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Elections in Pandemic: चुनावी रैलियों में सबकुछ माफ और वोटिंग में बटन दबाने के लिए ग्लव्स तक का इंतजाम, किसे धोखा दे रहे हम?

चुनावी राज्यों में तो जैसे कोरोना का कोई खतरा ही नहीं है। ​​​नियमों को ठेंगे पर रखकर रैलियों में लोगों का रेला उमड़ रहा है। न नेता नियमों को मान रहे हैं न उनके समर्थक। हां, वोटिंग के दौरान पोलिंग बूथों पर कोरोना को लेकर फुलप्रूफ इंतजाम जरूरी दिख रहे हैं।

नवभारतटाइम्स.कॉम 10 Apr 2021, 5:44 pm

हाइलाइट्स

  • पोलिंग बूथों पर वोटरों के लिए सैनिटाइजर और ग्लव्स तक के इंतजाम, लेकिन रैलियों में सब 'माफ'
  • चुनाव प्रचार और रैलियों में न कोई मास्क में दिख रहा है और न ही दो गज की दूरी के नियम का पालन हो रहा
  • चुनाव आयोग ने चेतावनी दी है कि कोरोना नियमों का पालन नहीं हुआ तो रैली पर रोक लगा सकते हैं, फिर भी कोई असर नहीं
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कोलकाता
पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव के चौथे चरण के लिए शनिवार को 44 सीटों पर वोटिंग के दौरान बूथों पर ऐसे फुलप्रूफ उपाय किए गए कि कोरोना वायरस भूलकर भी पास न फटके। सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए कतार में लगे वोटर, सबके मुंह और नाक मास्क से ढंके हुए। बूथ पर सैनिटाइजर के भी इंतजाम। और तो और, वोटर्स को ग्लव्स भी दिए जा रहे ताकि ईवीएम का बटन दबाते वक्त उंगलियों का डायरेक्ट संपर्क न हो। यानी कोरोना वायरस के लिए नो चांस। लेकिन चुनावी रैलियों के लिए तो जैसे सबकुछ माफ है। न कहीं मास्क है, न कहीं दो गज की दूरी। सवाल उठता है कि कोरोना के खिलाफ क्या ऐसे जंग जीती जाएगी।
वोटिंग के दौरान कोरोना नियमों का सख्ती से पालन हो रहा लेकिन ज्यादा नहीं, दो दिन पहले तक यही वोटर चुनावी रैलियों में उमड़े थे। चाहे जिस भी पार्टी की रैली हो, कोरोना नियमों का मखौल बनाया जा रहा है। ठेंगा दिखाया जा रहा है। सोशल मीडिया पर ऐसे मीम्स और जोक वायरल हो रहे हैं कि कोरोना को डर सिर्फ चुनावों से लगता है। चुनावी रैलियों को ये छूता भी नहीं है। मजाक अपनी जगह, लेकिन रैलियों में कोरोना नियमों की उड़ रही धज्जियां यही बताती हैं कि महामारी को लेकर हम खुद को धोखा दे रहे हैं।

पोलिंग बूथ पर वोटरों के लिए सैनिटाइजर के साथ-साथ ग्लव्स तक का इंतजाम है


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देश में कोरोना की नई प्रचंड लहर के मद्देनजर तमाम राज्य फिर से सख्ती कर रहे हैं। कहीं नाइट कर्फ्यू तो कहीं दफ्तरों में वर्कफोर्स पर कैंची के फरमान। कहीं वीकेंड लॉकडाउन तो कहीं स्थानीय स्तर पर कंपलीट लॉकडाउन। स्कूल बंद हैं, कोचिंग बंद हैं। जलसों पर पाबंदी है। शादी-विवाह जैसे समारोहों और अंतिम संस्कार में शामिल लोगों की अधिकतम संख्या तय की गई है। नियमों के उल्लंघन पर केस दर्ज हो रहे हैं। मास्क नहीं लगाने या ठीक से नहीं लगे होने पर कुछ जगहों पर सरेआम बेइज्जत किया जा रहा है, पीटा जा रहा है। पिटने और प्रताड़ित होने वाला जब चुनावी राज्यों को देखता होगा तो उसके जख्म और बढ़ जाते होंगे।

पोलिंग बूथ पर कतार में खड़े वोटर


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चुनावी राज्यों में तो जैसे कोरोना का कोई खतरा ही नहीं है। नियमों को ठेंगे पर रखकर रैलियों में लोगों का रेला उमड़ रहा है। न नेता नियमों को मान रहे हैं न उनके समर्थक। नियमों के सख्ती से पालन नहीं होने की वजह से ही दूसरी लहर दिन ब दिन विकराल होती जा रही है। तो क्या चुनावी राज्यों में नियमों की उड़ रही धज्जियों से अन्य राज्यों के लोगों में लापरवाही के भाव नहीं आएंगे?

रैलियों में न मास्क नजर आता है न 'दो गज की दूरी' ही दिखती है


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कोविड-19 के लगातार बढ़ते मामलों के बीच चुनाव प्रचार के दौरान कोरोना नियमों की धज्जियां उड़ने पर दिल्ली हाई कोर्ट ने गुरुवार को सख्त नाराजगी जताई। हाई कोर्ट ने केंद्र और चुनाव आयोग को नोटिस जारी कर पूछा कि रैलियों में लोग बिना मास्क के क्यों नजर आ रहे हैं। कोर्ट ने दो टूक कहा कि रैलियों में लोगों का मास्क पहनना सुनिश्चित किया जाए।

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हाई कोर्ट की नाराजगी के बाद चुनाव आयोग ने फरमान जारी किया कि चुनाव प्रचार के दौरान कोरोना गाइडलाइंस का पालन नहीं हुआ तो कड़ी कार्रवाई होगी। रैलियों पर रोक लगाई जा सकती है। उम्मदवारों, स्टार प्रचारकों के चुनाव प्रचार करने पर रोक लगाई जा सकती है। आयोग ने यह फरमान तब जारी किया जब असम, तमिलनाडु, केरल और पुडुचेरी के चुनाव खत्म हो चुके हैं और नतीजों का इंतजार है। बंगाल में अभी 4 और चरणों के लिए वोटिंग बाकी है।

आयोग के सख्त फरमान के बाद भी बंगाल के चुनाव प्रचार में पहले जैसा ही नजारा है लेकिन न अब तक किसी नेता की रैली पर रोक लगाई गई है और न ही किसी पार्टी ने आयोग से इस बारे में कोई शिकायत की है। करेंगे भी तो कैसे, नियमों का मखौल उड़ाने में कोई भी पार्टी किसी दूसरे दल से कम थोड़े ही है।

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