नई दिल्ली
दिल्ली में भले ही अब ऑक्सिजन की कमी धीरे-धीरे दूर हो रही हो, लेकिन वेंटिलेटर और एक्स्ट्राकॉर्पोरियल मेंब्रेन ऑक्सिजनेशन (ईसीएमओ) की डिमांड बढ़ती नजर आ रही है। यह एक ऐसी मशीन है जिसका इस्तेमाल उस स्थिति में किया जाता है, जब व्यक्ति खुद से ऑक्सिजन लेने में समर्थ नहीं होता और हार्ट और लंग्स ठीक से काम नहीं करते। इसे एक्स्ट्राकॉर्पोरियल लाइफ सपोर्ट के नाम से भी जाना जाता है। क्या है ईसीएमओ?
राम मनोहर लोहिया अस्पताल के चीफ मेडिकल ऑफिसर डॉ. हिमांशु सीकरी बताते हैं कि यह एक अडवांस तकनीक की लाइफ सपोर्ट मशीन है। जब व्यक्ति खुद से ऑक्सिजन लेने में समर्थ नहीं होता और कुछ अंग ठीक से काम नहीं करते, तब इस मशीन पर व्यक्ति को रखते हैं। यह मशीन खुद ब्लड में से ऑक्सिजन को निकालती है, उससे कार्बन डाइऑक्साइड को अलग करती है, उसे ऑक्सिजेनेट करती है और फिर उसे वापस ब्लड में डाल देती है। इससे व्यक्ति के जो अंग काम करना बंद हो गए हैं, वह फिर से ठीक होने लगते हैं। हालांकि सभी लोगों को इस मशीन पर नहीं रखा जा सकता। मरीजों की पूरी स्थिति का आकलन करने के बाद ही ईसीएमओ पर रखा जाता है।
दो किस्म के होते हैं ईसीएमओ
ईसीएमओ दो किस्म के होते हैं। एक वेनोएक्टोरियल और दूसरा वेनोवेनॉस। वेनोएक्टोरियल ईसीएमओ हमारे हार्ट और लंग्स को सपोर्ट करता है, जबकि वेनोवेनॉस सिर्फ लंग्स के लिए ऑक्सिजेनेशन करता है। मरीज की स्थिति के हिसाब से तय किया जाता है कि दोनों में से कौन-सी ईसीएमओ पर उसे रखा जाएगा। ऐसा कहा जाता है कि यह व्यक्ति को बचाने में रामबाण का काम करता है।
अब बढ़ी है डिमांड
डॉ. सिकरी कहते हैं कि बीते कुछ दिनों में इसकी डिमांड बढ़ी है। कोरोना से पहले दिल्ली में जो स्थिति थी उसके हिसाब से यहां ईसीएमओ की उपलब्धता ठीक थी, लेकिन कोरोना की वजह से इसकी डिमांड बढ़ गई है, इसलिए अब देखा जा रहा है कि मशीनें कम पड़ने लगी हैं। दूसरी बात यह भी है कि लोगों को यह समझने की जरूरत है कि सभी मरीजों को ईसीएमओ पर नहीं रखा जा सकता।
कब किया जाता है इसका इस्तेमाल
दिल्ली में भले ही अब ऑक्सिजन की कमी धीरे-धीरे दूर हो रही हो, लेकिन वेंटिलेटर और एक्स्ट्राकॉर्पोरियल मेंब्रेन ऑक्सिजनेशन (ईसीएमओ) की डिमांड बढ़ती नजर आ रही है। यह एक ऐसी मशीन है जिसका इस्तेमाल उस स्थिति में किया जाता है, जब व्यक्ति खुद से ऑक्सिजन लेने में समर्थ नहीं होता और हार्ट और लंग्स ठीक से काम नहीं करते। इसे एक्स्ट्राकॉर्पोरियल लाइफ सपोर्ट के नाम से भी जाना जाता है।
राम मनोहर लोहिया अस्पताल के चीफ मेडिकल ऑफिसर डॉ. हिमांशु सीकरी बताते हैं कि यह एक अडवांस तकनीक की लाइफ सपोर्ट मशीन है। जब व्यक्ति खुद से ऑक्सिजन लेने में समर्थ नहीं होता और कुछ अंग ठीक से काम नहीं करते, तब इस मशीन पर व्यक्ति को रखते हैं। यह मशीन खुद ब्लड में से ऑक्सिजन को निकालती है, उससे कार्बन डाइऑक्साइड को अलग करती है, उसे ऑक्सिजेनेट करती है और फिर उसे वापस ब्लड में डाल देती है। इससे व्यक्ति के जो अंग काम करना बंद हो गए हैं, वह फिर से ठीक होने लगते हैं। हालांकि सभी लोगों को इस मशीन पर नहीं रखा जा सकता। मरीजों की पूरी स्थिति का आकलन करने के बाद ही ईसीएमओ पर रखा जाता है।
दो किस्म के होते हैं ईसीएमओ
ईसीएमओ दो किस्म के होते हैं। एक वेनोएक्टोरियल और दूसरा वेनोवेनॉस। वेनोएक्टोरियल ईसीएमओ हमारे हार्ट और लंग्स को सपोर्ट करता है, जबकि वेनोवेनॉस सिर्फ लंग्स के लिए ऑक्सिजेनेशन करता है। मरीज की स्थिति के हिसाब से तय किया जाता है कि दोनों में से कौन-सी ईसीएमओ पर उसे रखा जाएगा। ऐसा कहा जाता है कि यह व्यक्ति को बचाने में रामबाण का काम करता है।
अब बढ़ी है डिमांड
डॉ. सिकरी कहते हैं कि बीते कुछ दिनों में इसकी डिमांड बढ़ी है। कोरोना से पहले दिल्ली में जो स्थिति थी उसके हिसाब से यहां ईसीएमओ की उपलब्धता ठीक थी, लेकिन कोरोना की वजह से इसकी डिमांड बढ़ गई है, इसलिए अब देखा जा रहा है कि मशीनें कम पड़ने लगी हैं। दूसरी बात यह भी है कि लोगों को यह समझने की जरूरत है कि सभी मरीजों को ईसीएमओ पर नहीं रखा जा सकता।
कब किया जाता है इसका इस्तेमाल
- जब किसी व्यक्ति का हार्ट फेल हो जाए, लंग्स काम ना करें या फिर हार्ट की सर्जरी से ठीक हो रहे लोगों में इसका उपयोग किया जाता है।
- हार्ट या लंग्स की सर्जरी करने से पहले भी इसका इस्तेमाल किया जाता है।
- लंग्स ट्रांसप्लांट करवाने वाले मरीजों में भी इसे उपयोग किया जाता है।
- इससे दूसरे व्यक्ति को संक्रमण होने की संभावना रहती है, क्योंकि इसी से कई मरीजों को ब्लड भी दिया जाता है।
- ऑक्सिजेनेट करने के लिए जिस हिस्से में ट्यूब डाली जाती है, वहां इंफेक्शन के चांस रहते हैं।
- कुछ स्थिति में मरीजों में स्ट्रोक की संभावना भी बढ़ जाती है।