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फॉग और स्मॉग का फर्क समझें और सावधान हो जाएं

दिल्ली एनसीआर की हवा में जहरीले तत्वों की मौजूदगी के कारण एयर क्वॉलिटी इंडेक्स का स्तर बिल्कुल गिर गया है। लेकिन इसमें फर्क करना मुश्किल है कि शहर में फैला यह फॉग सर्दी के मौसम में होने वाला सामान्य फॉग है या फिर प्रदूषण और जहरीली हवा से होने वाला स्मॉग।

नवभारतटाइम्स.कॉम 9 Nov 2018, 12:18 pm
दिवाली के बाद हर साल पूरे शहर में जहरीली हवा की एक चादर सी बिछ जाती है। हवा में जहरीले तत्वों की मौजूदगी के कारण एयर क्वॉलिटी इंडेक्स का स्तर बिल्कुल गिर जाता है। ऐसी हवा में सांस लेना खासकर बच्चों और बुजुर्गों के लिए खतरनाक है। इस हवा को सांस के जरिए अंदर लेना एक दिन में 15 सिगरेट पीने के बराबर है। लेकिन इसमें फर्क करना मुश्किल है कि शहर में फैला यह फॉग सर्दी के मौसम में होने वाला सामान्य फॉग यानी कोहरा है या फिर प्रदूषण और जहरीली हवा से होने वाला स्मॉग।
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फॉग और स्मॉग में फर्क करना है मुश्किल


स्मॉग या फॉग?
यह ऐसा सवाल है जो हर किसी को कन्फ्यूज करता है। हम अक्सर वायु प्रदूषण के बारे में सुनते हैं लेकिन जब आप घर से बाहर सड़क पर आते हैं तो आपको बाहर एक धुंध-सी दिखती है लेकिन हम यह समझ नहीं पाते कि यह ठंड से होने वाली धुंध है या फिर कुछ और। हम आपको इन दोनों के बीच का फर्क बता रहे हैं खासकर तब जब एयर क्वॉलिटी खतरनाक स्तर को पार कर गई हो। हालांकि स्मॉग और फॉग देखने में एक जैसे लगते हैं लेकिन यह बनते अलग तरीके से हैं।

स्मॉग vs फॉग
साधारण शब्दों में कहें तो स्मोक यानी जानलेवा धुआं, स्मॉग को फॉग यानी कोहरे से अलग बनाता है। जहां फॉग लोगों में सांस संबंधी साधारण समस्याएं पैदा करता है वहीं स्मॉग काफी खतरनाक है। यह फेफड़े में कैंसर से जुड़े जहरीले तत्वों को डालता है जो कि ऐसे तत्व हैं जो अगर आपकी बॉडी में एक बार चले गए तो उनका बाहर निकलना बहुत मुश्किल है।
फॉग से विजिबिलिटी कम
फॉग यानी कोहरा तब बनता है जब हवा में मौजूद जल वाष्प ठंडी होकर हवा में जम जाते हैं और पानी की बूंदे हवा में तैरती हैं। यह एक सफेद चादर की तरह पूरी हवा को ढक देती है जिसे सामान्य भाषा में फॉग या कोहरा कहते हैं। फॉग की वजह से विजिबिलिटी यानी देखने की क्षमता भी बेहद कम हो जाती है।

स्मॉग में जहरीली गैस की मौजूदगी
स्मॉग, फॉग और स्मोक यानी कोहरे और धुएं का कॉम्बिनेशन होता है। इसमें खतरनाक और जानलेवा गैसें जैसे सल्फर डाईऑक्साइड, बेन्जीन भारी मात्रा में पाई जाती हैं जो कि स्मोक बनाती है फिर फॉग से रिऐक्शन करके केमिकल कंपाउंड बनाती हैं जिससे स्मॉग बनता है। इस तरह के स्मॉग बनाने वाले ज्यादातर कम्पाउंड फैक्ट्रियों से निकले वाला धुआं, फसलों और पराली को जलाने से और ऐसे कई पावर प्लांट से आते हैं जहां ये खतरनाक गैसें नियमित रूप से इस्तेमाल होती हैं और रिलीज की जाती हैं।
कम तापमान में खतरनाक होता है स्मॉग
स्मॉग कम तापमान में और अधिक खतरनाक हो जाता है और सर्दियों में कम तापमान होना एक सामान्य बात है। इस जानलेवा स्मॉग से आंखों में जलन, खांसी, सांस लेने में तकलीफ, फेफड़ों में रुकावट और भी कई सांस संबंधी बीमारियां हो सकती है। फॉग से अलग स्मॉग से बदबू आती है जिससे आप इन दोनों के बीच के अंतर को समझ सकते हैं।

फॉग सफेद तो स्मॉग ग्रे रंग का होता है
जहां फॉग सफेद रंग का होता है वहीं वैसी हवा जिसका रंग ग्रे होता है उसे वैज्ञानिकों ने स्मॉग का नाम दिया है क्योंकि यह फॉग नहीं है। फॉग जहां हमेशा नीचे की ओर जाता है वहीं स्मॉग हवा में तैरता रहता है और जहरीले कण को ट्रांसफर करता रहता है जिसे हम सांस के जरिए अंदर लेते रहते हैं। इसलिए हवा में मौजूद धुंध सिर्फ रेगुलर सर्दी की धुंध नहीं है जिसकी वजह से आपको सर्दी-खांसी और सांस से जुड़ी दूसरी बीमारियां हो रही हैं, बल्कि यह हवा में मौजूद जानलेवा स्मॉग है जो हमें बीमार बना रहा है।

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