नई दिल्ली
अमेरिकी दौरे पर गए भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को वहां की सरकार ने चोलकालीन गणेश की मूर्ति और चोरी हुईं 200 अन्य भारतीय कलाकृतियां सौंपीं। इसके साथ ही भारत को विदेशों से वापस मिलने वाली धरोहरों की लिस्ट लंबी हो गई है, जो कभी चोरों और तस्करों के जरिए दूसरे देशों में पहुंच गए थे। भारत को उसके प्राचीन और कीमती सामान वापस मिल रहे हैं, तो इसके पीछे कूटनीति के साथ ही एक संगठन का भी हाथ है।
पढ़ें: अमेरिका ने लौटाईं 10 करोड़ डॉलर की 200 कलाकृतियां
पहले बात करते हैं कि पिछले दो सालों में क्या-क्या वापस मिला है। अमेरिका ने 5 जून, 2016 को लौटाई गणेश की कांस्य प्रतिमा और जैन धर्म के बाहुबली की प्रतिमा के अलावा 200 अन्य कलाकृतियों को भारत को सौंपने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। इसमें धार्मिक मूर्तियां, कांसे और टेराकोटा से बनी चीजें हैं। भारत को लौटाई गईं प्रतिमाओं में से कुछ तो 2000 साल पुरानी हैं।
भारत को पुरानी कलाकृतियां लौटाने वाले देशों में केवल अमेरिका ही नहीं है। कनाडा ने भी खजुराहो से चोरी हुई 900 साल पुरानी एक मूर्ति लौटाई है। बलुआ पत्थर की बनी मूर्ति को 'पैरट-लेडी' के नाम से जाना जाता है। अप्रैल, 2015 में कनाडा यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री मोदी को यह मूर्ति सौंपी गई।
ऑस्ट्रेलिया ने भी 11वीं सदी की नटराज की मूर्ति भारत को सौंपी है। चोल वंशकालीन नटराज की यह चोरी हुई मूर्ति और 10वीं शताब्दी की अर्द्धनारीश्वर की प्रतिमा सितंबर, 2014 में मोदी की ऑस्ट्रेलिया यात्रा के दौरान उन्हें सौंपी गई।
जर्मनी ने 10वीं सदी की दुर्गा की प्रतिमा आंगेला मेरकल की भारत यात्रा के दौरान सौंपी। यह मूर्ति 90 के दशक में जम्मू-कश्मीर के एक मंदिर से चोरी हो गई थी। 2012 में इसके बारे में पता चला था। जर्मन चांसलर ने अक्टूबर, 2015 में अपनी भारत यात्रा के दौरान इसे मोदी को दिया था।
इसके अलावा, स्वर्गीय श्यामजी कृष्ण वर्मा के अंतिम अवशेष को स्विट्जरलैंड ने 50 साल बाद वापस किया। गुजरात के मुख्यमंत्री के तौर पर मोदी जब जिनीवा गए थे, तो वह इसे वहां से वापस लाए थे।
'इंडिया प्राइड प्रॉजेक्ट' नामक यह संगठन चोरी हुई कीमती चीजें दिलाने के लिए भारत सरकार के साथ मिलकर काम कर रहा है। गणेश की मूर्ति की 'घर वापसी' के पीछे भी इसी संगठन का बड़ा हाथ है।
इस संगठन को बनाने वाले अनुराग सक्सेना हैं। यह संगठन पहले तो पता करता है कि कौन सी मूर्ति या कलाकृति गायब हुई है। इसके बाद इस मामले को कानूनी रूप देने के लिए एफआईआर दर्ज कराई जाती है। इससे केस में जांच एजेंसियां शामिल हो जाती हैं और मामले की तलाश में जुट जाती हैं। अंत में दो देशों की सरकार के बीच बातचीत होती है।
हाल ही में अमेरिका द्वारा सौंपी गई गणेश की मूर्ति के लिए इस संगठन ने भारत के पुडुचेरी में फ्रेंच इंस्टिट्यूट (IFP) और ओहियो के एक म्यूजियम में रखी मूर्ति के बीच 19 समानताएं खोज कर बताईं। इससे पता चला कि यह मूर्ति भारत से ही तस्करी कर अमेरिका तक पहुंचाई गई है।
सक्सेना इसी सिलसिले में हर महीने का पहला हफ्ता भारत में गुजारते हैं। इस दौरान वह आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के अधिकारियों और संस्कृति मंत्रालय के अधिकारियों के साथ मुलाकात करते हैं। उन्होंने कहा है कि उनके साथ कई वॉलनटिअर एक नेटवर्क की तरह काम करते हैं।
