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पॉक्सो के 10 साल: बच्चियों से रेप के मामलों में तेजी से सुनवाई की थी उम्मीद मगर हकीकत अलग, दिल्ली में सबसे ज्यादा केस पेंडिंग

बच्चों को यौन अपराधों से बचाने के लिए बने पॉक्सो कानून को लागू हुए 10 साल पूरे हो चुके हैं। लेकिन आज भी देशभर में पॉक्सो के तमाम मामले लंबित हैं। राजधानी दिल्ली में पॉक्सो एक्ट के सबसे ज्यादा मामले पेंडिंग हैं।

Curated byअनुभव शाक्य | टाइम्स न्यूज नेटवर्क 4 Dec 2022, 10:37 am

हाइलाइट्स

  • यौन अपराधों से बच्चों को बचाने वाले पॉक्सो एक्ट को बने 10 साल हुए पूरे
  • राजधानी दिल्ली में पॉक्सो के करीब 88 फीसदी मामले पेंडिंग हैं
  • विधि सेंटर फॉर लीगल पॉलिसी और HAQ की स्टडी में हुए चौंकाने वाले खुलासे
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नवभारतटाइम्स.कॉम POCSO
नई दिल्ली: यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम 2012 (POCSO) को बने 10 साल पूरे हो चुके हैं। तमाम जागरुकता अभियानों के बाद भी राजधानी दिल्ली में पॉक्सो एक्ट के मामलों में सबसे ज्यादा शिथिलता देखने को मिली। दिल्ली में पॉक्सो के करीब 88 फीसदी मामले पेंडिंग हैं। इसके अलावा दिल्ली में दो साल से ज्यादा के करीब 44 फीसदी लंबित मामलों लें। दिल्ली बाल अधिकार संरक्षण आयोग (DCPCR) ने शनिवार को POCSO@10 कॉन्फ्रेंस आयोजित की, जिसमें पेश की गई एक स्टडी में इस बात का खुलासा हुआ।

दिल्ली में 88 फीसदी मामले लंबित

सेंटर फॉर चाइल्ड राइट्स एंड सिविक डेटा लैब (HAQ ) द्वारा की इस स्टडी 'अनपैकिंग ज्यूडिशियल डेटा एंड ट्रैक इम्प्लीमेंटेशन ऑफ द POCSO एक्ट इन असम, दिल्ली एंड हरियाणा' द्वारा किए के अनुसार, साल 2012 और अप्रैल 2020 के बीच 19783 मामलों को ट्रैक किया गया। स्टडी में असम में 74%, और हरियाणा में 60% पॉक्सो के लंबित मामलों को दिखाया गया है। वहीं दिल्ली में नई दिल्ली, पूर्वी दिल्ली और शाहदरा जिलों में मामले निपटान की दर सबसे कम थी।
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विधि सेंटर फॉर लीगल पॉलिसी ने भी 28 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में की गई अपनी स्टडी को पेश किया, जिसमें लगभग दो लाख POCSO मामलों को कवर करने की बात सामने आई। यह दर्शाता है कि लंबित मामले हमेशा निपटाए गए मामलों की तुलना में ज्यादा हैं। कोविड महामारी के कारण लंबित मामलों में 25,000 से अधिक मामले तेजी से बढ़े हैं।
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पॉक्सो मामलों के सामने क्या है चुनौती?

दोनों संगठनों ने डेटा के खराब प्रबंधन, निर्णयों में एकरूपता की कमी और सबूतों की खराब रिकॉर्डिंग की भी बात कही। दोनों रिपोर्ट में बताया गया कि यौन शोषण के मामले जितने ज्यादा होंगे लंबित मामलों की संख्या उतनी ही अधिक होगी। HAQ की भारती अली ने कहा, “ट्रेंड स्थापित करने और परीक्षणों में टालने योग्य देरी पर ध्यान केंद्रित करने के लिए डेटा बहुत महत्वपूर्ण है। निपटाए गए मामले की औसत आयु 1.3 साल है। जबकि लंबित मामले की औसत आयु 1.7 साल है। फोरेंसिक रिपोर्ट जमा करने में देरी एक बड़ी चुनौती है। एक सैंपल के एनालिसिस में 262 दिन और पुलिस द्वारा अदालत में दाखिल करने में 166 दिन लगते हैं।"

दिल्ली की पूर्व जज आशा मेनन ने कहा, "डेटा का किसी व्यक्ति से कोई मतलब नहीं है जबकि अदालतें व्यक्तिगत तौर पर फैलसे देती हैं। जजों के लिए लोगों के साथ व्यवहार करना आसान काम नहीं होता। अदालतों में इस तरह के मामलों का एनालिसिस करने के लिए कोई शुरुआती डेटा नहीं है।
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पॉक्सो के मामलों में त्वरित निपटान में काम आएगी स्टडी

कॉन्फ्रेंस के मुख्यवक्ता सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज मदन बी लोकुर ने कहा, "यह POCSO के न्यायिक प्रभाव पर विचार करने और त्वरित सुनवाई और निपटान की संभावना खोजने का समय है। त्वरित निपटान वाले मामलों का गहन अध्ययन जैसे कि एक वर्ष से कम, हमें भविष्य के लिए सिफारिशें करने में मदद कर सकता है। रोमांटिक रिश्तों को कम करना और मनो-सामाजिक समर्थन और परामर्श के माध्यम से उन बच्चों की रक्षा करना कुछ ऐसा है जो सक्रिय रूप से किया जाना चाहिए।
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बच्चों पर यौन हमले के प्रभाव के बारे में बात करते हुए यूनिसेफ इंडिया में बाल संरक्षण प्रमुख सोलेदाद हेरेरो ने कहा, “बाल यौन शोषण से बचे लोग गंभीर आत्मसम्मान, नशीले पदार्थों के सेवन और आत्महत्या की प्रवृत्ति के पैटर्न का फॉलो करते हैं। जिन वयस्कों ने बचपन में यौन शोषण का सामना किया है, उनमें वयस्कता में हिंसा करने की संभावना सात गुना और आत्महत्या करने की संभावना 30 गुना ज्यादा है।
लेखक के बारे में
अनुभव शाक्य
2021 में IIMC से पत्रकारिता की पढ़ाई करके ज़ी न्यूज से पत्रकारिता में एंट्री की। यूपी के एटा में जन्म लिया लेकिन पढ़ाई-लिखाई अलीगढ़ में हुई। करीब डेढ़ साल वहां देश-दुनिया की खबरें लिखने के बाद अब नवभारत टाइम्स में न्यूज टीम में काम कर रहे हैं। राजनीति, टेक्नोलॉजी और फीचर में रुचि रखने के साथ-साथ लिखने पढ़ने के शौकीन हैं। फिल्में और वेबसीरीज देखना खूब भाता है। अपने अंदाज में लिखना और बात करना पसंद है।... और पढ़ें

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