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उच्चतम न्यायालय ने कार्यकर्ताओं की रिहाई वाली रोमिला थापर की पुनर्विचार याचिका खारिज की

नयी दिल्ली, 27 अक्टूबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने इतिहासकार रोमिला थापर की उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें उन्होंने कोरेगांव-भीमा हिंसा के सिलसिले में गिरफ्तार किये गये पांच मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को तत्काल रिहा करने से इनकार वाले फैसले पर पुनर्विचार करने की मांग की थी। उच्चतम न्यायालय ने 28 सितंबर को बहुमत से कार्यकर्ताओं को रिहा करने की मांग खारिज कर दी थी। गौरतलब है कि प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई और न्यायमूर्ति ए एम खनविलकर और न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ की एक पीठ ने शुक्रवार को याचिका खारिज कर दी थी। आदेश शनिवार को बेवसाइट पर डाला गया। पीठ

भाषा 27 Oct 2018, 2:50 pm
नयी दिल्ली, 27 अक्टूबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने इतिहासकार रोमिला थापर की उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें उन्होंने कोरेगांव-भीमा हिंसा के सिलसिले में गिरफ्तार किये गये पांच मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को तत्काल रिहा करने से इनकार वाले फैसले पर पुनर्विचार करने की मांग की थी। उच्चतम न्यायालय ने 28 सितंबर को बहुमत से कार्यकर्ताओं को रिहा करने की मांग खारिज कर दी थी। गौरतलब है कि प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई और न्यायमूर्ति ए एम खनविलकर और न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ की एक पीठ ने शुक्रवार को याचिका खारिज कर दी थी। आदेश शनिवार को बेवसाइट पर डाला गया। पीठ ने कहा, ‘‘हमने समीक्षा याचिका और साथ ही इसके समर्थन के बिंदुओं का अवलोकन किया। हमारे विचार में, 28 सितंबर 2018 को सुनाये गये फैसले पर समीक्षा का कोई मामला नहीं है। इस हिसाब से समीक्षा याचिका खारिज की जाती है।’’ 28 सितंबर को अदालत ने 28 अगस्त को महाराष्ट्र पुलिस द्वारा गिरफ्तार किये गये पांच मानवाधिकार कार्यकर्ताओं वरवरा राव, अरुण फरेरा, वेरनॉन गोंसाल्विज, सुधा भारद्वाज और गौतम नौलखा को तत्काल रिहा करने की याचिका को खारिज कर दी थी। पिछले साल 31 दिसंबर को ‘एल्गार परिषद’ नामक एक कार्यक्रम के बाद एक एफआईआर के सिलसिले में कार्यकर्ताओें को गिरफ्तार किया गया। इस कार्यक्रम के बाद महाराष्ट्र के कोरेगांव-भीमा गांव में कथित तौर पर हिंसा हुई थी। उन्हें 29 अगस्त को नजरबंद किया गया था। अदालत ने 28 सितंबर को कहा था कि आरोपी को चार और सप्ताह तक नजरबंद रखा जाएगा। न्यायालय ने 2-1 के बहुमत से फैसला सुनाते हुये उनकी गिरफ्तारी की जांच के लिए एसआईटी नियुक्त करने से भी इंकार कर दिया था।

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