प्रदीप ठाकुर, नई दिल्ली
पूर्वी लद्दाख में पैंगोंग झील के दक्षिणी तट पर अब चीन की चालबाजी नहीं चलेगी। 29-30 अगस्त की रात को भारतीय जवानों ने वहां ऊंचाइयों पर कब्जा कर लिया है। अब चीन के हर मूवमेंट पर हमारी नजर होगी यानी ऐडवांटेज हमारे पास है। और ये ऐडवांटेज हासिल हुआ है भारत की एक खुफिया फोर्स 'इस्टैब्लिशमेंट 22' (टूटू) की बदौलत। 'स्पेशल फ्रंटियर फोर्स' (SFF) के नाम से जानी जाने वाली यह फोर्स सीधे कैबिनेट सचिवालय और प्रधानमंत्री कार्यालय से कंट्रोल होती है। आइए लद्दाख में चीन को हक्का-बक्का करने वाली इस फोर्स के बारे में जानते हैं। एलीट पैराट्रूपर्स होते हैं SFF के सारे कमांडो
1962 की जंग खत्म होते-होते, SFF का गठन कर दिया गया था। इसमें भारत में रहने वाले तिब्बती शरणार्थियों को शामिल किया जाता है। उन्हें शुरू में इंटेलिजेंस ब्यूरो (IB), रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (R&AW) और अमेरिका की सीआईए ने ट्रेनिंग दी थी। कई दशकों तक फोर्स को चीन की न्यूक्लियर मिसाइलें तैनात करने की योजना पर नजर रखने को कहा गया। इसका हेडक्वार्टर चकराता (उत्तराखंड) में है। SFF में कम से कम पांच बटालियन हैं जिनमें माउंटेन वारफेयर में ट्रेन्ड 5,000 कमांडोज हैं जो एलीट पैराट्रूपर्स हैं।
चीन से तनाव के बीच लेह दौरे पर पहुंचे आर्मी चीफ नरवणे, क्या संकेत?
Establishment 22 नाम कैसे मिला?
स्पेशल फ्रंटियर फोर्स के पहले इंस्पेक्टर जनरल थे मेजर जनरल (रिटायर्ड) सुजन सिंह। वह दूसरे विश्व युद्ध में 22 माउंटेन रेजिमेंट के कमांडर थे। उन्हें मिलिट्री क्रॉस से सम्मानित किया गया था और ब्रिटिश भारतीय सेना में उनका अच्छा-खासा कद था।
भयंकर ठंड में बनियान पहनकर खेलते हैं कमांडो
आर्मी का सर्विंग या रिटायर्ड, कोई भी अधिकारी शनिवार रात के ऑपरेशन में SFF की भूमिका पर बात नहीं करेगा। लेकिन सबने कहा कि लद्दाख और अन्य जगहों पर SFF की बटालियनें मौजूद हैं। 15 कॉर्प्स के चीफ रहे लेफ्टिनेंट जनरल सैयद अता हसनैन (रिटायर्ड)कहते हैं कि "लद्दाख में रहते हुए मेरे साथ 'विकास' यूनिट्स थीं। मैंने उन्हें 16,000 फीट की ऊंचाई पर बनियान पहनकर वॉलीबाल खेलते देखा है। इस जमीन से उनका लगाव बहुत ज्यादा है, इससे उनको ऑपरेशंस में ऐडवांटेज मिलता है।"
लद्दाख में पिटने के बाद चीन ने खेला विक्टिम कार्ड
SFF के बारे में बोलना मना है
एक रिटायर्ड ले. जनरल ने कहा, "हमें उनके बारे में पता है... लेकिन उनकी मौजूदगी का रिकॉर्ड नहीं है। हममें से जिन कुछ ने उनके साथ काम किया, वे शपथ से बंधे हैं। एलओसी पार सर्जिकल स्ट्राइक्स के समय उत्तरी कमान के प्रमुख रहे ले. जनरल डीएस हुड्डा (रिटायर्ड) कहते हैं कि यह वक्त है कि चीन के जिद्दी रवैये का भारत आर्थिक, कूटनीतिक और जरूरी पड़े तो सैन्य तरीके से करारा जवाब दे। उन्होंने कहा कि सेना किसी भी चैलेंज से निपटने को तैयार है।
मिशन के दौरान SFF अधिकारी की मौतSFF के एक कंपनी कमांडर की लैंडमाइन ब्लास्ट में मौत हो गई है। एक जूनियर कमांडो भी घायल है। हादसा तब हुआ जब वे झील के दक्षिणी किनारे पर ऑपरेशन में थे। 1962 की जंग के समय बिछाई गई एक लैंडमाइन पर पैर पड़ गया था। एक अधिकारी के अनुसार, वे 29-30 अगस्त की रात ऊंचाइयां हासिल करने वाले ऑपरेशन से सीधे तौर पर नहीं जुड़े थे। हालांकि, नीमा तेंजिन (53) की मौत के बारे में पूरी जानकारी सामने नहीं रखी गई है।
