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मिसकैरेज के बारे में बात करना है जरूरी, 15-25% महिलाएं होती हैं प्रभावित

बहुत से लोग शुरुआती 3 महीनों तक प्रेग्नेंसी को छिपाकर रखते हैं। ऐसे में उन्हें पता नहीं होता कि गर्भवती महिलाओं को क्या-क्या सावधानियां शुरुआत के 3 महीने में बरतनी चाहिए।

टाइम्स न्यूज नेटवर्क 1 Nov 2019, 1:16 pm
मिसकैरेज होना न सिर्फ शारीरिक रूप से बुरा होता है बल्कि इसका मानसिक और भावनात्मक रूप से भी बुरा असर पड़ता है। हमारे देश में आज भी इस बारे में खुलकर बात नहीं की जाती है और महिलाएं मन ही मन इसका अफसोस लिए रहती हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक 85 प्रतिशत मिसकैरेज प्रेग्नेन्सी के 12वें सप्ताह में होती है।
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बहुत से लोग शुरुआती 3 महीनों तक प्रेग्नेंसी को छिपाकर रखते हैं। ऐसे में उन्हें पता नहीं होता कि गर्भवती महिलाओं को क्या-क्या सावधानियां शुरुआत के 3 महीने में बरतनी चाहिए। इसलिए इस दौरान मिसकैरेज होने पर उसे रियल प्रेग्नेंसी नहीं माना जाता है।

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उम्र का असर
डॉक्टर्स का कहना है कि प्रेग्नेंसी की शुरुआत में ठीक से ध्यान रखा जाए तो ज्यादातर मिसकैरेज से बचा जा सकता है। 20-25 साल की उम्र की महिलाओं में करीब 15 से 16 प्रतिशत मिसैकैरेज होता है। 30 से 35 की उम्र की महिलाओं में यह बढ़कर 18 से 22 प्रतिशत हो जाता है। 40 के करीब की महिलाओं में मिसैकेरेज की घटनाएं 38 प्रतिशत तक बढ़ जाती हैं, वहीं 45 साल या उससे ज्यादा की महिलाओं की बात करें तो मिसकैरेज का चांस 70 प्रतिशत रहता है।

इसलिए अकेली हो जाती हैं महिलाएं
ज्यादातर महिलाएं मिसकैरेज से गुजरती हैं। वे खुद को अकेला और उदास महसूस करती हैं क्योंकि उनसे कहा जाता है कि वे बात का बतंगड़ न बनाएं।

कई तरह के होते हैं मिसकैरेज
मिसकैरेज कई तरह के होते हैं, थ्रेटेन्ड मिसकैरेज, कंप्लीट मिसकैरेज, मिस्ड मिसकैरेज, रिकरेंट मिसकैरेज। इन सबकी वजह अलग-अलग हो सकती है। कुछ प्लासेंटा में दिक्कत की वजह से होते हैं तो कुछ क्रोमोसोम में समस्या की वजह से। लाइफस्टाइल भी मिसकैरेज का बड़ा कारण है। हमारे परिवारों को चाहिए, कि महिलाओं को इस बारें में अपने आप को व्यक्त करने का स्पेस मिले ताकि वे इसके लिए खुद को दोष न दें।

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