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कुलदीप बिष्णोई का दावा- कांग्रेस को तोड़ना चाहते हैं गुलाम नबी आजाद, जानें कब-कब टूटी है पार्टी

कांग्रेस पार्टी में सांगठनिक सुधारों को लेकर वरिष्ठ नेताओं का एक समूह काफी मुखर है। एक तरफ कपिल सिब्बल और गुलाम नबी आजाद जैसे नेता शीर्ष नेतृत्व पर सवाल उठा रहे हैं तो दूसरी ओर अशोक गहलोत और अधीर रंजन चौधरी जैसे नेता इसे कांग्रेस के खिलाफ साजिश बता रहे हैं। इस लिस्ट में एक और नाम जुड़ा है कुलदीप बिष्णोई का।

नवभारतटाइम्स.कॉम 24 Nov 2020, 12:24 pm
हरियाणा कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कुलदीप बिष्णोई ने कहा कि गुलाम नबी आजाद विरोधियों से मिले हुए हैं और उनके सहयोग से वो कांग्रेस पार्टी को तोड़ना चाहते हैं। उन्होंने एक अखबार से कहा, 'आज सिर्फ पार्टी को तोड़ने की यह साजिश है जो आजाद साहब विपक्षी पार्टियों के साथ मिलकर कर रहे हैं। मैं आजाद साहब को बता देना चाहता हूं कि हम आपके इस षडयंत्र को कामयाब नहीं होने देंगे।' कितनी दिलचस्प बात है कि खुद कुलदीप बिष्णोई ने 2007 में कांग्रेस को तोड़कर हरियाणा जनहित कांग्रेस (बीएल) बनाई थी। ऐसे कई नेता कांग्रेस से अलग हुए और अलग-अलग नाम से पार्टियां बनाईं। उनमें कई ने फिर से कांग्रेस जॉइन कर लिया और वो अभी पार्टी के बड़े नाम हैं। बहरहाल, आइए जानते हैं कि कांग्रेस में कब-कब हुई है बड़ी फूट...
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कुलदीप बिष्णोई का दावा- कांग्रेस को तोड़ना चाहते हैं गुलाम नबी आजाद, जानें कब-कब टूटी है पार्टी


गांधी, नेहरू, पटेल वाली पार्टी नहीं है मौजूदा कांग्रेस

सबसे पहले तो यह जान लेना जरूरी है कि आज की कांग्रेस महात्मा गांधी, बालगंगाधर तिलक, लाला लाजपत राय, सुभाष चंद्र बोस, सरदार पटेल वाली पार्टी नहीं है। जिस 135 साल पुरानी कांग्रेस की बात होती है, उसका चुनाव चिह्न 'जोड़ा बैल' था जबकि आज की कांग्रेस का चुनाव चिह्न 'पंजा' है। इसकी कहानी 12 नवंबर, 1969 को शुरू होती है जब कांग्रेस ने इंदिरा गांधी को पार्टी से बर्खास्त कर दिया। तब इंदिरा ने एक अलग पार्टी कांग्रेस-(रिक्वीजीशन) की स्थापना की थी। तब इंदिरा ने कांग्रेस (आर) का चुनाव चिह्न 'गाय और बछड़ा' रखा जबकि मूल चुनाव चिह्न 'जोड़ा बैल' कांग्रेस (ऑर्गनाइजेशन) के पास रहा। दिलचस्प बात यह है कि इंदिरा ने तो गाय-बछड़े का चुनाव चिह्न जोड़ा बैल से मिलते-जुलते होने का कारण रखा था, लेकिन लोग तब गाय-बछड़े का मतलब इंदिरा और उनके पुत्र संजय गांधी से निकालते थे। बहरहाल, तब से अब तक कांग्रेस कई बार टूट चुकी है और इससे करीब-करीब 70 पार्टियां अस्तित्व में आ चुकी हैं। यह अलग बात है कि सभी 70 पार्टियां अब जिंदा नहीं हैं।

​इंदिरा ने ही दूसरी बार तोड़ी कांग्रेस

इंदिरा गांधी ने 25 जून 1975 से देश में आपातकाल लागू करने की घोषणा कर दी थी जो 21 मार्च 1977 तक रहा। इमरजेंसी के बाद कांग्रेस (आर) का भी विभाजन हो गया। दरअसल, 1977 के चुनाव में कांग्रेस (आर) की जबर्दस्त हार हुई। पार्टी नेताओं ने इंदिरा गांधी की तानाशाही नीतियों को इसका जिम्मेदार बताया। पार्टी के अंदर से हो रहे मुखर विरोध को इंदिरा झेल नहीं सकीं और उन्होंने फिर नई पार्टी बना ली जिसका नाम रखा कांग्रेस (आई) रखा। इसमें आई का मतलब इंदिरा है। इस बार इंदिरा ने पंजे के निशान को अपने चुनाव चिह्न के रूप में चुना। कहा जाता है कि बाद में इंदिरा गांधी ने चुनाव आयोग पर दबाव डालकर कांग्रेस (आई) का नाम बदलकर इंडियन नैशनल कांग्रेस (INC) करवा लिया। इस तरह 1981 से कांग्रेस (आई) इंडियन नैशनल कांग्रेस (आईएनसी) हो गई।

