जानें, क्या राम मंदिर निर्माण का रास्ता प्राइवेट बिल से बन सकता है

बीजेपी सांसद राकेश सिन्हा और सी. पी. ठाकुर ने अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए संसद के आगामी शीतकालीन सत्र में प्राइवेट मेंबर बिल लाने की बात कही है। हालांकि पिछले 50 सालों में एक भी प्राइवेट मेंबर बिल को संसद के दोनों सदनों की मंजूरी नहीं मिली है।

नरेंद्र नाथ | नवभारत टाइम्स 11 Nov 2018, 10:55 am

हाइलाइट्स

  • 50 बरसों में कोई प्राइवेट मेंबर बिल संसद से पास नहीं हुआ
  • 1968 में अंतिम बार कोई प्राइवेट मेंबर बिल पास होकर कानून बना
  • अबतक सिर्फ 14 प्राइवेट मेंबर बिल ही ले पाए हैं कानून की शक्ल
  • राकेश सिन्हा और सीपी ठाकुर राम मंदिर के लिए ला सकते हैं प्राइवेट बिल
सारी खबरें हाइलाइट्स में पढ़ने के लिए ऐप डाउनलोड करें
नवभारतटाइम्स.कॉम parliament house
नई दिल्ली
क्या आम चुनाव से पहले अयोध्या में राम मंदिर निर्माण का रास्ता प्राइवेट मेंबर बिल यानी निजी विधेयक के माध्यम से खुलेगा? क्या प्राइवेट मेंबर बिल के पास इतना कानूनी कवच है कि उससे देश की सबसे पेचीदा समस्याओं में एक का हल खोजा जा सके? यह सवाल तब उठा, जब राम मंदिर पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई टलने के बाद कानून बनाकर राम मंदिर बनाने का रास्ता तलाशने की पुरजोर मांग उठी। बीजेपी के राज्यसभा सांसद राकेश सिन्हा ने कहा है कि वह संसद के शीतकालीन सत्र में इस मसले पर प्राइवेट मेंबर बिल लाएंगे। बीजेपी के ही दूसरे राज्यसभा सांसद सी. पी. ठाकुर ने इसी मसले पर प्राइवेट मेंबर बिल लाने की बात कही। ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि क्या प्राइवेट मेंबर बिल वह काम कर पाएगा जो पिछले 50 सालों में नहीं हो सका है। अंतिम बार साल 2014 में राज्यसभा में एक प्राइवेट मेंबर बिल पास हुआ था। तब डीएमके सांसद तिरुचि शिवा के बिल को वहां मंजूरी मिली थी। इसमें प्रावधान था कि ट्रांसजेंडर के लिए एक राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय आयोग बनाया जाएगा लेकिन उसके बाद वह बिल आगे नहीं बढ़ा और बीच में अटककर रह गया।

बीच का रास्ता निकालने की कोशिश

दरअसल प्राइवेट मेंबर बिल के जरिए राम मंदिर का रास्ता तलाशना बीजेपी की सियासी मजबूरी है। सुप्रीम कोर्ट में राम मंदिर पर सुनवाई टलने के बाद सरकार पर तुरंत कुछ करने का जबरदस्त दबाव था। संत समाज से लेकर पार्टी के कोर वोटर तक बिल तो दूर, तत्काल ऑर्डिनेंस लाने की मांग पर अड़े हैं। बीजेपी के लिए इस मुद्दे पर कोर वोटरों की अपेक्षाओं को पूरा करने की भी चुनौती है। दरअसल, राम मंदिर पार्टी के लिए हमेशा बड़ा चुनावी मुद्दा रहा है। पार्टी कहीं भी ऐसा नहीं दिखना चाहती कि वह इस मसले पर पीछे हट रही है। वहीं, सरकार में रहते हुए इस पर आगे बढ़ने की अपनी सीमाएं भी हैं और उसके तकनीकी पक्ष भी। ऐसे में सरकार और पार्टी इस झंझट में नहीं पड़ना चाहती थी और फिलहाल इस मसले को सुप्रीम कोर्ट के भरोसे ही छोड़ना चाहती थी लेकिन अब जो हालात बने हैं, उसके बाद सरकार की चिंता कोर वोटर की भी है।
प्राइवेट बिल में फायदा देख रही बीजेपी
कानूनी जानकारों के अनुसार सरकार के लिए अभी इस परिस्थिति में राम मंदिर पर ऑर्डिनेंस लाना या कानून बनाने का विकल्प चुनना बहुत ही कठिन है। राजनीति के लिहाज से भी यह संवेदनशील मामला है। इसके बहुआयामी प्रभाव होंगे और सरकार-बीजेपी को भी पता नहीं है कि इसका कितना सियासी नफा-नुकसान होगा। जेडीयू और अकाली दल जैसे सहयोगी पहले ही संकेत दे चुके हैं कि वे कानून बनाने के पक्ष में नहीं हैं। ऐसे में सरकार के लिए फैसला लेना कठिन है। यही कारण है कि प्राइवेट मेंबर बिल के रूप में बीच का रास्ता निकालने की कोशिश हो रही है। बीजेपी को उम्मीद है कि अगर उनके सांसद प्राइवेट मेंबर बिल पेश करते हैं तो उस पर बहस की मांग करेंगे, जिसमें विपक्ष को राम मंदिर पर स्टैंड लेने के लिए मजबूर किया जा सकता है। बीजेपी और सरकार की मंशा है कि वह इस मुद्दे पर गेंद विपक्ष के पाले में दे और उन्हें ट्रिपल तलाक बिल की तरह मामले में उलझाएं।

