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क्षेत्रीय दलों में दूसरे राज्यों में चुनाव लड़ने की ललक क्यों?

हाल ही के सालों में यह ट्रेंड काफी बढ़ा है कि क्षेत्रीय दल दूसरे राज्यों में चुनाव लड़ रहे हैं और इस ट्रेंड में अब बढ़ोतरी साफ देखी जा रही है। पिछले 4 साल के 15 विधानसभा चुनावों का ट्रेंड देखा जाए तो औसतन हर चुनाव में तीन क्षेत्रीय दलों ने दूसरे राज्यों में चुनावा लड़ा। यह अलग बात है कि न उन्हें कोई सीट मिली, न ही कहीं किसी सीट पर दूसरे नंबर पर आए।

Authored byनरेंद्र नाथ | नवभारत टाइम्स 21 Feb 2022, 10:08 am
नई दिल्ली: क्षेत्रीय दलों में दूसरे राज्यों में चुनाव लड़ने की ललक क्यों बढ़ी है? अपने गढ़ से बाहर विस्तार पाने की चाहत के पीछे इनकी असली मंशा क्या है? इस विस्तार के मायने क्या होते हैं? ये सवाल तब उठे हैं जब अभी हो रहे पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में कई क्षेत्रीय दल इन राज्यों में मैदान में उतरे हैं जहां इनका वजूद नहीं रहा है। टीएमसी गोवा में तो जेडीयू बिहार, मणिपुर जैसे राज्य में मैदान में है। वहीं महाराष्ट्र की शिवसेना हो या असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी हो या चिराग पासवान की अगुवाई वाली एलजेपी, ये तमाम दल मैदान में हैं। जानते हुए कि इनके लिए उतनी संभावना नहीं है जितनी ऊर्जा और संसाधन झोंके जा रहे हैं।

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कुछ दल तो असल में सियासी संभावना को देखते हुए अपना विस्तार करते हुए गंभीर प्लेयर बन रहे हैं। जैसे- आम आदमी पार्टी दिल्ली से निकलकर पंजाब जैसे राज्यों में ताकत बनी तो कुछ महज सियासी तौर पर अपने दल की मान्यता के रूप में प्रमोशन चाहते हैं। अगर पिछले चार साल के दौरान हुए 15 विधानसभा चुनावों का ट्रेंड देखें तो औसतन हर चुनाव में तीन क्षेत्रीय दल दूसरे राज्यों से आकर चुनावी मैदान में उतरे लेकिन न उन्हें कोई सीट मिली, न ही कहीं किसी सीट पर दूसरे नंबर पर आए। हाल के वर्षों में इस ट्रेंड में बढ़ोतरी साफ देखी जा रही है। हालांकि, नब्बे के दशक में भी क्षेत्रीय दलों का उभार आया था और कई दल अपने राज्य से बाहर निकलकर दूसरे राज्यों में ताकत बनने में सफल रहे। लेकिन कुछ बड़ी मिसाल छोड़ दें तो क्षेत्रीय दल अपने मूल इलाके से बाहर दूसरे राज्य में खुद को राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा दिलाने की मंशा से भी जाते हैं।

कितने तरह के दल होते हैं? कैसे बनते हैं राष्ट्रीय दल?

1. राष्ट्रीय दल

देश में राष्ट्रीय दलों की संख्या 7 है। इनमें बीजेपी, कांग्रेस, बीएसपी, सीपीएम, सीपीआई, एनसीपी और टीएमसी हैं। ये ऐसे दल होते हैं जो कम से कम तीन राज्यों में 11 लोकसभा सीट जीतते हैं या कम से कम चार राज्यों में 6 फीसदी से ज्यादा वोट पाते हैं या कम से कम चार राज्यों में राज्य पार्टी के रूप में रजिस्टर्ड हों। हर दस साल में इनकी समीक्षा होती है। पहले इसकी सीमा पांच साल थी लेकिन हाल ही में इसे बढ़ाकर 10 साल कर दिया गया। ये दल पूरे देश में एक ही चुनाव चिह्न से चुनाव लड़ते हैं।

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2. राज्य दल
पूरे देश में ऐसे दल की संख्या 48 है। ये ऐसे दल होते हैं जो अपने राज्य की विधानसभा में कम से कम 3 सीट या कुल सीट का 3 फीसदी सीट जीतने के अलावा 6 फीसदी वोट पाते हैं। इन्हें राज्य के अंदर चुनाव चिह्न मिलता है।

3. सामान्य राजनीतिक दल
पूरे देश में 2293 सामान्य राजनीतिक दल हैं जो चुनाव लड़ने भर के योग्य हैं।

राजनीतिक दलों को क्या सुविधाएं मिलती हैं?
सभी मान्यता प्राप्त दलों को सस्ती जमीन, टैक्स छूट के अलावा सरकार के स्तर पर बहुत सारी सुविधाएं मिलती हैं। राष्ट्रीय दल को दिल्ली में पार्टी के नाम कार्यालय आवंटित होता है। क्षेत्रीय दलों को उनके राज्य में कार्यालय मिलते हैं। मान्तया प्राप्त दल चुनाव आयोग के बनाए मानकों के अनुसार दान भी ले सकते हैं। इसके अलावा राष्ट्रीय दल या क्षेत्रीय दल स्टार प्रचारक के रूप में 40 नेताओं की लिस्ट दे सकते हैं। जबकि सामान्य दलों को अधिकतम 20 नेताओं को साथ ले जाने की इजाजत होती है। इसके अलावा राष्ट्रीय दलों को चुनाव प्रचार के दौरान टीवी प्रसारण से लेकर बाकी चीजों में दूसरे दलों के मुकाबले ज्यादा तरजीह दी जाती है। इसके अलावा इन दलों को चुनाव आयोग की ओर से किए जाने वाले मतदाता सूचियों में संशोधन के समय नई वोटर लिस्ट की पूरी सूची मिलती है।
लेखक के बारे में
नरेंद्र नाथ
नरेन्द्र नाथ नवभारत टाइम्स में असिस्टेंट एडिटर हैं। वह राजनीति से जुड़ी खबरों को नजदीक से फॉलो करते हैं इस बारे में आपको हर घटनाक्रम से वाकिफ कराते रहेंगे। पीएमओ को भी कवर करते हैं और इससे भी जड़ी हर खबर पहुंचाने की कोशिश रहेगी। ... और पढ़ें

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