बेंगलुरु/ नई दिल्ली
कर्नाटक में एचडी कुमारस्वामी के शपथ ग्रहण समारोह में विपक्ष के सभी कद्दावर नेता एक साथ दिखे। एक ही मंच पर विपक्ष के इतने नेताओं को एक साथ देखकर एक बार फिर से 2019 में लोकसभा चुनावों से पहले एकजुट विपक्ष को लेकर अटकलों का बाजार गर्म है। इस साल मार्च में यूपी के गोरखपुर और फूलपुर में हुए उपचुनाव में एसपी और बीएसपी गठबंधन के कारण मिली जीत ने विपक्षी एकता की बात को और मजबूत कर दिया है। 2014 के लोकसभा चुनावों को देखते हुए यह साफ कहा जा सकता है कि अगर विपक्ष के महत्वपूर्ण दलों के साथ गठबंधन होता है तो इसका प्रभाव सिर्फ उत्तर प्रदेश तक ही रहेगा। हमारे सहयोगी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया ने इस पर एक विस्तृत विश्लेषण किया है। विश्लेषण में सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में जितनी सीटों पर बीजेपी जीती है उनकी संख्या निकाली गई। फिर उनमें विपक्ष के एकजुट होने पर कुल वोटों की संख्या क्या थी यह जोड़ा गया है और इससे बीजेपी के सीटों की संख्या में कितनी कमी आ सकती है, यह परिणाम निकाला गया।
पढ़ें: मोदी vs ऑल: 1996 के बाद सबसे बड़ा मोर्चा...कब तक?
UP में बीजेपी को होगा सबसे ज्यादा नुकसान?
इस सर्वे का नतीजा यह निकला है कि उत्तर प्रदेश में बीजेपी को सबसे अधिक नुकसान होनेवाला है। लोकसभा चुनावों में यूपी में बीजेपी ने 71 सीटें जीतीं, लेकिन अगर विपक्षी एकता बनती है तो यह संख्या घटकर 46 रह जाएगी। यूपी को छोड़कर बाकी सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में यह अंतर सिर्फ 12 सीटों का रह जाएगा। 2014 चुनावों में जेडीयू और बीजेपी एक-दूसरे के खिलाफ लड़े थे, लेकिन अब गठबंधन में सरकार चला रहे हैं। अगर इनमें जेडीयू की 2 सीटों को अब बीजेपी के खाते में जोड़ लिया जाए तो यूपी के अलावा पूरे देश में सीटें घटने का यह आंकड़ा सिर्फ 10 ही रहेगा।
POLL: मोदी सरकार के 4 साल पर दें अपनी राय
फिर भी बनेगी सबसे बड़ी पार्टी!
अगर सिर्फ आंकड़ों की बात की जाए तो 2014 में विभिन्न पार्टियों को मिले कुल वोट के बाद भी बीजेपी आसानी से 226 का आंकड़ा पार कर लेगी और देश की सबसे बड़ी पार्टी जरूर बन सकती है। सबसे बड़ी पार्टी होने के कारण बीजेपी के लिए सरकार बनाना कोई अधिक चुनौतीपूर्ण काम नहीं रहेगा। हालांकि, इसमें कोई शक नहीं है कि चुनाव सिर्फ गणितीय समीकरण नहीं होते हैं।
केवल गणितीय समीकरण ही काफी नहीं
अगर सिर्फ आंकड़ों और गणितीय समीकरणों के आधार पर चुनाव जीते जा सकते थे तो गोरखपुर और फूलपुर उपचुनावों में बीजेपी के हारने की कोई वजह नहीं थी। आंकड़ों से ही चुनाव जीते जाते तो 2014 के बाद हुए 4 उपचुनावों रतलाम, गुरदासपुर, अजमेर और अलवर की सीट भी बीजेपी के हाथ से नहीं निकलती। स्पष्ट है कि चुनाव में जीत सिर्फ गणितीय आंकड़ों के अनुसार नहीं होती है।
जीत के लिए केमिस्ट्री भी जरूरी
अब तक जो आंकड़े पेश किए गए वह वोटों के गुणा भाग पर आधारित गणितीय समीकरण जैसे थे। इसमें कोई शक नहीं है कि चुनाव जीतने में समीकरणों के साथ केमिस्ट्री भी जरूरी होती है। 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव और गोरखपुर-फूलपुर उपचुनाव में जनता ने देखा कि केमिस्ट्री ठीक हो तो नतीजे कैसे बदल सकते हैं। हालांकि, यहां यह भी ध्यान रखना होगा कि पार्टियों के लिए मतदाताओं को एक-दूसरे के कैंडिडेट्स को वोट देने के लिए राजी करना भी बेहद मुश्किल काम होता है।
विपक्ष का लक्ष्य स्पष्ट होना भी जरूरी
पार्टियों के गठबंधन के लिए यह भी जरूरी है कि गठबंधन का लक्ष्य क्या है? अपने कॉमन दुश्मन को हराने के लिए गठबंधन कर लेना भर काफी नहीं होता है। इसके साथ ही कुछ सकारात्मक और आदर्श उद्देश्य भी गठबंधन के होने जरूरी हैं, ताकि मतदाता प्रभावित हो सके। इसके साथ ही उस वक्त की परिस्थितियां और जनता के मनोभाव भी गठबंधन को जिताने या हराने में बड़ी भूमिका निभाते हैं। इसलिए वोटों के गणितीय समीकरणों के साथ पार्टियों की आपसी केमिस्ट्री भी गठबंधन के लिए जरूरी है।
कर्नाटक में एचडी कुमारस्वामी के शपथ ग्रहण समारोह में विपक्ष के सभी कद्दावर नेता एक साथ दिखे। एक ही मंच पर विपक्ष के इतने नेताओं को एक साथ देखकर एक बार फिर से 2019 में लोकसभा चुनावों से पहले एकजुट विपक्ष को लेकर अटकलों का बाजार गर्म है। इस साल मार्च में यूपी के गोरखपुर और फूलपुर में हुए उपचुनाव में एसपी और बीएसपी गठबंधन के कारण मिली जीत ने विपक्षी एकता की बात को और मजबूत कर दिया है। 2014 के लोकसभा चुनावों को देखते हुए यह साफ कहा जा सकता है कि अगर विपक्ष के महत्वपूर्ण दलों के साथ गठबंधन होता है तो इसका प्रभाव सिर्फ उत्तर प्रदेश तक ही रहेगा।
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UP में बीजेपी को होगा सबसे ज्यादा नुकसान?
