न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति एएस बोपन्ना की पीठ ने इस याचिका पर केंद्रीय गृह मंत्रालय और राज्य सरकार के गृह विभाग के मुख्य सचिव को नोटिस जारी किये। यह याचिका आरोपी देवेश चौरसिया ने दायर की है। चौरसिया ने मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती दी है जिसने हिरासत आदेश के खिलाफ उसकी याचिका खारिज कर दी थी।
शीर्ष अदालत ने दो हफ्ते में उनसे जवाब मांगा है। शीर्ष अदालत ने इससे पहले जबलपुर के डॉक्टर की हिरासत का आदेश रद्द कर दिया था। इस पर कोविड-19 की दूसरी लहर के दौरान चौरसिया के साथ सांठगांठ कर रेमेडिसिविर के नकली इंजेक्शन खरीदने का आरोप है।
याचिका में कहा गया है कि हिरासत आदेश में उल्लेखित कथित आधार राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम(रासुका) 1980 के प्रावधानों को लागू करने योग्य नहीं है।
याचिका में दलील दी गई है कि रासुका के प्रावधान लागू करने के लिए हिरासत में लेने वाले प्राधिकरण को वह कारण बताना होता है जो संकेत देता है कि आरोपी ने कैसे सार्वजनिक व्यवस्था को प्रभावित किया है और सामाजिक सुरक्षा को खतरा पहुंचाया है।
याचिका के मुताबिक, याचिकाकर्ता को लंबे समय तक हिरासत में रखने और एनएसए लागू करने का आज तक कोई आधार नहीं बनाया गया है।
याचिका में यह भी कहा गया है कि इसके अलावा, जांच प्राधिकारी ने रिकॉर्ड पर कोई सबूत नहीं रखा है जो रासुका के प्रावधानों को लागू करने के योग्य हो और इसके बावजूद याचिकाकर्ता 10 मई 2021 से हिरासत में है।
जबलपुर के डॉक्टर की हिरासत के आदेश को रद्द करते हुए, शीर्ष अदालत ने कहा था कि राज्य सरकार ने उसके प्रतिवेदन पर निर्णय में देरी की और परिणाम बताने में भी विफल रही।
उच्चतम न्यायालय ने जबलपुर के सिटी अस्पताल के निदेशक सरबजीत सिंह मोखा की अपील पर यह आदेश दिया था। मोखा ने 24 अगस्त 2021 के मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती दी थी।