नई दिल्ली
अहमदिया मुसलमानों का मुसलमान न माना जाना, यहां तक कि उनकी हज यात्रा तक की मनाही कोई नई बात नहीं है। लेकिन इस वक्त वे फिर से इस वजह से चर्चा में हैं कि पाकिस्तान ने इस समुदाय की नुमाइंदगी करने वाली एक वेबसाइट को नोटिस जारी कर उसे तुरंत बंद करने को कहा है। पाकिस्तान का तर्क यह है कि अहमदिया प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से न तो अपने को मुसलमान कह सकते हैं और न ही वे मुसलमान हैं, ऐसे में उन्हें अपनी 'इस्लामिक' वेबसाइट चलाने का कोई हक नहीं है। यह एक तरह से धोखाधड़ी है और इस्लाम धर्म मानने वाले की भावनाओं पर हमला है।
अहमदिया मुसलमानों से यह दुराव क्यों?
एक बात यह भी समझनी जरूरी है कि अहमदिया मुसलमानों से जो यह दुराव है, वह केवल पाकिस्तान या सऊदी अरब तक सीमित नहीं है बल्कि दुनिया के लगभग सभी देशों में अहमदिया मुसलमानों और बाकी मुसलमानों के बीच कोई राब्ता नहीं है।
हां, पाकिस्तान उनको लेकर कुछ ज्यादा ही आक्रामक है और उसके आक्रामक होने की एक वजह तो यह मानी जाती है कि वहां उनकी तादाद कुछ ज्यादा है और दूसरी यह कि वह अपने अवाम को यह संदेश देना चाहता है कि हमारी तरफ से उनकी कोई स्वीकार्यता नहीं है। बाकायदा आधिकारिक तौर पर वहां अहमदिया मुसलमानों को इस्लाम से खारिज किया जा चुका है।
कौन होते हैं अहमदिया मुसलमान?
इस्लाम में मुसलमानों की स्पष्ट मान्यता है कि मुहम्मद साहब अल्लाह के आखिरी पैगम्बर थे। उनके बाद न कोई हुआ है और न कोई हो सकता है। इस्लाम की बुनियाद इसी विश्वास पर टिकी है। इस्लाम की कबूलियत का जो कलमा है, वह भी यही है- 'ला इलाहा इल्लल्लाह, मुहम्मदर्रसूल अल्लाह' यानी अल्लाह के अलावा कोई माबूद नहीं और मुहम्मद अल्लाह के रसूल हैं लेकिन अहमदिया मुसलमान मिर्ज़ा ग़ुलाम अहमद को भी नबी का दर्जा देते हैं। यहीं से टकराव की शुरुआत होती है।
गैर अहमदिया मुस्लिम के जो उलेमा हैं, उनका कहना है कि अगर कोई हजरत मुहम्मद के बाद किसी और के नबी होने को स्वीकारता है तो वह उस कलमा को ही खारिज कर रहा है, जिसको पढ़कर कोई भी इस्लाम को स्वीकारता है। चूंकि अहमदिया मुसलमान हजरत मुहम्मद को आखिरी पैगम्बर नहीं मानते, इसी वजह से सऊदी सरकार ने भी उनकी हजयात्रा पर रोक लगा रखी है।
अगर कोई अहमदिया मुसलमान अपनी धार्मिक आस्था को छिपा कर चोरी-छिपे हज यात्रा करने पहुंच जाता है और वहां उसकी पहचान हो जाती है तो फिर उसे गिरफ्तार कर लिया जाता है। हालांकि अहमदिया मुसलमान मिर्जा गुलाम अहमद को नबी मानने के अलावा बाकी कुरआन और नमाज को उसी तरह फॉलो करते हैं, जैसे दूसरे मुसलमान करते हैं।
पाकिस्तान क्यों मानता है खतरा?
पाकिस्तान में अहमदिया मुसलमानों के साथ टकराव की घटनाएं लगातार बढ़ती जा रही हैं, जिनमें लगातार मौत भी हो रहीं हैं। पाकिस्तान का यह मानना है कि अहमदिया मुसलमान इस्लाम धर्म के मानने वालों को 'गुमराह' कर रहे हैं। और एक इस्लामिक देश में 'गैर इस्लामिक कृत्य' पर अंकुश नहीं लगाया गया तो इस्लाम धर्म पर विपरीत असर पड़ेगा।
पाकिस्तान में यह मांग भी जोर पकड़ती जा रही है कि किसी भी महत्वपूर्ण पद पर अहमदिया मुसलमानों की नियुक्ति न की जाए लेकिन एक उल्लेखनीय बात यह है कि अब्दुस्सलाम पाकिस्तान के पहले और अकेले वैज्ञानिक हैं जिन्हें फिज़िक्स के लिए नोबेल पुरस्कार दिया गया है और वे अहमदिया समुदाय से ही थे। बाद में उनके नाम पर ही वहां की कायद-ए-आजम यूनिवर्सिटी के फिजिक्स डिपार्टमेंट का नाम रखा गया।
बाद के दिनों में इसको लेकर भी वहां खासा विवाद रहा है और इसका नाम बदले जाने की मांग उठती रही है। हालिया विवाद वेबसाइट को प्रतिबंधित करने को लेकर उठा है, उसको लेकर भी पाकिस्तानी सरकार का कहना है कि उसके जरिए ऐसे कंटेट का प्रचार-प्रसार हो रहा है, जिसकी इस्लाम में कोई जगह नहीं है।
अहमदिया मुसलमानों का मुसलमान न माना जाना, यहां तक कि उनकी हज यात्रा तक की मनाही कोई नई बात नहीं है। लेकिन इस वक्त वे फिर से इस वजह से चर्चा में हैं कि पाकिस्तान ने इस समुदाय की नुमाइंदगी करने वाली एक वेबसाइट को नोटिस जारी कर उसे तुरंत बंद करने को कहा है।
अहमदिया मुसलमानों से यह दुराव क्यों?
