राम त्रिपाठी, मालवीय नगर
'हमारा तो सपना ही बिखर गया। बहन आर्ट कॉलेज में एडमिशन लेना चाहती थी।' यह कहते हुए मृतक नबीला की बहन रबीना रो पड़ती हैं। उनके पिता अब्दुल सत्तार कहते हैं, 'बचपन से वह ड्रॉइंग करती थी। उसका सपना लोगों के ख्वाबों को कागज पर उकेरना था, जिसकी वह कोशिश कर रही थी। पर अब, खुद ही वह सपना बन गई है।' वहीं बगल में बैठीं उनकी पत्नी कहती हैं, 'क्या होगा अब? दर्द बताने से क्या मेरी नबीला वापस आ जाएगी?' फफक कर रोते हुए वह कहती हैं, आप मेरी नबीला को ला दो।'
यह दुख भरा मंजर है अब्दुल सत्तार के हौज रानी के गांधी पार्क स्थित घर का। वहां मौजूद रिश्तेदार और नबीला की सहेलियां उसे याद करते हुए फफक-फफक कर रो पड़ती हैं। तभी मृतक की बुआ बेहद नसीमा बेहद गुस्से में चिल्लाते हुए कहती है, 'ट्रैफिक सिस्टम और ठीक करना होगा। ऐसे ड्राइवरों के खिलाफ और कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए, जो किसी के घर के सपनों को तोड़ देते हैं। नबीला की कुछ पेंटिंग्स दिखाते हुए उसकी बड़ी बहन कहती हैं, 'हम दोनों एक साथ रहते थे। रात में एक साथ ही सोते थे। अब कुछ दिखाई नहीं दे रहा है। वह पेंटिंग में अपनी तस्वीर के साथ अन्य लोगों की फोटो भी बनाती थी। अब हम किससे अपनी फोटो बनवाएंगे।'
नबीला अच्छी चित्रकार थी। इसी कारण वह दिल्ली कॉलेज ऑफ आर्ट में एडमिशन लेना चाहती थी। शोक में डूबे परिवार के सदस्य बताते हैं कि नबीला का सपना था कि 4 साल के कोर्स के बाद वह एक अच्छी आर्टिस्ट बनेगी और अपनी कलाओं में समाज के दुख और दर्द के साथ खुशियां और उमंगों को भी उकेरेगी, लेकिन अब यह सपना उस परिवार के दिल में दर्द बनकर रह गया है।
'हमारा तो सपना ही बिखर गया। बहन आर्ट कॉलेज में एडमिशन लेना चाहती थी।' यह कहते हुए मृतक नबीला की बहन रबीना रो पड़ती हैं। उनके पिता अब्दुल सत्तार कहते हैं, 'बचपन से वह ड्रॉइंग करती थी। उसका सपना लोगों के ख्वाबों को कागज पर उकेरना था, जिसकी वह कोशिश कर रही थी। पर अब, खुद ही वह सपना बन गई है।' वहीं बगल में बैठीं उनकी पत्नी कहती हैं, 'क्या होगा अब? दर्द बताने से क्या मेरी नबीला वापस आ जाएगी?' फफक कर रोते हुए वह कहती हैं, आप मेरी नबीला को ला दो।'
यह दुख भरा मंजर है अब्दुल सत्तार के हौज रानी के गांधी पार्क स्थित घर का। वहां मौजूद रिश्तेदार और नबीला की सहेलियां उसे याद करते हुए फफक-फफक कर रो पड़ती हैं। तभी मृतक की बुआ बेहद नसीमा बेहद गुस्से में चिल्लाते हुए कहती है, 'ट्रैफिक सिस्टम और ठीक करना होगा। ऐसे ड्राइवरों के खिलाफ और कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए, जो किसी के घर के सपनों को तोड़ देते हैं। नबीला की कुछ पेंटिंग्स दिखाते हुए उसकी बड़ी बहन कहती हैं, 'हम दोनों एक साथ रहते थे। रात में एक साथ ही सोते थे। अब कुछ दिखाई नहीं दे रहा है। वह पेंटिंग में अपनी तस्वीर के साथ अन्य लोगों की फोटो भी बनाती थी। अब हम किससे अपनी फोटो बनवाएंगे।'
नबीला अच्छी चित्रकार थी। इसी कारण वह दिल्ली कॉलेज ऑफ आर्ट में एडमिशन लेना चाहती थी। शोक में डूबे परिवार के सदस्य बताते हैं कि नबीला का सपना था कि 4 साल के कोर्स के बाद वह एक अच्छी आर्टिस्ट बनेगी और अपनी कलाओं में समाज के दुख और दर्द के साथ खुशियां और उमंगों को भी उकेरेगी, लेकिन अब यह सपना उस परिवार के दिल में दर्द बनकर रह गया है।