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हाई कोर्ट ने दिल्ली जल बोर्ड द्वारा राष्ट्रीय राजधानी में नालों और सीवरों की सफाई का टेंडर देने में हाथ से मैला ढोने वालों के परिवार वालों को प्राथमिकता देने के फैसले को सही ठहराया और इसे चुनौती देने वाली एक कंपनी की याचिका को खारिज कर दिया है।
जस्टिस रविंद्र भट और जस्टिस ए. के. चावला की बेंच ने M/s मेट्रो वेस्ट हैंडलिंग की याचिका ठुकराते हुए कहा कि उसकी दलीलों में कोई मेरिट नहीं है। बेंच ने अपने फैसले में कहा, पीढ़ी दर पीढ़ी उपेक्षित होते आ रहे इन लोगों से हमारे समाज ने अधिकार छीन कर हाथ से मैला ढोने वालों के जीवन में अंधकार भर दिया है। बिना अधिकार और समाज में सक्रिय भागीदारी से वंचित ये लोग सालों से जातीय भेदभाव के जनजाल में फंसे हैं। बेंच ने कहा, दिल्ली जल बोर्ड का मौजूदा प्रोजेक्ट इस तरह के लोगों को बेहतर कल देने का वादा करता है। केंद्र का इस प्रोजेक्ट के लिए पैसा देना उसकी बड़े पैमाने पर जारी आरक्षण डोमिनेटिड नीतियों से कहीं बेहतर कदम है। बेंच ने कहा कि यह कदम समानता की दीवार में अहम ईंट की तरह होगा और संविधान निर्माता अंबेडकर के उस कथन को पूरा करेगा जिसमें 'वन मैन वन वैलयू' के सिद्धांत का जिक्र है।
मेट्रो वेस्ट हैंडलिंग ने अपनी याचिका में इसी साल मार्च महीने में नालों और सीवरों की सफाई के लिए जारी डीजेगी के टेंडर की कुछ शर्तों को लेकर आपत्ति जताई थी। याचिकाकर्ता का कहना था कि 'वन बिडर, वन मशीन' की कैपिंग का प्रावधान गैर वाजिब और अनुचित है। डीजेबी ने इसका विरोध किया और दलील दी कि वह राष्ट्रीय राजधानी में सीवरों और नालों की हाथ से सफाई के जोखित को खत्म करने की पहल कर रही है। यह भी कहा कि याचिकाकर्ता अपने से निम्न वर्ग के परिवारों वालों से रोजगार छीनने की आड़ में अपने व्यावसायिक हितों की पूर्ति नहीं कर सकता।