प्रमुख संवाददाता, नई दिल्ली
सफदरजंग अस्पताल के वार्ड नंबर 20 में बच्चे का इलाज चल रहा था। बच्चे के पिता रामजी लाल को डॉक्टरों से काफी उम्मीदें थीं, इसलिए वो गुड़गांव से यहां पर इलाज के लिए पहुंचे थे, लेकिन यहां डॉक्टरों की बेरुखी देखकर वो परेशान हो गए। रामजी का कहना है कि मैंने देखा, वार्ड में दो बच्चों की मौत हो गई, मैं डर गया। मुझे लगा कि कहीं मेरे बच्चे को भी कुछ न हो जाए। मैं अपने बेटे को लेकर निकल गया और रेवाड़ी में प्राइवेट अस्पताल में एडमिट कराया है। सफदरजंग में इलाज देखकर मैं सहम गया था, वहां डॉक्टर न तो किसी की सुनते हैं और न ही मरीज को केयर मिलता है।
रामजी लाल ने कहा कि होली से दो दिन पहले उनके घर में बेटा पैदा हुआ था, लेकिन उसकी तबीयत ठीक नहीं थी। गुड़गांव से उसे एम्स रेफर किया गया, लेकिन एम्स के डॉक्टरों ने उसे एडमिट नहीं किया और सफदरजंग भेज दिया। सफदरजंग अस्पताल ने बच्चे को वार्ड 20 में एडमिट तो कर लिया, लेकिन उसका प्रॉपर इलाज नहीं हो पा रहा था। मैं बेहतर इलाज की उम्मीद से ही गया था, लेकिन जब वहां पर पहुंचा तो वहां न समय पर दवा दी जाती थी, न इंजेक्शन लगता था। तीन दिन तक एडमिट रहा, बच्चे की तबीयत में कोई सुधार नहीं हुआ। उन्होंने कहा कि जब मेरे सामने दो बच्चे की मौत हुई तो मैं डर गया। मेरा बच्चा भी दो-तीन दिन से दूध पी नहीं रहा था। यह देख कर मैंने फैसला किया कि भले ही नाम का यह बड़ा अस्पताल हो, लेकिन अब यहां इलाज नहीं कराऊंगा और मैं अपने बच्चे को लेकर वहां से निकल गया।