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NAS Report 2021 : स्कूल चले बच्चे, पर कितना पढ़े? हर मां-बाप को समझना चाहिए स्टूडेंट्स की पढ़ाई पर हुआ यह सर्वे

शिक्षा मंत्रालय की राष्ट्रीय उपलब्धि सर्वेक्षण रिपोर्ट 2021 में छात्र-छात्राओं की पढ़ाई को लेकर कई बातें निकलकर सामने आई हैं। कोरोना महामारी के दौरान देश में 38 प्रतिशत छात्रों को घर पर पढ़ाई करने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। 24 प्रतिशत छात्रों के पास कोई डिजिटल उपकरण नहीं था।

Compiled byअनुराग मिश्र | नवभारतटाइम्स.कॉम 27 May 2022, 8:53 am

हाइलाइट्स

  • देश में 48 प्रतिशत बच्चे पैदल, 9 प्रतिशत स्कूल वाहनों से जाते हैं स्कूल
  • शिक्षा मंत्रालय ने जारी की राष्ट्रीय उपलब्धि सर्वेक्षण 2021 की रिपोर्ट
  • सर्वे में 1.18 लाख स्कूलों के 34 लाख छात्रों ने हिस्सा लिया
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नई दिल्ली: खुद पढ़ाई भले ही मुश्किल हालात में कैसे भी की हो, पर हर मां-बाप अपने बच्चे को अच्छे स्कूल में पढ़ाना चाहते हैं। उनका सपना होता है कि बच्चा पढ़कर एक अच्छा इंसान बने और सबसे जरूरी बात कि वह कुछ बन जाए। इसके लिए लोग अपनी गाढ़ी कमाई खर्च कर देते हैं। लेकिन बच्चों की पढ़ाई को लेकर देशभर में किया गया एक सर्वे गंभीर सवाल खड़े कर रहा है। राष्ट्रीय उपलब्धि सर्वेक्षण 2021 में बताया गया है कि जैसे-जैसे स्टूडेंट्स आगे की कक्षाओं में बढ़ते जाते हैं, उनका प्रदर्शन खराब होता जाता है। पिछले साल नवंबर में यह व्यापक सर्वे कक्षा 3, 5, 8 और 10 में किया गया। इससे पता चला कि बच्चों का औसत प्रदर्शन लगातार घटता चला गया। तीसरी कक्षा में विद्यार्थियों में जो सीखने की क्षमता थी, वो दसवीं तक आते-आते काफी घट गई। केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय की ओर से जारी किए गए NAS 2021 सर्वे के नतीजे हर अभिभावक और अध्यापक के लिए चिंता की बात है। उदाहरण के तौर पर गणित में औसत अंक कक्षा में बढ़ने के साथ ही 57 प्रतिशत से 44% के बाद 36 प्रतिशत और 32 प्रतिशत तक घट गया।
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शिक्षा का हाल समझिए
पिछला राष्ट्रीय उपलब्धि सर्वेक्षण 2017 में हुआ था। उससे तुलना करें तो नए सर्वे में प्रदर्शन और भी निराशाजनक मालूम पड़ता है। कक्षा तीन का गणित में राष्ट्रीय औसत अंक 57 प्रतिशत रह गया है जो पिछले सर्वे में 64 प्रतिशत था। एक सामान्य व्याख्या यह है कि ऊंची कक्षाओं में विषय और जटिल होता जाता है और ऐसे में बच्चों को ज्यादा शैक्षणिक कौशल के साथ पढ़ाने की आवश्यकता है। उचित सहयोग और प्रशिक्षण के बगैर, सीनियर स्टूडेंट्स के सीखने के स्तर और जरूरतों को पूरा करने में टीचर कहीं ज्यादा असफल साबित होंगे। यह भी समझना जरूरी है कि इस पर महामारी का कितना प्रभाव है?

