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दिल्ली सीरियल बम ब्लास्ट: पीड़ितों के घाव हरे के हरे

दिल्ली में सरोजनी नगर, पहाड़गंज और गोविंदपुरी में 29 अक्टूबर 2005 को हुए सीरियल बम ब्लास्ट मामले में पुलिस आरोपियों के दोषी साबित करने में नाकामयाब रही। खौफनाक सीरियल ब्लास्ट की पुलिस चार्जशीट का ज्यादातर हिस्सा कोर्ट के सामने महज एक कहानी साबित हुआ, जिसकी कोई बुनियाद नहीं थी...

अवनीश चौधरी | नवभारत टाइम्स 17 Feb 2017, 2:08 pm
नई दिल्ली
नवभारतटाइम्स.कॉम delhi serial blasts accused tariq ahmed dar sentenced to 10 years
दिल्ली सीरियल बम ब्लास्ट: पीड़ितों के घाव हरे के हरे


दिल्ली में सरोजनी नगर, पहाड़गंज और गोविंदपुरी में 29 अक्टूबर 2005 को हुए सीरियल बम ब्लास्ट मामले में पुलिस आरोपियों को दोषी साबित करने में नाकामयाब रही। खौफनाक सीरियल ब्लास्ट की पुलिस चार्जशीट का ज्यादातर हिस्सा कोर्ट के सामने महज एक कहानी साबित हुआ, जिसकी कोई बुनियाद नहीं थी, चार्जशीट का कोई सेक्शन कोर्ट के सामने प्रूव नहीं हो सका। आरोपियों का न ब्लास्ट में कोई रोल आया, न ही आपस में कोई लिंक साबित हुआ। गवाह और सबूत कोर्ट के सवालों के आगे लड़खड़ाते नजर आए।

बचाव पक्ष की मानें तो कोर्ट ने जिस यूएपीए सेक्शन (गैर कानूनी गतिविधि निरोधक अधिनियम) की दफा 38 और 39 के तहत अहमद डार को दोषी माना है, वह सेक्शन भी कोर्ट ने स्वयं के विवेक से लगाए थे, वरना पुलिस चार्जशीट में सेक्शन 17 और 18 (आतंकवादी गतिविधि के लिए धन जमा करने से संबंधित), कोर्ट में प्रूव नहीं हुए। अदालत ने इस मामले में आरोपी अहमद डार को दोषी करार दिया और दो अन्य आरोपियों को बरी कर दिया।

11 साल जेल में रहने बाद बरी हुए रफीक के ऐडवोकेट सुशील बजाज ने कहा कि इस केस के दोनों पहलू निराश करने वाले हैं। एक यह कि ब्लास्ट पीड़ितों को इंसाफ नहीं मिला, दूसरा जुर्म साबित हुए बिना ही आरोपियों को 11 साल जेल (न्यायिक हिरासत) में गुजारने पड़े।

पुलिस ने मुल्जिमों को सख्त से सख्त सजा दिलाने के लिए देशद्रोह, हत्या और आतंकवादी गतिविधियों में शामिल होने के सेक्शन तो लगा दिए, लेकिन ठोस तरीके से जांच नहीं की। कोर्ट में पुलिस जांच के ज्यादातर पार्ट बेबुनियाद साबित हुए।

बचाव पक्ष का कहना है कि डार को आतंकी संगठन लश्कर से जुड़े होने की वजह से यूएपीए के सेक्शन 38 और 39 में दोषी करार दिया गया, क्योंकि उसने ब्लास्ट में लश्कर का रोल नहीं बताया था, लेकिन उसके बयान से उसका आतंकी संगठन से लिंक साबित हो गया, इसलिए कोर्ट ने उसके खिलाफ चार्जशीट में नए सेक्शन जोड़े। पर, उसका सीरियल ब्लास्ट से कोई लिंक साबित नहीं हुआ।

कोर्ट का जजमेंट पुलिस को आईना दिखाने वाला है। ऐसे तमाम केस हैं, जिनमें दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने आतंकियों को पकड़ने का दावा करके वाहवाही लेने की कोशिश की है, लेकिन कोर्ट में उनका जुर्म साबित नहीं कर सके, जबकि इस तरह के मामलों में पुलिस को इन्वेस्टिगेशन पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए, वरना पुलिस पर भरोसा डगमगाता है।

इस बारे में स्पेशल सेल के डीसीपी संजीव यादव का कहना है कि पुलिस ने डार व अन्य आरोपियों के खिलाफ पर्याप्त साक्ष्य व गवाह जुटाए थे, साथ ही उन्हें सख्त से सख्त सजा दिलाने के लिए चार्जशीट तैयार की। केस की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने अपने विवेक से यूएपीए के सेक्शन 38 और 39 शामिल किए, जिसका कोर्ट को अधिकार है, हालांकि उसमें भी पुलिस इन्वेस्टिगेशन के आधार पर ही सजा सुनाई गई है, इसलिए ये कहना गलत है कि पुलिस की जांच प्रूव नहीं हुई। पुलिस ने दिल्ली में ब्लास्ट की आतंकी साजिश को प्रूव किया है। जहां तक रफीक और फजली के बरी होने की बात है तो उसके लिए जजमेंट का अध्ययन करने के बाद अपील में जाएंगे।
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अवनीश चौधरी

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