नई दिल्ली
भारत में न्यायिक सुधारों की जरूरत लंबे समय से महसूस की जा रही है। अदालतों में लंबी-लंबी बहसों, वर्षों तक चलने वाली सुनवाई के कारण आम आदमी को न्याय मिलना लगातार मुश्किल होता जा रहा है। यही कारण है कि आम आदमी का भरोसा भी न्याय व्यवस्था से एक हद तक डिगने लगा है। ऐसे में देश के सर्वोच्च न्यायलय (Supreme Court of India) ने भरोसा बहाली की दिशा में एक अच्छी पहल की है। सुप्रीम कोर्ट ने सख्त समय सारणी (Strict Time Schedule) के आवंटन की तरफ पहला कदम बढ़ा दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने साफ चेतावनी दी है कि अगर समय-सीमा का ख्याल नहीं रखा गया तो सुनवाई स्वतः अनिश्चितकाल के लिए टल जाएगी। ऐसा अमेरिका और इंग्लैंड के सुप्रीम कोर्ट में होता है।
गुजरात हाई कोर्ट के एक वकील की याचिका पर हो रही थी बहस
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस आरएस रेड्डी की बेंच ने वरिष्ठ अधिवक्ताओं- अभिषेक मनु सिंघवी और अरविंद दातर को यतिन ओझा की याचिका पर बहस के लिए आधे घंटे जबकि गुजरात हाई कोर्ट के वकील निखिल गोयल को एक घंटा और इंटरवीनर के रूप में वरिष्ठ अधिवक्ता सीएस सुंदरम को 15 मिनट का वक्त दिया। यतिन ने गुजरात हाई कोर्ट के उस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है जिसमें हाई कोर्ट ने इस आधार पर उन्हें सीनियर एडवोकेट के दर्जे से वंचित कर दिया कि वो न्यायाधीशों और न्यायपालिका की अक्सर आलोचना करते रहते हैं।
'दशकों से लंबित मामलों के बीच ताजा मामलों पर घंटों बहस स्वीकार नहीं'
सुप्रीम कोर्ट के पास यह मामला करीब एक साल से पहले आया था। सुप्रीम कोर्ट ने इस दिशा में पहल की थी, लेकिन हाई कोर्ट ने अपने फैसले पर पुनर्विचार करने से इनकार कर दिया। उसने सुप्रीम कोर्ट को सूचना दी कि 20 जून को फुल कोर्ट की मीटिंग में ओझा के प्रति थोड़ी भी नरमी नहीं बरतने का फैसला हुआ है। तब शीर्ष अदालत ने मामले पर आखिरी सुनवाई के पहले कहा कि वह विभिन्न पक्षों को कई दिनों तक बहस करने की अनुमति नहीं देगा। सर्वोच्च न्यायालय की पीठ ने कहा, 'हम दशकों पुराने मामलों को लंबित रखकर ताजा मामलों पर वरिष्ठ वकीलों की घंटों-घंटों दलील को जायज कैसे ठहरा सकते हैं? हमें नहीं लगता कि यूके और यूएस के सुप्रीम कोर्ट में भी ऐसा कोई सिस्टम है जो वकीलों को घंटों बहस की अनुमति देता हो।'
अमेरिका, इंग्लैंड की शीर्ष अदालतों का हवाला
जस्टिस कौल ने कहा, 'यूएस सुप्रीम कोर्ट में वकील को सिर्फ जजमेंट का हवाला देने की अनुमति होती है, ना कि इसे पूरा पढ़ने की। लेकिन, यहां जज 20-20 जजमेंट का न केवल हवाला देते हैं बल्कि अपनी दलील को दमदार बनाने के लिए सभी आदेशों की कॉपी पढ़ते भी हैं।' पीठ ने वकीलों से कहा कि उन्हें अपनी दलील को दमदार बनाने वाले सर्वोत्तम आदेश का ही चयन करें और एक दलील के लिए सिर्फ एक जजमेंट का ही हवाला दें। सुप्रीम कोर्ट में अक्सर देखा जाता है कि वकील जजों से कहते हैं कि वो घड़ी देखकर 10 सेकंड में अपनी बात कह देंगे, लेकिन 10 मिनट ले लेते हैं।
इस पर अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा, 'उनका (मुवक्किल यतिन ओझा का) वरिष्ठ अधिवक्ता का दर्जा नौ महीनों से छिना हुआ है जो अपने आप में पर्याप्त सजा है। याचिकाकर्ता को सीख मिल गई है।' तब बेंच ने कहा कि वह इस बात पर विचार करेगा कि हाई कोर्ट की तरफ से दिया गया दंड उचित है या नहीं।
