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Corona Omicron News : कब खत्म होगी ये जंग? PPE पहने कोरोना मरीजों का इलाज करने वाले देवदूतों की आपबीती झकझोर देगी

देश के 29 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेश में अब तक कोरोना वायरस के ‘ओमीक्रोन’ स्वरूप के 8,209 मामले सामने आए हैं। कोरोना केस कई दिनों से ढाई लाख से ज्यादा आ रहे हैं। देश में कोरोना की ये तीसरी लहर है। ऐसे में उन देवदूतों की चुनौती बढ़ गई है जो एक बार फिर कोरोना के खिलाफ जंग में दिन-रात जुट गए हैं।

Reported byHimanshi Dhawan | Curated byअनुराग मिश्र | टाइम्स ऑफ इंडिया 17 Jan 2022, 10:40 am

हाइलाइट्स

  • पीपीई किट में रहकर फिर से घंटों इलाज कर रहे डॉक्टर
  • कोविड मरीजों का इलाज कर रहे कई डॉक्टर खुद भी हो गए पॉजिटिव
  • दूसरी लहर की खौफनाक यादें नहीं भूले डॉक्टर, तनाव में जी रहे देवदूत
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नई दिल्ली
कोरोना के केस फिर से बढ़े तो डॉक्टरों और नर्सों पर जान बचाने की जिम्मेदारी भी बढ़ गई। यह फर्ज तो वे पहले से निभाते आ रहे हैं लेकिन ऐसी चुनौती कभी न थी। अपनी जान पर खेलकर दूसरों की जान बचानी है। ऐसे में धरती पर भगवान का रूप कहे जाने वाले डॉक्टरों के मन मस्तिष्क पर किस हद तक दबाव और तनाव होगा, कोई दूसरा महसूस नहीं कर सकता।
यह जंग ही तो है
थकान, तनाव, हताशा... कोविड के खिलाफ लड़ाई में फ्रंटलाइन पर लौटे डॉक्टर्स एक बार फिर कई तरह भावनाओं के आगोश में हैं। दोस्तों और परिवार से अलग रहने के दर्द और स्टाफ की कमी के बीच पसीने में भिगो देने वाले पीपीई चोले में अपनी जान खतरे में डालकर मरीजों को बचाने की जद्दोजहद फिर तेज हो गई है। यह जंग ही तो है, जो वे लड़ रहे हैं।

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डॉक्टरों की मानसिक स्थिति समझिए
फिलहाल राहत यह है कि टीकाकरण के चलते मौतें कम हैं लेकिन शारीरिक और मानसिक थकान तो होती ही है। कई लोग कोविड से उबर रहे हैं तो कुछ दूसरी लहर के दिनों को याद कर खौफजदा हो जाते हैं। गुरुग्राम की एक क्लिनिक की डॉ. ज्योति बसु कहती हैं कि उनके साथ काम करने वाले कई डॉक्टरों ने पोस्ट-ट्रामेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर (PTSD) को झेला है और कुछ की थेरेपी चल रही है। अपनी मनोदशा के बारे में वह कहती हैं कि मेरे पास यह सोचने का भी वक्त नहीं है। मैं बस वही कर रही हूं, जो करना चाहिए।

लोग समझ नहीं रहे
AIIMS दिल्ली में जूनियर रेजिडेंट डॉ. सुवरंकर दत्ता हाल ही में कोविड से ठीक हुए हैं। उन्होंने कहा कि मैं तो यह देखकर चिंतित हूं कि लोग ओमीक्रोन को कितने हल्के में ले रहे हैं। उन्होंने कहा, 'मैं राजनीतिक रैलियां और भीड़भाड़ देखकर चकित और बेहद निराश हूं। यह देखकर निराशा होती है कि हालात की गंभीरता को लेकर लोगों में समझ की कमी है और देखिए कैसे दो हफ्तों में कितने खराब हालात हो गए।' दत्ता कहते हैं कि उनके कई साथी डॉक्टर ऐसे समय में बीमार हो गए हैं जब उनकी सबसे ज्यादा जरूरत थी।

