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रोज मौत को करीब से देखा, श्मशान में झोपड़ी बना तीन महीने रहे, कोरोना में अंतिम संस्कार में जुटे लोगों ने सुनाई आपबीती

कोरोना की दूसरी लहर में देश के साथ ही दिल्ली में भी कई लोगों की मौत हुई। लोग ऑक्सिजन, अस्पताल में बेड नहीं मिलने से परेशान थे। वहीं, अंतिम संस्कार कराने में मदद करने वालों की अपनी अलग ही कहानी थी। उन लोगों ने अपने परिवार की परवाह किए बगैर अपनी ड्यूटी को पूरी शिद्दत के साथ अंजाम दिया।

टाइम्स न्यूज नेटवर्क 23 Jun 2021, 1:17 pm

हाइलाइट्स

  • संक्रमण के डर से घर नहीं जाते थे, आश्रम में बिताते रात बिताते थे फतेह चंद
  • हीरा लाल अंतिम संस्कार के लिए हर 6 घंटे में साफ करते थे चिता वाली जगह
  • सुबह 5 बजे से लेकर रात एक बजे तक काम करते थे हेल्थ इंस्पेक्टर मदन पाल

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नई दिल्ली
राजधानी दिल्ली में लॉकडाउन में छूट के बाद जिस तरह लोग कोरोना नियमों का उल्लंघन कर रहे हैं उससे लगता है कि शहरवालों ने दूसरी लहर में कोरोना से होने वाली मौत का मंजर भुला दिया है। वहीं, कुछ लोग ऐसे भी हैं जो मौत का मंजर अभी तक नहीं भूले हैं। कोरोना काल में राजधानी में अंतिम संस्कार में मदद करना वाले लोग जिसमें शव जलाने से लेकर हेल्थ इंस्पेक्टर तक शामिल हैं। इन लोगों ने मौत को बेहद करीब से देखा। कोरोना महामारी के बीच अपने परिवार के सदस्यों को संक्रमित होने का डर भी इन्हें अपने कर्तव्य से मुंह नहीं मोड़ने दिया। ऐसे ही कुछ लोगों ने अपने अनुभव को शेयर किया।
रेफ्रिजरेशन यूनिट में रखना पड़ता था शव
पूर्वी दिल्ली के सीमापुरी श्मशान चलाने वाले भगत सिंह सेवा दल के 44 वर्षीय दीपक शर्मा ने कहा कि लोग अपने रिश्तेदारों के शवों को श्मशान घाट लाने से भी कतरा रहे थे। शर्मा का कहना था कि कई लोग होम आइसोलेशन में दम तोड़ दे रहे थे। ऐसे में उनका अंतिम संस्कार करने वाला कोई नहीं था। इसलिए हमें खुद उनके घरों में जाकर शवों को लाना पड़ता था। शर्मा ने कहा कि सीमापुरी में लाशों का अंतिम संस्कार करने के लिए अतिरिक्त चिताएं बनानी पड़ी। शर्मा ने याद किया कि कैसे अंतिम संस्कार के लिए बहुत सारे शव आते थे। स्थिति यह थी कई लाशों को रात भर रेफ्रिजरेटर में रखना पड़ता था। उन्होंने कहा कि लोगों को समझना चाहिए कि शहर को खोलने का मतलब यह नहीं है कि कोरोनावायरस हार गया है। लोगों को कोरोना गाइडलाइन्स का पालन करना चाहिए।

कई दिन श्मशान घाट में ही गुजारे
कोरोना काल में शायद सबसे ज्यादा व्यस्त पंजाबी बाग श्मशान घाट ही रहा होगा। दक्षिणी दिल्ली नगर निगम में उप स्वास्थ्य अधिकारी डॉ सौरभ मिश्रा ने ने कई दिन श्मशान घाट में बिताए। अपनी पत्नी और 10 साल के बेटे के कोरोना संक्रमित होने के बावजूद वे अपनी ड्यूटी में जुटे रहे। इतनी ही नहीं वे खुद भी कोरोना संक्रमित हो गए। इसके बावजूद उन्हें अंतिम संस्कार के संचालन को चालू रखना पड़ा। डॉ. मिश्रा ने बताया कि एक समय पर, मेरी पत्नी गंभीर थी और मेरे बेटे को खुद से अलग होना पड़ा। मैं उस समय कभी नहीं भूल सकता हूं।