इस सर्वे का नतीजा यह निकला है कि उत्तर प्रदेश में बीजेपी को सबसे अधिक नुकसान होनेवाला है। लोकसभा चुनावों में यूपी में बीजेपी ने 71 सीटें जीतीं, लेकिन अगर विपक्षी एकता बनती है तो यह संख्या घटकर 46 रह जाएगी। यूपी को छोड़कर बाकी सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में यह अंतर सिर्फ 12 सीटों का रह जाएगा। 2014 चुनावों में जेडीयू और बीजेपी एक-दूसरे के खिलाफ लड़े थे, लेकिन अब गठबंधन में सरकार चला रहे हैं। अगर इनमें जेडीयू की 2 सीटों को अब बीजेपी के खाते में जोड़ लिया जाए तो यूपी के अलावा पूरे देश में सीटें घटने का यह आंकड़ा सिर्फ 10 ही रहेगा।
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फिर भी बनेगी सबसे बड़ी पार्टी!
अगर सिर्फ आंकड़ों की बात की जाए तो 2014 में विभिन्न पार्टियों को मिले कुल वोट के बाद भी बीजेपी आसानी से 226 का आंकड़ा पार कर लेगी और देश की सबसे बड़ी पार्टी जरूर बन सकती है। सबसे बड़ी पार्टी होने के कारण बीजेपी के लिए सरकार बनाना कोई अधिक चुनौतीपूर्ण काम नहीं रहेगा। हालांकि, इसमें कोई शक नहीं है कि चुनाव सिर्फ गणितीय समीकरण नहीं होते हैं।
केवल गणितीय समीकरण ही काफी नहीं
अगर सिर्फ आंकड़ों और गणितीय समीकरणों के आधार पर चुनाव जीते जा सकते थे तो गोरखपुर और फूलपुर उपचुनावों में बीजेपी के हारने की कोई वजह नहीं थी। आंकड़ों से ही चुनाव जीते जाते तो 2014 के बाद हुए 4 उपचुनावों रतलाम, गुरदासपुर, अजमेर और अलवर की सीट भी बीजेपी के हाथ से नहीं निकलती। स्पष्ट है कि चुनाव में जीत सिर्फ गणितीय आंकड़ों के अनुसार नहीं होती है।
जीत के लिए केमिस्ट्री भी जरूरी
अब तक जो आंकड़े पेश किए गए वह वोटों के गुणा भाग पर आधारित गणितीय समीकरण जैसे थे। इसमें कोई शक नहीं है कि चुनाव जीतने में समीकरणों के साथ केमिस्ट्री भी जरूरी होती है। 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव और गोरखपुर-फूलपुर उपचुनाव में जनता ने देखा कि केमिस्ट्री ठीक हो तो नतीजे कैसे बदल सकते हैं। हालांकि, यहां यह भी ध्यान रखना होगा कि पार्टियों के लिए मतदाताओं को एक-दूसरे के कैंडिडेट्स को वोट देने के लिए राजी करना भी बेहद मुश्किल काम होता है।
विपक्ष का लक्ष्य स्पष्ट होना भी जरूरी
पार्टियों के गठबंधन के लिए यह भी जरूरी है कि गठबंधन का लक्ष्य क्या है? अपने कॉमन दुश्मन को हराने के लिए गठबंधन कर लेना भर काफी नहीं होता है। इसके साथ ही कुछ सकारात्मक और आदर्श उद्देश्य भी गठबंधन के होने जरूरी हैं, ताकि मतदाता प्रभावित हो सके। इसके साथ ही उस वक्त की परिस्थितियां और जनता के मनोभाव भी गठबंधन को जिताने या हराने में बड़ी भूमिका निभाते हैं। इसलिए वोटों के गणितीय समीकरणों के साथ पार्टियों की आपसी केमिस्ट्री भी गठबंधन के लिए जरूरी है।