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मिथ साबित हुईं मेडिकल की ये बातें, न करें यकीन

कई बार हम सुनी-सुनाई हेल्थ और मेडिकल अडवाइस को सच मानकर फॉलो करते रहते हैं, यहां हैं कुछ ऐसे ही रूटीन प्रैक्टिस जो गलत साबित हो चुकी हैं।

NYT न्यूज़ सर्विस 7 Jul 2019, 12:23 pm
आपको लगता होगा कि जो भी मेडिकल अडवाइस आपको मिलती हैं उनके पीछे साइंटिफिक रिसर्च होती होंगी। लेकिन हाल ही में शोधकर्ताओं ने पता लगाया है कि करीब 400 ऐसी रूटीन प्रैक्टिस हैं जो कि जाने-माने जर्नल्स में छपी स्टडीज के बिल्कुल उलट हैं। यहां हैं कुछ ऐसे ही उदाहरण...
नवभारतटाइम्स.कॉम प्रतीकात्मक चित्र


अस्थमा से बचने के लिए डस्ट माइट्स से रहें दूर
कई मेडिकल ग्रुप्स यह सलाह देते हैं कि अगर आपके घर पर किसी को अस्थमा है तो इन कीटों से बचाव किया जाए। थिअरी यह थी कि उनके साथ ऐलर्जिक रिऐक्शन से अस्थमा अटैक का खतरा बढ़ जाता है। हालांकि यह सामने आया कि घरों पर कितना भी पेस्ट मैनेजमेंट कर दिया जाए इससे बच्चों के अस्थमा अटैक में कोई फर्क नहीं आया।

फिटनेस और कैलरी ट्रैकर से घटता है वजन
हालांकि यह बात एकदम उलट है। 470 डायटिंग करने वालों को 2 साल तक फॉलो किया गया। जिन लोगों कदम और कैलरी नापने वाले डिवाइस पहने थे उनका वजन बिना डिवाइस वालों की अपेक्षा कम लॉस हुआ।

अगर बच्चा तीन साल के पहले मूंगफली खाए तो उसे पीनट ऐलर्जी हो सकती है

कई पीडियाट्रिशन पैरंट्स को सलाह देते हैं कि बच्चों को मूंगफली से शुरुआत के तीन साल तक दूर रखें। हालांकि यह सामने आया कि बच्चे 1 साल के पहले भी अगर मूंगफली खाएं तो पीनट ऐलर्जी का खतरा नहीं बढ़ता।

मछली के तेल से दिल की बीमारी का खतरा कम होता है
फिश फैट्स दिल की बीमारी से बचाते हैं, एक पॉइंट पर यह बात लॉजिकल लगती थी। फैटी फिश में ओमेगा-3 फैटी ऐसिड्स की मात्रा ज्यादा होती है। ओमेगा-3 सप्लिमेंट्स ट्राइग्लिसराइड्स की मात्रा घटाते हैं और ट्राइग्लिसराइड्स की ज्यादा मात्रा से हार्ट अटैक का खतरा बढ़ता है। ये बताने की जरूरत नहीं है कि ऐसा माना जाता है कि ओमेगा-3 फैटी एसिड्स इन्फ्लेमेशन भी कम करते हैं, जो कि हार्ट अटैक की बड़ी वजह होता है। लेकिन 12,500 लोगों के ट्रायल में यह बात सामने आई कि ओमेगा-3 फैटी ऐसिड्स के डेली सप्लिमेंट हार्ट डिजीज के खतरे को कम नहीं कर पाए।


जिंको बिलोबा यादाश्त कमजोर होने से बचाता है
जिंको के पत्तियों से बने इस सप्लिमेंट को प्राचीन चाइनीज दवा के रूप में पूरी दुनिया में इस्तेमाल किया जाता रहा है। इसे अभी भी यादाश्त तेज करने वाला बताया जाता है। 2008 में छपी एक बड़ी स्टडी की मानें तो यह सप्लिमेंट किसी काम का नहीं। फिर भी इसका बड़ा कारोबार है।

टेस्टोस्टेरॉन ट्रीटमेंट से बुजुर्ग पुरुषों में यादाश्त बेहतर रहती है
कुछ लोगों का टेस्टोस्टेरॉन लेवल कम होता है और उनमें यादाश्त की समस्या भी होती है। शुरुआती कुछ स्टडीज में इस बात की ओर हिंट मिला कि मिडल एज के पुरुष जिनमें टेस्टोस्टेरॉन ज्यादा होता है वे दिमाग के कुछ हिस्सों के टिश्यूज सुरक्षित रहते हैं। मेंटल फंक्शन के टेस्ट में भी ज्यादा टेस्टोस्टेरॉन वाले पुरुषों का प्रदर्शन बेहतर पाया गया। हालांकि जब ठीक से क्लीनिकल ट्रायल किया गया तो पता चला कि बड़ी उम्र के पुरुषों को मेमोरी लॉस से बचाने में टेस्टोस्टेरॉन मीठी गोली से ज्यादा कुछ नहीं।

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