80 प्रतिशत बच्चों की मदद करते हैं दोस्त
सर्वे में पता चला कि 25 प्रतिशत स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों को पढ़ाई में अभिभावकों से मदद नहीं मिली, 28 प्रतिशत विद्यार्थियों के घर पर डिजिटल डिवाइस नहीं है। यह पहलू भी महत्वपूर्ण है कि 80 प्रतिशत छात्रों ने कहा है कि वे स्कूल में चीजों को ज्यादा अच्छे से सीखते हैं, जहां उन्हें सहपाठी काफी मदद करते हैं।

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पंजाब का प्रदर्शन शानदार कैसे?
97 फीसदी टीचरों ने अपनी जॉब पर संतुष्टि जताई जबकि शिक्षण परिणाम अच्छे नहीं हैं। इस सर्वे से निकली सक्सेस स्टोरीज पर गौर करने और उस तरीके को अपनाने की जरूरत है। जैसे, यह समझना महत्वपूर्ण है कि कैसे पंजाब के छात्र हर कक्षा और विषय में अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं। यहां कक्षा 10 साइंस में औसत 46 प्रतिशत है जबकि राष्ट्रीय औसत 35 प्रतिशत है। छात्रों के प्रदर्शन के साथ ही टीचरों के स्किल्स पर भी ध्यान देने की जरूरत है। कक्षा को पास करने के लिए की जाने वाली पढ़ाई किसी काम नहीं आने वाली। युवा भारतीयों का भविष्य दांव पर लगा है।

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बेटों से आगे बेटियां
अपने समाज में आज भी एक बड़ा तबका बेटियों को लेकर आम धारणा रखता है कि सामान्य रूप से पढ़ाई-लिखाई करा दो, उसे तो एक दिन 'अपने घर' जाना है। बेटी की पढ़ाई पर वे ज्यादा खर्च नहीं करना चाहते हैं लेकिन सर्वे के नतीजे ऐसे लोगों की आंखें खोल सकते हैं। ज्यादातर स्तर पर बेटियों ने बेटों को पीछे छोड़ दिया है। साइंस, अंग्रेजी जैसे विषयों में वे लड़कों से काफी आगे हैं। तीसरी कक्षा में भाषा की परीक्षा में बेटियों के राष्ट्रीय औसत अंक 323 तो बेटों के 318 थे। इसी तरह 10वीं में अंग्रेजी की परीक्षा में बेटियों के औसत अंक 294 जबकि बेटों के 288 अंक रहे। सर्वे में एक अच्छी बात यह भी पता चली है कि ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के बीच पढ़ाई का अंतर पहले के मुकाबले कम हुआ है। अंग्रेजी विषय में अभी गांव के बच्चों का प्रदर्शन शहर की तुलना में कमजोर है।

इस सर्वे का मकसद तीसरी, पांचवी, आठवीं एवं दसवीं कक्षा के छात्रों के पठन-पाठन और सीखने की क्षमता सहित स्कूली शिक्षा प्रणाली की स्थिति का मूल्यांकन करना था। इस सर्वे में ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के 1.18 लाख स्कूलों के 34 लाख छात्रों ने हिस्सा लिया।

सर्वे की बड़ी बातें, जो आपको जाननी चाहिए
  • देश में 48 प्रतिशत बच्चे अपने विद्यालय पैदल जाते हैं, 18 प्रतिशत बच्चे साइकिल से, 9 प्रतिशत सार्वजनिक वाहनों से, 9 प्रतिशत स्कूली वाहनों से, 8 प्रतिशत अपने दोपहिया वाहन तथा 3 प्रतिशत अपने चौपहिया वाहन से स्कूल जाते हैं।
  • स्कूल जाने वाले बच्चों में 18 प्रतिशत की मां पढ़ या लिख नहीं सकती हैं जबकि 7 प्रतिशत साक्षर हैं, लेकिन स्कूल नहीं गई हैं।
  • 72 प्रतिशत छात्रों के पास घर पर डिजिटल उपकरण नहीं है।
  • 89 प्रतिशत बच्चे स्कूल में पढ़ाये गए पाठ को अपने परिवार के साथ साझा करते हैं और 78 प्रतिशत बच्चे ऐसे हैं जिसके घर पर बोली जाने वाली भाषा स्कूल के समान है।
  • 96 प्रतिशत बच्चे स्कूल आना चाहते हैं और 94 प्रतिशत स्कूल में सुरक्षित महसूस करते हैं।
लेखक के बारे में
अनुराग मिश्र
साइंस में ग्रैजुएट होने के बाद मीडिया की पढ़ाई की। डिप्लोमा के बाद मीडिया मैनेजमेंट में MBA, रेडियो से करियर की शुरुआत। आज, आज समाज, अमर उजाला में प्रिंट जर्नलिज्म के बाद नवभारतटाइम्स डॉट कॉम में कार्यरत। पेशे से पत्रकार, दिल से ठेठ इलाहाबादी।... और पढ़ें

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