तीन महीने तक कब्रिस्तान में अस्थायी झोपड़ी में रहे

आईटीओ के पास कोटला कब्रिस्तान में काम करने वाले 38 वर्षीय मोहम्मद शमीम ने अप्रैल-मई में दूसरी लहर की के पीक की भयावहता के बारे में बताया। शमीम का कहना था कि यहां रोज 15-20 लाशें आ रही थीं। एक समय पर, हमारे पास जगह नहीं थी। कब्रों के लिए जगह बनाने के लिए हमें झाड़ियों को साफ करना पड़ा। शमीम ने कहा, जो अपनी पत्नी और बेटियों को संक्रमित करने के जोखिम के कारण तीन महीने तक कब्रिस्तान में एक अस्थायी झोपड़ी में रहा। उन्होंने आगे कहा, "हमने अपने परिवारों की सुरक्षा के लिए बहुत त्याग किया। उन्होंने कहा कि कोरोना अभी कहीं गायब नहीं हुआ है बावजूद इसके आज लोग कोरोना गाइडलाइन्स का पालन नहीं कर रहे हैं।

सुबह 5 बजे से रात एक बजे तक काम
पब्लिक हेल्थ इंस्पेक्टर फतेह चंद ने पश्चिमी दिल्ली के एक श्मशान घाट संचालन में ड्यूटी थी। उन्होंने बताया कि कोरोना काल में सुबह 5 बजे काम शुरू करना था। अंतिम संस्कार से जुड़े काम रात 1 बजे तक चलते थे। उन्होंने कहा कि एक व्यक्ति को कई लोगों का काम करना पड़ता था। एक समय कई साथियों की तरह मैं भी संक्रमित हो गया था। लेकिन किसी को अस्पतालों के साथ तालमेल बिठाना था, इसलिए मैंने काम करना जारी रखा। फतेह चंद ने कहा कि अपने परिवार को संक्रमण से बचाने के लिए मैं सुल्तानपुरी के एक आश्रम में रुका था।

रोज संक्रमित शवों से घिरे रहते थे
पूर्वी दिल्ली में काम करने वाले हेल्थ इंस्पेक्टर मदन लाल ने बताया कि कोरोना काल में उन्हें गाजीपुर श्मशान घाट में जरूरी समानों की उपलब्धता सुनिश्चित करने में लगाया गया था। इससे पहले वे दुकानों का लाइसेंस चेक करने का काम करते थे। उन्होंने कहा कि रोजाना संक्रमित शवों के संपर्क में घिरे रहने की स्थिति को वह कभी नहीं भूल सकते हैं। उन्होंने कहा कि लोगों को उस मुश्किल समय से सबक लेना चाहिए।

अंतिम संस्कार को लेकर लोगों से नोकझोंक भी होती थी
कड़कड़डूमा श्मशान घाट में अंतिम संस्कार में मदद करने वाले हीरा लाल ने बताया कि कोरोना की दूसरी लहर में शवों के अंतिम संस्कार के लिए बाहर एंबुलेंस की लाइन लगी रहती थी। लोग अपने परिजन के शवों के साथ इंतजार करते रहते थे। हीराला ने बताया कि लगातार आ रहे शवों के अंतिम संस्कार के लिए उन्हें हर 6 घटें में चिताओं को पूरी तरह से साफ कर जगह बनानी पड़ती थी। कई बार तो शवों के अंतिम संस्कार में देरी को लेकर तीखी नोकझोंक भी होती थी।

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