पूर्वी लद्दाख में पैंगोंग झील के दक्षिणी तट पर अब चीन की चालबाजी नहीं चलेगी। 29-30 अगस्त की रात को भारतीय जवानों ने वहां ऊंचाइयों पर कब्जा कर लिया है। अब चीन के हर मूवमेंट पर हमारी नजर होगी यानी ऐडवांटेज हमारे पास है। और ये ऐडवांटेज हासिल हुआ है भारत की एक खुफिया फोर्स 'इस्टैब्लिशमेंट 22' (टूटू) की बदौलत। 'स्पेशल फ्रंटियर फोर्स' (SFF) के नाम से जानी जाने वाली यह फोर्स सीधे कैबिनेट सचिवालय और प्रधानमंत्री कार्यालय से कंट्रोल होती है। आइए लद्दाख में चीन को हक्का-बक्का करने वाली इस फोर्स के बारे में जानते हैं।
1962 की जंग खत्म होते-होते, SFF का गठन कर दिया गया था। इसमें भारत में रहने वाले तिब्बती शरणार्थियों को शामिल किया जाता है। उन्हें शुरू में इंटेलिजेंस ब्यूरो (IB), रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (R&AW) और अमेरिका की सीआईए ने ट्रेनिंग दी थी। कई दशकों तक फोर्स को चीन की न्यूक्लियर मिसाइलें तैनात करने की योजना पर नजर रखने को कहा गया। इसका हेडक्वार्टर चकराता (उत्तराखंड) में है। SFF में कम से कम पांच बटालियन हैं जिनमें माउंटेन वारफेयर में ट्रेन्ड 5,000 कमांडोज हैं जो एलीट पैराट्रूपर्स हैं।
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स्पेशल फ्रंटियर फोर्स के पहले इंस्पेक्टर जनरल थे मेजर जनरल (रिटायर्ड) सुजन सिंह। वह दूसरे विश्व युद्ध में 22 माउंटेन रेजिमेंट के कमांडर थे। उन्हें मिलिट्री क्रॉस से सम्मानित किया गया था और ब्रिटिश भारतीय सेना में उनका अच्छा-खासा कद था।
भयंकर ठंड में बनियान पहनकर खेलते हैं कमांडो
आर्मी का सर्विंग या रिटायर्ड, कोई भी अधिकारी शनिवार रात के ऑपरेशन में SFF की भूमिका पर बात नहीं करेगा। लेकिन सबने कहा कि लद्दाख और अन्य जगहों पर SFF की बटालियनें मौजूद हैं। 15 कॉर्प्स के चीफ रहे लेफ्टिनेंट जनरल सैयद अता हसनैन (रिटायर्ड)कहते हैं कि "लद्दाख में रहते हुए मेरे साथ 'विकास' यूनिट्स थीं। मैंने उन्हें 16,000 फीट की ऊंचाई पर बनियान पहनकर वॉलीबाल खेलते देखा है। इस जमीन से उनका लगाव बहुत ज्यादा है, इससे उनको ऑपरेशंस में ऐडवांटेज मिलता है।"
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SFF के बारे में बोलना मना है
एक रिटायर्ड ले. जनरल ने कहा, "हमें उनके बारे में पता है... लेकिन उनकी मौजूदगी का रिकॉर्ड नहीं है। हममें से जिन कुछ ने उनके साथ काम किया, वे शपथ से बंधे हैं। एलओसी पार सर्जिकल स्ट्राइक्स के समय उत्तरी कमान के प्रमुख रहे ले. जनरल डीएस हुड्डा (रिटायर्ड) कहते हैं कि यह वक्त है कि चीन के जिद्दी रवैये का भारत आर्थिक, कूटनीतिक और जरूरी पड़े तो सैन्य तरीके से करारा जवाब दे। उन्होंने कहा कि सेना किसी भी चैलेंज से निपटने को तैयार है।
मिशन के दौरान SFF अधिकारी की मौतSFF के एक कंपनी कमांडर की लैंडमाइन ब्लास्ट में मौत हो गई है। एक जूनियर कमांडो भी घायल है। हादसा तब हुआ जब वे झील के दक्षिणी किनारे पर ऑपरेशन में थे। 1962 की जंग के समय बिछाई गई एक लैंडमाइन पर पैर पड़ गया था। एक अधिकारी के अनुसार, वे 29-30 अगस्त की रात ऊंचाइयां हासिल करने वाले ऑपरेशन से सीधे तौर पर नहीं जुड़े थे। हालांकि, नीमा तेंजिन (53) की मौत के बारे में पूरी जानकारी सामने नहीं रखी गई है।