​आजादी से पहले दो बार टूटी कांग्रेस पार्टी

आजादी से पहले ही कांग्रेस पार्टी दो बार टूट चुकी थी। 1923 में सीआर दास और मोतीलाल नेहरू ने स्वराज पार्टी का गठन किया था तो 1939 में सुभाष चंद्र बोस ने सार्दुल सिंह और शील भद्र के साथ मिलकर अखिल भारतीय फॉरवर्ड ब्लॉक का निर्माण किया। फॉरवर्ड ब्लॉक आज भी अस्तित्व में है। पार्टी प. बंगाल में लेफ्ट फ्रंट जबकि केरल में यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (UDF) का हिस्सा है। इस धुर वामपंथी दल के मौजूदा प्रमुख देबब्रत बिश्वास हैं।

​आजादी के बाद पहली बार 1951 में पड़ी फूट

आजादी के बाद पहली बार कांग्रेस पार्टी 1951 में टूटी जब जेबी कृपलानी ने इससे अलग होकर किसान मजदूर प्रजा पार्टी बनाई और एन जी रंगा ने हैदराबाद स्टेट प्रजा पार्टी बनाई। इसी साल कांग्रेस से अलग होकर सौराष्ट्र खेदुत संघ बनी। 1956 में कांग्रेस फिर टूटी जब सी राजगोपालाचारी ने इंडियन नैशनल डेमोक्रेटिक पार्टी बनाई। इसके बाद 1959 में बिहार, राजस्थान, गुजरात और ओडिशा (तब की उड़िसा) में भी कांग्रेस पार्टी टूटी। यहां कांग्रेस से अलग होकर कांग्रेसी नेताओं ने स्वतंत्र पार्टी बनाई। 1964 में के एम जॉर्ज ने केरल कांग्रेस बनाई। 1966 में उड़ीसा में हरकृष्णा महाताब ने उड़ीसा जन कांग्रेस बनाई। 1967 में कांग्रेस पार्टी से चरण सिंह अलग हुए और भारतीय क्रांति दल बनाया। वहीं बंगाल में उसी साल अजय मुखर्जी ने बांग्ला-कांग्रेस का ऐलान कर दिया। अगले साल कांग्रेस मणिपुर में बीचोबीच टूटी। 1969 में कांग्रेस पार्टी से बीजू पटनायक और मारी चेन्ना रेड्डी अलग हुए और उत्कल-कांग्रेस और तेलंगाना प्रजा समिति पार्टियां कांग्रेस के विरोध में खड़ी हो गई।

प्रणब दा ने भी तोड़ी थी पार्टी

1978 में कर्नाटक, केरल, महाराष्ट्र और गोवा में कांग्रेस पार्टी फिर से टूटी। इस बार इंडियन नैशनल कांग्रेस(उर्स) बनी। इन राज्यों में जो लोग कांग्रेस में बचे थे उनमें फिर से 1981 में बंटवारा हुआ। इस बार शरद पवार पार्टी से अलग हो गए और इंडियन नैशनल कांग्रेस सोशलिस्ट बनी। इसी साल बिहार में जगजीवन राम ने कांग्रेस से अलग होने का फैसला किया और उन्होंने जगजीवन-कांग्रेस पार्टी की स्थापना की। 1984 में असम में शरत चंद्र सिन्हा ने कांग्रेस से अलग होकर अपनी अलग पार्टी बना ली। 1986 में प्रणब मुखर्जी ने विभाजन का झंडा बुलंद किया और राष्ट्रीय समाजवादी कांग्रेस बनाई। वो फिर से कांग्रेस में आए और पार्टी ने उन्हें भारत का राष्ट्रपति बनाया।

चार साल के दरम्यान कांग्रेस में दो बड़ी फूट

1988 में शिवाजी गणेशन ने तमिलानाडु में कांग्रेस को तोड़कर टीएमएम बनाई। इसी तरह 1994 में तिवारी कांग्रेस बनी जिसमें नारायण दत्त तिवारी, अर्जुन सिंह, नटवर सिंह शामिल हुए। 1996 में तो कांग्रेस से टूटकर कई राज्यों में नई पार्टियों को जन्म हुआ। इस साल कांग्रेस को विभाजित करने वाले नेताओं में कर्नाटक में बंगरप्पा, अरुणाचल प्रदेश में गेगांग अपंग, तमिलनाडु में मुपनार, मध्यप्रदेश में माधवराव सिंधिया शामिल थे। अगले साल यानी 1997 में कांग्रेस बंगाल और तमिलनाडु में फिर से टूटी। बंगाल में ममता बनर्जी ने तृणमूल कांग्रेस बनाई, वहीं तमिलनाडु में बी रामामूर्ति ने मक्काल कांग्रेस की स्थापना की। कांग्रेस 1998 में गोवा, अरुणाचल प्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र में टूट कर क्रमशः गोवा राजीव कांग्रेस, अरुणाचल कांग्रेस, ऑल इंडिया इंदिरा कांग्रेस (सेक्युलर), महाराष्ट्र विकास अगाढ़ी बनी।