भारत में न्यायिक सुधारों की जरूरत लंबे समय से महसूस की जा रही है। अदालतों में लंबी-लंबी बहसों, वर्षों तक चलने वाली सुनवाई के कारण आम आदमी को न्याय मिलना लगातार मुश्किल होता जा रहा है। यही कारण है कि आम आदमी का भरोसा भी न्याय व्यवस्था से एक हद तक डिगने लगा है। ऐसे में देश के सर्वोच्च न्यायलय (Supreme Court of India) ने भरोसा बहाली की दिशा में एक अच्छी पहल की है। सुप्रीम कोर्ट ने सख्त समय सारणी (Strict Time Schedule) के आवंटन की तरफ पहला कदम बढ़ा दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने साफ चेतावनी दी है कि अगर समय-सीमा का ख्याल नहीं रखा गया तो सुनवाई स्वतः अनिश्चितकाल के लिए टल जाएगी। ऐसा अमेरिका और इंग्लैंड के सुप्रीम कोर्ट में होता है।
गुजरात हाई कोर्ट के एक वकील की याचिका पर हो रही थी बहस
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस आरएस रेड्डी की बेंच ने वरिष्ठ अधिवक्ताओं- अभिषेक मनु सिंघवी और अरविंद दातर को यतिन ओझा की याचिका पर बहस के लिए आधे घंटे जबकि गुजरात हाई कोर्ट के वकील निखिल गोयल को एक घंटा और इंटरवीनर के रूप में वरिष्ठ अधिवक्ता सीएस सुंदरम को 15 मिनट का वक्त दिया। यतिन ने गुजरात हाई कोर्ट के उस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है जिसमें हाई कोर्ट ने इस आधार पर उन्हें सीनियर एडवोकेट के दर्जे से वंचित कर दिया कि वो न्यायाधीशों और न्यायपालिका की अक्सर आलोचना करते रहते हैं।
हम दशकों पुराने मामलों को लंबित रखकर ताजा मामलों पर वरिष्ठ वकीलों की घंटों-घंटों दलील को जायज कैसे ठहरा सकते हैं? हमें नहीं लगता कि यूके और यूएस के सुप्रीम कोर्ट में भी ऐसा कोई सिस्टम है जो वकीलों को घंटों बहस की अनुमति देता हो।
'दशकों से लंबित मामलों के बीच ताजा मामलों पर घंटों बहस स्वीकार नहीं'
सुप्रीम कोर्ट के पास यह मामला करीब एक साल से पहले आया था। सुप्रीम कोर्ट ने इस दिशा में पहल की थी, लेकिन हाई कोर्ट ने अपने फैसले पर पुनर्विचार करने से इनकार कर दिया। उसने सुप्रीम कोर्ट को सूचना दी कि 20 जून को फुल कोर्ट की मीटिंग में ओझा के प्रति थोड़ी भी नरमी नहीं बरतने का फैसला हुआ है। तब शीर्ष अदालत ने मामले पर आखिरी सुनवाई के पहले कहा कि वह विभिन्न पक्षों को कई दिनों तक बहस करने की अनुमति नहीं देगा। सर्वोच्च न्यायालय की पीठ ने कहा, 'हम दशकों पुराने मामलों को लंबित रखकर ताजा मामलों पर वरिष्ठ वकीलों की घंटों-घंटों दलील को जायज कैसे ठहरा सकते हैं? हमें नहीं लगता कि यूके और यूएस के सुप्रीम कोर्ट में भी ऐसा कोई सिस्टम है जो वकीलों को घंटों बहस की अनुमति देता हो।'
अमेरिका, इंग्लैंड की शीर्ष अदालतों का हवाला
जस्टिस कौल ने कहा, 'यूएस सुप्रीम कोर्ट में वकील को सिर्फ जजमेंट का हवाला देने की अनुमति होती है, ना कि इसे पूरा पढ़ने की। लेकिन, यहां जज 20-20 जजमेंट का न केवल हवाला देते हैं बल्कि अपनी दलील को दमदार बनाने के लिए सभी आदेशों की कॉपी पढ़ते भी हैं।' पीठ ने वकीलों से कहा कि उन्हें अपनी दलील को दमदार बनाने वाले सर्वोत्तम आदेश का ही चयन करें और एक दलील के लिए सिर्फ एक जजमेंट का ही हवाला दें। सुप्रीम कोर्ट में अक्सर देखा जाता है कि वकील जजों से कहते हैं कि वो घड़ी देखकर 10 सेकंड में अपनी बात कह देंगे, लेकिन 10 मिनट ले लेते हैं।
इस पर अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा, 'उनका (मुवक्किल यतिन ओझा का) वरिष्ठ अधिवक्ता का दर्जा नौ महीनों से छिना हुआ है जो अपने आप में पर्याप्त सजा है। याचिकाकर्ता को सीख मिल गई है।' तब बेंच ने कहा कि वह इस बात पर विचार करेगा कि हाई कोर्ट की तरफ से दिया गया दंड उचित है या नहीं।