एक बात यह भी समझनी जरूरी है कि अहमदिया मुसलमानों से जो यह दुराव है, वह केवल पाकिस्तान या सऊदी अरब तक सीमित नहीं है बल्कि दुनिया के लगभग सभी देशों में अहमदिया मुसलमानों और बाकी मुसलमानों के बीच कोई राब्ता नहीं है।
हां, पाकिस्तान उनको लेकर कुछ ज्यादा ही आक्रामक है और उसके आक्रामक होने की एक वजह तो यह मानी जाती है कि वहां उनकी तादाद कुछ ज्यादा है और दूसरी यह कि वह अपने अवाम को यह संदेश देना चाहता है कि हमारी तरफ से उनकी कोई स्वीकार्यता नहीं है। बाकायदा आधिकारिक तौर पर वहां अहमदिया मुसलमानों को इस्लाम से खारिज किया जा चुका है।
कौन होते हैं अहमदिया मुसलमान?
इस्लाम में मुसलमानों की स्पष्ट मान्यता है कि मुहम्मद साहब अल्लाह के आखिरी पैगम्बर थे। उनके बाद न कोई हुआ है और न कोई हो सकता है। इस्लाम की बुनियाद इसी विश्वास पर टिकी है। इस्लाम की कबूलियत का जो कलमा है, वह भी यही है- 'ला इलाहा इल्लल्लाह, मुहम्मदर्रसूल अल्लाह' यानी अल्लाह के अलावा कोई माबूद नहीं और मुहम्मद अल्लाह के रसूल हैं लेकिन अहमदिया मुसलमान मिर्ज़ा ग़ुलाम अहमद को भी नबी का दर्जा देते हैं। यहीं से टकराव की शुरुआत होती है।
गैर अहमदिया मुस्लिम के जो उलेमा हैं, उनका कहना है कि अगर कोई हजरत मुहम्मद के बाद किसी और के नबी होने को स्वीकारता है तो वह उस कलमा को ही खारिज कर रहा है, जिसको पढ़कर कोई भी इस्लाम को स्वीकारता है। चूंकि अहमदिया मुसलमान हजरत मुहम्मद को आखिरी पैगम्बर नहीं मानते, इसी वजह से सऊदी सरकार ने भी उनकी हजयात्रा पर रोक लगा रखी है।
अगर कोई अहमदिया मुसलमान अपनी धार्मिक आस्था को छिपा कर चोरी-छिपे हज यात्रा करने पहुंच जाता है और वहां उसकी पहचान हो जाती है तो फिर उसे गिरफ्तार कर लिया जाता है। हालांकि अहमदिया मुसलमान मिर्जा गुलाम अहमद को नबी मानने के अलावा बाकी कुरआन और नमाज को उसी तरह फॉलो करते हैं, जैसे दूसरे मुसलमान करते हैं।
पाकिस्तान क्यों मानता है खतरा?
पाकिस्तान में अहमदिया मुसलमानों के साथ टकराव की घटनाएं लगातार बढ़ती जा रही हैं, जिनमें लगातार मौत भी हो रहीं हैं। पाकिस्तान का यह मानना है कि अहमदिया मुसलमान इस्लाम धर्म के मानने वालों को 'गुमराह' कर रहे हैं। और एक इस्लामिक देश में 'गैर इस्लामिक कृत्य' पर अंकुश नहीं लगाया गया तो इस्लाम धर्म पर विपरीत असर पड़ेगा।
पाकिस्तान में यह मांग भी जोर पकड़ती जा रही है कि किसी भी महत्वपूर्ण पद पर अहमदिया मुसलमानों की नियुक्ति न की जाए लेकिन एक उल्लेखनीय बात यह है कि अब्दुस्सलाम पाकिस्तान के पहले और अकेले वैज्ञानिक हैं जिन्हें फिज़िक्स के लिए नोबेल पुरस्कार दिया गया है और वे अहमदिया समुदाय से ही थे। बाद में उनके नाम पर ही वहां की कायद-ए-आजम यूनिवर्सिटी के फिजिक्स डिपार्टमेंट का नाम रखा गया।
बाद के दिनों में इसको लेकर भी वहां खासा विवाद रहा है और इसका नाम बदले जाने की मांग उठती रही है। हालिया विवाद वेबसाइट को प्रतिबंधित करने को लेकर उठा है, उसको लेकर भी पाकिस्तानी सरकार का कहना है कि उसके जरिए ऐसे कंटेट का प्रचार-प्रसार हो रहा है, जिसकी इस्लाम में कोई जगह नहीं है।