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'बिल्‍डर से आपकी मिलीभगत, आंख-कान-नाक से टपकता भ्रष्‍टाचार', नोएडा अथॉरिटी को सुप्रीम कोर्ट ने खूब फटकारा

Supertech Towers Case: सुप्रीम कोर्ट ने फटकार लगाते हुए कहा, 'तर्क पेश करने का यह कोई तरीका नहीं है। नोएडा को एक निष्‍पक्ष स्‍टैंड लेना चाहिए। ऐसा लगता है कि आप प्रॉजेक्‍ट के प्रमोटर हैं।'

Curated byदीपक वर्मा | नवभारतटाइम्स.कॉम 5 Aug 2021, 8:24 am

हाइलाइट्स

  • ग्रीन एरिया में सुपरटेक के दो रेजिडेंशियल टावर का मामला
  • नोएडा अथॉरिटी पर सुप्रीम कोर्ट ने तरेरी आंखें, बताया 'भ्रष्‍टाचारी'
  • अदालत ने हैरानी जताते हुए कहा, 'सत्‍ता का आश्‍चर्यजनक इस्‍तेमाल'
  • सुप्रीम कोर्ट ने कहा- आप बिल्‍डर से मिले हुए हैं, प्रमोटर लगते हैं
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नई दिल्‍ली
सुपरटेक टावर मामले में सुप्रीम कोर्ट ने नोएडा अथॉरिटी को जमकर फटकारा है। अथॉरिटी को 'भ्रष्‍टाचारी संस्‍था' बताते हुए अदालत ने कहा कि वह बिल्‍डर से मिली हुई है और एक तरह से सुपरटेक की पैरवी कर रही है। कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया। अदालत के भीतर जब नोएडा अथॉरिटी ने बिल्‍डर के फैसलों को सही ठहराने की कोशिश की तो उसे फटकार पड़ी। बेंच ने कड़ी आपत्ति जताते हुए कहा कि अथॉरिटी को एक सरकारी नियामक संस्‍था की तरह व्‍यवहार करना चाहिए, ना कि किसी के हितों की रक्षा के लिए निजी संस्‍था के जैसे।
अदालत को यह तय करना है कि कंपनी ने अपनी हाउजिंग सोसायटी में जो अतिरिक्‍त टावर बनाए, वह अवैध हैं और उन्‍हें ढहाने की जरूरत है। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 2017 में दोनों टावरों को अवैध करार देते हुए ढहाने के आदेश दिए थे। सुप्रीम कोर्ट ने फैसले पर रोक लगाते हुए कंपनी को खरीदारों को रिफंड देने को कहा।

SC ने अथॉरिटी को याद दिलाई जिम्‍मेदारी
जिस तरह से आप जिरह कर रहे हैं, ऐसा लगता है कि आप ही प्रमोटर हैं। आप घर खरीदारों के खिलाफ लड़ाई नहीं कर सकते। एक सरकारी प्राधिकरण के तौर पर आपको एक निष्‍पक्ष स्‍टैंड लेना होगा। आपके आंख, कान और नाक से भ्रष्‍टाचार टपकता है और आप घर खरीदारों में कमियां ढूंढने में लगे हो।
सुप्रीम कोर्ट

फ्लैट्स के रिफंड का क्‍या स्‍टेटस है?
सुपरटेक के दोनों टावरों में 950 से ज्‍यादा फ्लैट्स बनाए जाने थे। 32 फ्लोर का कंस्‍ट्रक्‍शन पूरा हो चुका था जब एमराल्‍ड कोर्ट हाउजिंग सोसायटी के बाशिंदों की याचिका पर टावर ढहाने का आदेश आया। 633 लोगों ने फ्लैट बुक कराए थे जिनमें से 248 रिफंड ले चुके हैं, 133 दूसरे प्रॉजेक्‍ट्स में शिफ्ट हो गए, लेकिन 252 ने अब भी निवेश कर रखा है। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस एमआर शाह की बेंच ने सभी पक्षों को विस्‍तार से सुनने के बाद अपना आदेश सुरक्षित रख लिया है।

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अथॉरिटी ने कैसे की बिल्‍डर की मदद?
अदालत ने नोएडा अथॉरिटी की हरकतों को 'सत्ता का आश्‍चर्यजनक व्‍यवहार' करार दिया। बेंच ने कहा, "जब फ्लैट खरीदने वालों ने आपसे दो टावरों, एपेक्‍स और सीयान के बिल्डिंग प्‍लान्‍स का खुलासा करने को कहा, तो आपने सुपरटेक से पूछा और कंपनी के आपत्ति जताने के बाद ऐसा करने से मना कर दिया। इलाहाबाद हाई कोर्ट के आदेश के बाद ही आपने उसकी जानकारी दी। ऐसा नहीं है कि आप सुपरटेक जैसे हैं, आप उनके साथ मिले हुए हैं।"

सुपरटेक ने क्‍या तर्क दिया था?
सुपरटेक ने भी अदालत के सामने घर खरीदारों पर ठीकरा फोड़ा। सुपरटेक के वकील विकास सिंह ने कहा, "घर खरीदार 2009 में हाई कोर्ट नहीं गए, बल्कि 2012 के बाद ही गए। वे तीन साल तक क्‍या कर रहे थे? मोलभाव?" कंपनी ने नोएडा के अन्‍य हाउजिंग प्रॉजेक्‍ट्स का हवाला दिया जिनके टावर्स के बीच 6 से 9 मीटर्स का फासला था जबकि उसके ट्विन टावर्स के बीच 9.88 मीटर की दूरी है।
लेखक के बारे में
दीपक वर्मा
दीपक वर्मा हिंदी बेल्‍ट में पले-बढ़े पत्रकार हैं। वह फिलहाल नवभारत टाइम्‍स ऑनलाइन में प्रिंसिपल डिजिटल कंटेंट प्रोड्यूसर हैं। प्रिंट मीडिया में आई नेक्‍स्‍ट-दैनिक जागरण से शुरुआत की। फिर डिजिटल जर्नलिज्म में आए। दीपक मूल रूप से लखनऊ के रहने वाले हैं। राजनीति, खेल, विज्ञान, अपराध समेत तमाम रोचक विषयों पर लिखते हैं।... और पढ़ें

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