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मिलना-जुलना तो दो साल से खत्म हो गया
कोलकाता के अपोलो अस्पताल में रेजिडेंट डॉक्टर के तौर पर काम करने वाली डॉ. दीपशिखा घोष कहती हैं कि वैक्सीन लगवाने के लिए इतना जोर देने के बाद भी लोगों में काफी कम जागरूकता है। लोग आकर कहते हैं कि मैंने वैक्सीन नहीं लगवाई क्योंकि मुझे लगा कि इसकी जरूरत नहीं पड़ेगी। घोष को भी पिछले हफ्ते कोरोना हो गया था क्योंकि वह लगातार कोविड मरीजों का इलाज करती आ रही थीं। वह काफी ऐहतियात बरत रही थीं लेकिन संक्रमण की चपेट में आ गईं। उन्होंने कहा कि हममें से कई लोगों की छोटी-छोटी खुशियां खत्म हो गई हैं जैसे परिवार के साथ बैठकर खाना खाना या दोस्तों से मिलना सब बंद हो गया है। वह कहती हैं कि दो साल से सामाजिकता खत्म सी हो गई है। यहां तक कि किराने की दुकान पर भी बाहर नहीं गए, जो ऑनलाइन मिला वही ऑर्डर कर दिया।

बसु को अब भी इस बात का पछतावा है कि पिछले साल जब उनकी मां का देहांत हुआ तो वह उनके पास नहीं थीं।

सिलचर के एक सरकारी अस्पताल में तैनात डॉ. सईद फैजान अहमद (जनरल सर्जरी में पीजी रेजिडेंट) की दिसंबर में ही शादी हुई है। वह कहते हैं कि पत्नी से मिलने में अभी समय लगेगा।

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ड्यूटी पर गर्व है
दिल्ली के Ujala Cygnus में इंटरनल मेडिसिन के प्रमुख डॉ. शुचिन बजाज ने काफी समय से बीच हॉलिडे की प्लानिंग कर रखी थी लेकिन सब कुछ रोकना पड़ा। वह फिलहाल कोविड से उबर रहे हैं। वह कहते हैं कि मुझे अपनी ड्यूटी करते हुए गर्व की अनुभूति होती है। हालांकि थकान और झुंझलाहट भी बनी रहती है। 46 साल के डॉक्टर कहते हैं, 'कितनी बार हमें इस सूट (पीपीई किट) में आना पड़ेगा और यह लड़ाई लड़नी पड़ेगी? दिल्ली में यह पांचवीं लहर है और देश में तीसरी। मैं लंबे समय से छुट्टी पर नहीं गया। मैं प्रार्थना करता हूं कि यह आखिरी वेव होगी और हम अगले कुछ महीनों में फिर से अपना सामान्य जीवन जीने लगेंगे।'

इस ताजा लहर में बीमार लोगों को देख दूसरे लहर के समय की खौफनाक यादें फिर से ताजा होने लगी हैं। घोष कहती हैं कि पिछले साल नवंबर में जब केस बढ़ना शुरू हुए तो मुझे लगा कि हम फिर से वहीं पहुंच गए जहां से शुरू किए थे।

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सिलचर में अहमद कोविड वार्ड में अपनी सात दिन की शिफ्ट नहीं भूले हैं। वह पांच मेडिकल प्रोफेशनल की उस टीम का हिस्सा था, जो 78 बीमार मरीजों की देखभाल कर रही थी। कोविड वार्ड में केवल 18 ऑक्सीजन सिलेंडर और कंसंट्रेटर थे। उनके हाथों में वह दर्दनाक टास्क था कि उस मरीज को ऑक्सीजन दिया जाए, जिसे सबसे ज्यादा जरूरत हो। वह दुखी मन से कहते हैं कि सारी रात ऑक्सीजन सैचुरेशन लेवल देखते हुए कट जाती थी। अगर तबीयत बिगड़ती तो बेहतर स्थिति वाले मरीज से लेकर ऑक्सीजन की सप्लाई करनी पड़ती, जिससे गंभीर मरीज की जान बचाई जा सके।


वह कहते हैं कि हमारे पास न खाने के लिए समय था, न सोने का, यहां तक कि बैठने के लिए भी वक्त नहीं था। जब पीपीई किट उतारता तो पसीने से शरीर भीगा रहता और लगता कि शरीर का पानी सूख चुका है। वह कहते हैं कि अब सभी अस्पतालों ने तैयारी कर ली है लेकिन स्टाफ की कमी सबसे बड़ी चिंता है।
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Himanshi Dhawan

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