नई दिल्ली
दलितों के खिलाफ अपराधों के मुकदमे बढ़ते ही जा रहे हैं। पिछले तीन साल में करीब डेढ़ लाख मामले दर्ज किए गए। भारत सरकार ने मंगलवार को संसद में यह जानकारी दी। केंद्र ने कहा कि 2018 से 2020 के बीच दलितों के खिलाफ अपराध के 1,38,045 मामले दर्ज हुए। गृह मंत्रालय के डेटा के मुताबिक, इनमें से 50,291 मामले तो अकेले पिछले साल सामने आए। इन तीन सालों के दौरान, सबसे ज्यादा 36,467 केस उत्तर प्रदेश में दर्ज हुए। इसके बाद बिहार (20,973 मामले), राजस्थान (18,418) और मध्य प्रदेश (16,952) में दलितों पर सबसे ज्यादा जुल्म हुए। इन राज्यों में दलितों पर अत्याचार कम
MHA का डेटा बताता है कि 2018-20 के बीच दलितों के खिलाफ अपराधों के सबसे कम मामले पश्चिम बंगाल में दर्ज हुए। वहां तीन सालों में ऐसे केवल 373 मामले आए। पंजाब से तीन सालों में 499 मामले, छत्तीसगढ़ से 921 और झारखंड से 1,854 केसेज रिकॉर्ड में दर्ज हुए। हालांकि कुछ ऐक्टिविस्ट्स ने इन राज्यों पर प्रशासनिक विफलता के आरोप लगाए हैं जिसके चलते कथित रूप से कई दलित पीड़ित शिकायत तक दर्ज नहीं करा सके।
गृह मंत्रालय के अनुसार, साल 2020 में अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निरोधक) अधिनियम (SC/ST Act) के तहत 53,886 मामले दर्ज किए गए। 2019 में SC/ST ऐक्ट के तहत 49,608 मुकदमे दर्ज हुए थे।
बसपा सांसद ने पूछा था सवाल
दक्षिणी राज्यों की बात करें तो तमिलनाडु में तीन सालों के दौरान दलितों के खिलाफ अपराधों के 3,831 मामले दर्ज किए गए। केरल में इसी दौरान ऐसे 2,591 केस दर्ज हुए। आंध्र प्रदेश में ऐसे मुकदमों की संख्या 5,857 थी। अमरोहा से बहुजन समाज पार्टी के सांसद कुंवर दानिश अली ने इस संबंध में सवाल पूछा था। वह जानना चाहते थे कि क्या तेलंगाना और उत्तर प्रदेश में दलितों पर अत्याचार के मामले बढ़े हैं। जवाब में MHA ने कहा कि तेलंगाना में 2018-20 के बीच दलितों पर अत्याचार के 5,156 मुकदमे दर्ज हुए। कर्नाटक में यह आंकड़ा 4,227 रहा।
'दलितों के बीच बढ़ी कानून की समझ'अली ने कहा कि वे गृह मंत्रालय के जवाब से संतुष्ट नहीं हैं क्योंकि उन्होंने 'जिलेवार' डेटा मांगा था। उन्होंने हमारे सहयोगी द इकनॉमिक टाइम्स से बातचीत में कहा, 'उन्होंने बड़े डेटा पॉइंट्स ही दिए हैं, वो भी दिखाते हैं कि अपराध बढ़ रहे हैं।' ऑल इंडिया दलित महिला अधिकार मंच के राष्ट्रीय संयोजक विमल थोराट ने कहा कि यह अच्छा संकेत है कि कुछ राज्यों में दलितों के खिलाफ अपराध रिपोर्ट हो रहे हैं, मगर इसका मतलब यह नहीं कि न्याय भी मिल रहा है। उन्होंने कहा कि बढ़ते मामले यह बताते हैं कि दलितों के बीच कानून की समझ बढ़ रही है।
दलितों के खिलाफ अपराधों के मुकदमे बढ़ते ही जा रहे हैं। पिछले तीन साल में करीब डेढ़ लाख मामले दर्ज किए गए। भारत सरकार ने मंगलवार को संसद में यह जानकारी दी। केंद्र ने कहा कि 2018 से 2020 के बीच दलितों के खिलाफ अपराध के 1,38,045 मामले दर्ज हुए। गृह मंत्रालय के डेटा के मुताबिक, इनमें से 50,291 मामले तो अकेले पिछले साल सामने आए। इन तीन सालों के दौरान, सबसे ज्यादा 36,467 केस उत्तर प्रदेश में दर्ज हुए। इसके बाद बिहार (20,973 मामले), राजस्थान (18,418) और मध्य प्रदेश (16,952) में दलितों पर सबसे ज्यादा जुल्म हुए।
MHA का डेटा बताता है कि 2018-20 के बीच दलितों के खिलाफ अपराधों के सबसे कम मामले पश्चिम बंगाल में दर्ज हुए। वहां तीन सालों में ऐसे केवल 373 मामले आए। पंजाब से तीन सालों में 499 मामले, छत्तीसगढ़ से 921 और झारखंड से 1,854 केसेज रिकॉर्ड में दर्ज हुए। हालांकि कुछ ऐक्टिविस्ट्स ने इन राज्यों पर प्रशासनिक विफलता के आरोप लगाए हैं जिसके चलते कथित रूप से कई दलित पीड़ित शिकायत तक दर्ज नहीं करा सके।
साल | दलितों पर अत्याचार के मुकदमे |
2018 | 42,793 |
2019 | 45,961 |
2020 | 50,291 |
बसपा सांसद ने पूछा था सवाल
दक्षिणी राज्यों की बात करें तो तमिलनाडु में तीन सालों के दौरान दलितों के खिलाफ अपराधों के 3,831 मामले दर्ज किए गए। केरल में इसी दौरान ऐसे 2,591 केस दर्ज हुए। आंध्र प्रदेश में ऐसे मुकदमों की संख्या 5,857 थी। अमरोहा से बहुजन समाज पार्टी के सांसद कुंवर दानिश अली ने इस संबंध में सवाल पूछा था। वह जानना चाहते थे कि क्या तेलंगाना और उत्तर प्रदेश में दलितों पर अत्याचार के मामले बढ़े हैं। जवाब में MHA ने कहा कि तेलंगाना में 2018-20 के बीच दलितों पर अत्याचार के 5,156 मुकदमे दर्ज हुए। कर्नाटक में यह आंकड़ा 4,227 रहा।
'दलितों के बीच बढ़ी कानून की समझ'अली ने कहा कि वे गृह मंत्रालय के जवाब से संतुष्ट नहीं हैं क्योंकि उन्होंने 'जिलेवार' डेटा मांगा था। उन्होंने हमारे सहयोगी द इकनॉमिक टाइम्स से बातचीत में कहा, 'उन्होंने बड़े डेटा पॉइंट्स ही दिए हैं, वो भी दिखाते हैं कि अपराध बढ़ रहे हैं।' ऑल इंडिया दलित महिला अधिकार मंच के राष्ट्रीय संयोजक विमल थोराट ने कहा कि यह अच्छा संकेत है कि कुछ राज्यों में दलितों के खिलाफ अपराध रिपोर्ट हो रहे हैं, मगर इसका मतलब यह नहीं कि न्याय भी मिल रहा है। उन्होंने कहा कि बढ़ते मामले यह बताते हैं कि दलितों के बीच कानून की समझ बढ़ रही है।