1999 में सोनिया गांधी के विदेशी मूल के मुद्दे पर अलग हुए पवार

1999 में सोनिया गांधी के विदेशी मूल के मुद्दे पर शरद पवार, पीए संगमा और तारीक अनवर अलग हो गए और नैशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) बनाई। अब तारीक अनवर फिर से कांग्रेस में जा चुके हैं। उधर, जम्मू कश्मीर में मुफ्ती मोहम्मद सईद ने कांग्रेस से अलग होकर पीडीपी बनाई। फिर, 2000 से अब तक पार्टी तमिलनाडु, पुद्दुचेरी, गोवा, अरुणाचल प्रदेश, महाराष्ट्र, केरल, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, मणिपुर, बंगाल और आंध्रप्रदेश में टूट चुकी है। 2011 में आंध्र प्रदेश में जगन मोहन रेड्डी ने कांग्रेस को तोड़कर वाईएसआर कांग्रेस बनाई। वहीं, पुदुचेरी में एन. रंगास्वामी ने ऑल इंडिया एनआर कांग्रेस का निर्माण किया। तीन साल बाद 2014 में तमिलनाडु में कांग्रेस पार्टी टूट गई और जीके वासन ने तमिल मनीला कांग्रेस बनाई। उधर, छत्तीसगढ़ में 2016 में अजित जोगी ने छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस का निर्माण किया। अब अजित जोगी का निधन हो चुका है। उनके पुत्र अमित जोगी अभी पार्टी के अध्यक्ष हैं।

​बहुत दिलचस्प हैं कांग्रेस में फूट की ये बातें

कांग्रेस से अलग होकर ये पार्टियां अब भी अस्तित्व में हैं- टीएमसी, एनसीपी, पीडीपी, विदर्भ जनता कांग्रेस, वाईएसआर कांग्रेस पार्टी, ऑल इंडिया एनआर कांग्रेस, तमिल मनीला कांग्रेस, छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस, मणिपुर पीपल्स पार्टी।

पार्टी तोड़ चुके हैं कांग्रेस के ये मौजूदा दिग्गज नेता- पी चिदंबरम, एके एंटनी, तारीक अनवर, सुरेश कलमाड़ी। यहां तक कि देश के राष्ट्रपति रहे स्वर्गीय प्रणब मुखर्जी और अब बीजेपी में आए ज्योतिरादित्य सिंधिया के स्वर्गवासी पिता माधवराव सिंधिया ने भी कांग्रेस पार्टी से अलग होकर अलग-अलग दल बनाया था। 1986 में प्रणब मुखर्जी ने कांग्रेस से अलग होकर राष्ट्रीय समाजवादी पार्टी बनाई थी। 10 साल बाद 1996 में माधव राव सिंधिया ने मध्य प्रदेश विकास कांग्रेस नामक अलग पार्टी बनाई थी।

एके एंटनी, सुरेश कलमाड़ी, तारीक अनवर, पी. चितंबरम और कुलदीप बिष्णोई कांग्रेस तोड़ चुके हैं। एके एंटनी (ए) ने 1980 में कांग्रेस (ए), सुरेश कलमाड़ी ने 1998 में महाराष्ट्र विकास अघाड़ी, तारीक अनवर ने 1999 में एनसीपी, पी. चिदंबरम ने 2001 में कांग्रेस जननायक पेरवाई और कुलदीप बिष्णोई ने 2007 में हरियाणा जनहित कांग्रेस (बीएल) बनाई थी। अभी ये सभी नेता कांग्रेस के बड़े नाम हैं।

शरद पवार कांग्रेस पार्टी से दो बार अलग हुए। पहली बार उन्होंने 1981 में इंडियन नैशनल कांग्रेस (सोशलिस्ट) बनाई थी। फिर कांग्रेस में वापस आए और 1999 में पीए संगमा और तारीक अनवर के साथ मिलकर राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) का निर्माण किया। पीए संगमा का निधन हो चुका है जबकि तारीक अनवर की कांग्रेस में वापसी हो गई है। शरद पवार की अध्यक्षता वाली एनसीपी और महाराष्ट्र में मौजूदा 'महाविकास अघाड़ी' की सरकार में शामिल है।

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