अमेरिकी दौरे पर गए भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को वहां की सरकार ने चोलकालीन गणेश की मूर्ति और चोरी हुईं 200 अन्य भारतीय कलाकृतियां सौंपीं। इसके साथ ही भारत को विदेशों से वापस मिलने वाली धरोहरों की लिस्ट लंबी हो गई है, जो कभी चोरों और तस्करों के जरिए दूसरे देशों में पहुंच गए थे। भारत को उसके प्राचीन और कीमती सामान वापस मिल रहे हैं, तो इसके पीछे कूटनीति के साथ ही एक संगठन का भी हाथ है।
पढ़ें: अमेरिका ने लौटाईं 10 करोड़ डॉलर की 200 कलाकृतियां
पहले बात करते हैं कि पिछले दो सालों में क्या-क्या वापस मिला है। अमेरिका ने 5 जून, 2016 को लौटाई गणेश की कांस्य प्रतिमा और जैन धर्म के बाहुबली की प्रतिमा के अलावा 200 अन्य कलाकृतियों को भारत को सौंपने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। इसमें धार्मिक मूर्तियां, कांसे और टेराकोटा से बनी चीजें हैं। भारत को लौटाई गईं प्रतिमाओं में से कुछ तो 2000 साल पुरानी हैं।
भारत को पुरानी कलाकृतियां लौटाने वाले देशों में केवल अमेरिका ही नहीं है। कनाडा ने भी खजुराहो से चोरी हुई 900 साल पुरानी एक मूर्ति लौटाई है। बलुआ पत्थर की बनी मूर्ति को 'पैरट-लेडी' के नाम से जाना जाता है। अप्रैल, 2015 में कनाडा यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री मोदी को यह मूर्ति सौंपी गई।
ऑस्ट्रेलिया ने भी 11वीं सदी की नटराज की मूर्ति भारत को सौंपी है। चोल वंशकालीन नटराज की यह चोरी हुई मूर्ति और 10वीं शताब्दी की अर्द्धनारीश्वर की प्रतिमा सितंबर, 2014 में मोदी की ऑस्ट्रेलिया यात्रा के दौरान उन्हें सौंपी गई।
जर्मनी ने 10वीं सदी की दुर्गा की प्रतिमा आंगेला मेरकल की भारत यात्रा के दौरान सौंपी। यह मूर्ति 90 के दशक में जम्मू-कश्मीर के एक मंदिर से चोरी हो गई थी। 2012 में इसके बारे में पता चला था। जर्मन चांसलर ने अक्टूबर, 2015 में अपनी भारत यात्रा के दौरान इसे मोदी को दिया था।
इसके अलावा, स्वर्गीय श्यामजी कृष्ण वर्मा के अंतिम अवशेष को स्विट्जरलैंड ने 50 साल बाद वापस किया। गुजरात के मुख्यमंत्री के तौर पर मोदी जब जिनीवा गए थे, तो वह इसे वहां से वापस लाए थे।
'इंडिया प्राइड प्रॉजेक्ट' नामक यह संगठन चोरी हुई कीमती चीजें दिलाने के लिए भारत सरकार के साथ मिलकर काम कर रहा है। गणेश की मूर्ति की 'घर वापसी' के पीछे भी इसी संगठन का बड़ा हाथ है।
इस संगठन को बनाने वाले अनुराग सक्सेना हैं। यह संगठन पहले तो पता करता है कि कौन सी मूर्ति या कलाकृति गायब हुई है। इसके बाद इस मामले को कानूनी रूप देने के लिए एफआईआर दर्ज कराई जाती है। इससे केस में जांच एजेंसियां शामिल हो जाती हैं और मामले की तलाश में जुट जाती हैं। अंत में दो देशों की सरकार के बीच बातचीत होती है।
हाल ही में अमेरिका द्वारा सौंपी गई गणेश की मूर्ति के लिए इस संगठन ने भारत के पुडुचेरी में फ्रेंच इंस्टिट्यूट (IFP) और ओहियो के एक म्यूजियम में रखी मूर्ति के बीच 19 समानताएं खोज कर बताईं। इससे पता चला कि यह मूर्ति भारत से ही तस्करी कर अमेरिका तक पहुंचाई गई है।
सक्सेना इसी सिलसिले में हर महीने का पहला हफ्ता भारत में गुजारते हैं। इस दौरान वह आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के अधिकारियों और संस्कृति मंत्रालय के अधिकारियों के साथ मुलाकात करते हैं। उन्होंने कहा है कि उनके साथ कई वॉलनटिअर एक नेटवर्क की तरह काम करते हैं।