सकते। यदि कोई शरणार्थी है तो हमारा फर्ज बनता है कि उसे बराबरी की नजर से देखा जाए।
पारसियों ने कहा था, शक्कर की तरह घुलमिल जाएंगे
पारसियों के भारत आगमन का जिक्र करते हुए मनीष तिवारी ने कहा कि गुजरात में जब वे पहुंचे तो राजा ने उन्हें दूध से भरा बर्तन उन्हें भेजा। इसका संकेत था कि यहां जगह नहीं है। इस पर पारसियों ने उसमें शक्कर मिला दी और कहा कि हम इस तरह से यहां घुल-मिल जाएंगे। यही हमारी परंपरा है।
लोकसभा में नागरिकता संशोधन विधेयक को लेकर चर्चा के दौरान कांग्रेस ने स्वतंत्रता सेनानी वीर सावरकर पर देश के विभाजन का विचार पेश करने का आरोप लगाया। कांग्रेस के सीनियर लीडर मनीष तिवारी ने कहा कि गृह मंत्री अमित शाह ने 1947 में धर्म के आधार पर देश के विभाजन के लिए कांग्रेस को जिम्मेदार ठहराया था, लेकिन यह सच नहीं है।
'हर शरणार्थियों को देखें बराबरी की नजर से'
मनीष तिवारी ने कहा कि आखिर हम अलग-अलग देशों के शरणार्थियों के लिए अलग-अलग कानून क्यों बनाएं। उन्होंने कहा कि हम शरणार्थियों में धर्म नहीं देख सकते। यदि कोई शरणार्थी है तो हमारा फर्ज बनता है कि उसे बराबरी की नजर से देखा जाए।
पारसियों ने कहा था, शक्कर की तरह घुलमिल जाएंगे
पारसियों के भारत आगमन का जिक्र करते हुए मनीष तिवारी ने कहा कि गुजरात में जब वे पहुंचे तो राजा ने उन्हें दूध से भरा बर्तन उन्हें भेजा। इसका संकेत था कि यहां जगह नहीं है। इस पर पारसियों ने उसमें शक्कर मिला दी और कहा कि हम इस तरह से यहां घुल-मिल जाएंगे। यही हमारी परंपरा है।