क्या होता है प्राइवेट मेंबर बिल

यह संसद में लाया जाने वाला ऐसा बिल होता है जिसे संबंधित मंत्रालय का मंत्री नहीं बल्कि कोई दूसरा सांसद सदन में पेश करता है। हालांकि इस पर बहस सामान्य बिल की तरह होती है और सभी इसमें भाग ले सकते हैं। अगर बिल दोनों सदनों से पास हो जाता है तो सरकार के सामने इसे राष्ट्रपति से अनुमति लेकर कानूनी शक्ल देने की बाध्यता रहती है। हर शुक्रवार को संसद के दोनों सदनों में ढाई घंटा प्राइवेट मेंबर बिल के लिए आवंटित किया जाता है लेकिन पिछले 50 सालों से जिस तरह इस दौरान कोई भी बिल पास नहीं हुआ, उससे इसकी प्रासंगिकता पर सवाल उठने लगे थे।

अबतक सिर्फ इन 14 प्राइवेट बिलों को मिली मंजूरी
- अंतिम बार 1968 में निर्दलीय आनंद नारायण मुलू का सुप्रीम कोर्ट बिल लोकसभा से पास हुआ था जो दो साल बाद 1970 में राज्यसभा से पास हुआ। मतलब 50 सालों से कोई प्राइवेट बिल पास ही नहीं हुआ है।

- सिर्फ 1956 में एक ही साल के अंदर 6 प्राइवेट मेंबर बिल पास किए गए थे। पिछली लोकसभा में 600 से ऊपर प्राइवेट बिल पेश किए गए थे जिनमें महज 50 से अधिक बिल पर ही चर्चा हुई जबकि एक भी पास नहीं हुआ।

- मुस्लिम वक्फ बिल 1952 को सैयद मोहम्मद कासमी की ओर से पेश किया गया यह बिल 1954 में पास किया गया था।

- कोड ऑफ क्रिमिनल प्रॉसिजर संशोधन बिल को लोकसभा में रघुनाथ सिंह ने लाया था और संसद से 1956 में पास किया गया था।

- इंडियन रजिस्ट्रेशन संशोधन बिल 1955 को एस. सी. समंता की ओर से लोकसभा में पेश किया गया। इस बिल को 1956 में संसद से पास किया गया।

- प्रटेक्शन ऑफ पब्लिकेशन बिल को लोकसभा में फिरोज गांधी की ओर से लाया गया। इस प्राइवेट बिल को 1956 में संसद से पास किया गया था।

- महिला और बाल संस्था लाइसेंस बिल 1954 को राजमाता कमलेंदुमति शाह ने लोकसभा में इसे 1956 में पेश किया था जो पास होकर कानून बना।

- प्राचीन और ऐतिहासिक पुरातत्व संस्थान बिल को 1954 में राज्यसभा में रघुवीर सिंह ने पेश किया था, जो बाद में कानून की शक्ल ले सका।

- हिंदू विवाह संशोधन बिल 1956 को राज्यसभा सांसद सीता परमानंद की ओर से पेश किया गया। इस बिल को 1956 में ही पास किया गया था।

- कोड ऑफ क्रिमिनल प्रॉसिजर संशोधन बिल 1957 को लोकसभा सांसद सुभद्रा जोशी की ओर से पेश किया गया। इस बिल को 1960 में पास किया गया।

- अनाथालय-आश्रयगृह सुपरविजन बिल 1960 को राज्यसभा सांसद कैलाश बिहारी लाल की ओर से पेश किया गया। इस बिल को 1960 में पास किया गया।

- मरीन इंश्योरेंस बिल 1959 को राज्यसभा में एम. बी. भार्गव की ओर से पेश किया गया, जिसे संसद ने 1963 में पास किया।

- हिंदू विवाह संशोधन बिल 1962 को लोकसभा में सन‌ 1962 में दीवान चंद शर्मा की ओर से पेश किया गया, जिसे संसद की मंजूरी मिली।

- सांसदों के लिए वेतन-भत्ता संशोधन बिल 1964 को लोकसभा में रघुनाथ सिंह ने पेश किया, जिसे संसद ने पास किया।

- IPC संशोधन बिल, 1967 को दीवान चमन लाल ने 1968 में राज्यसभा में पेश किया। यह भी कानून बना।

- सुप्रीम कोर्ट बिल 1968 को आनंद रंजन की ओर से पेश किया गया, जिस पर संसद की मुहर लगी।
लेखक के बारे में
नरेंद्र नाथ
नरेन्द्र नाथ नवभारत टाइम्स में असिस्टेंट एडिटर हैं। वह राजनीति से जुड़ी खबरों को नजदीक से फॉलो करते हैं इस बारे में आपको हर घटनाक्रम से वाकिफ कराते रहेंगे। पीएमओ को भी कवर करते हैं और इससे भी जड़ी हर खबर पहुंचाने की कोशिश रहेगी। ... और पढ़ें

अगला लेख

Indiaकी ताजा खबरें, ब्रेकिंग न्यूज, अनकही और सच्ची कहानियां, सिर्फ खबरें नहीं उसका विश्लेषण भी। इन सब की जानकारी, सबसे पहले और सबसे सटीक हिंदी में देश के सबसे लोकप्रिय, सबसे भरोसेमंद Hindi Newsडिजिटल प्लेटफ़ॉर्म नवभारत टाइम्स पर