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सावधान! फर्जी ड्राइवर तो नहीं चला रहा कैब!

ऐप के माध्यम से कैब बुक कराने वाले ध्यान दें! हो सकता है कि जिस कैब की आपने बुकिंग की है उस कैब को वह ड्राइवर ना चला रहा हो जिसकी फोटो समेत पूरा प्रोफाइल कैब कंपनी के पास रजिस्टर्ड है और उसका कंपनी ने पुलिस वेरिफिकेशन भी करा रखा है। मुमकिन है कि उस असली रजिस्टर्ड ड्राइवर की जगह उसका कोई दोस्त या जानकार उस कैब को चला रहा हो और उसका आपराधिक रिकॉर्ड भी हो।

मनीष अग्रवाल | नवभारत टाइम्स 31 Aug 2017, 1:54 am
नई दिल्ली
नवभारतटाइम्स.कॉम cab
सांकेतिक तस्वीर।

ऐप के माध्यम से कैब बुक कराने वाले ध्यान दें! हो सकता है कि जिस कैब की आपने बुकिंग की है उस कैब को वह ड्राइवर ना चला रहा हो जिसकी फोटो समेत पूरा प्रोफाइल कैब कंपनी के पास रजिस्टर्ड है और उसका कंपनी ने पुलिस वेरिफिकेशन भी करा रखा है। मुमकिन है कि उस असली रजिस्टर्ड ड्राइवर की जगह उसका कोई दोस्त या जानकार उस कैब को चला रहा हो और उसका आपराधिक रिकॉर्ड भी हो। जी हां, अभी तक की पुलिस जांच में कैब कंपनियों के सिस्टम में यह एक बड़ी खामी पाई गई है।

पुलिस को पता लगा है कि कंपनियों के पास ऐसा कोई सिस्टम नहीं है जिसमें वह यह पता लगा सकें कि जो ड्राइवर उनके पास रजिस्टर्ड है, कंपनी की ओर से प्रत्येक बुकिंग लेने से पहले उनके कस्टमर को वही ड्राइवर अपनी सेवाएं दे रहा है। कस्टमर की सुरक्षा में लापरवाही के इस मामले को पुलिस बेहद गंभीरता से ले रही है।

इस बात का खुलासा साउथ दिल्ली पुलिस की उस जांच में हुआ है। एटीएस ने एक के बाद एक-एक करके लग्जरी कारों को चुराने वाला एक हाई प्रोफाइल गैंग के 9 सदस्यों को पकड़ा था। इस मामले में पुलिस ने मंगलवार को इनके बारे में तमाम जानकारियां दी थी। इसके एक दिन बाद बुधवार को पुलिस पूछताछ में पता लगा है कि कार चुराने वाले 9 आरोपियों में से एक जितेंद्र कुमार (37) के पास उक्त कैब कंपनी की कार भी मिली। इसने बताया कि कई बार वह अपनी गाड़ी को किसी और को भी चलाने के लिए दे देता था। ऐसा वह कंपनी से आने वाली बुकिंग लेने के लिए करता था। क्योंकि कई बार उसे कार चुराने के लिए इधर से उधर भटकना पड़ता था। ऐसे में वह अपने दोस्तों को कैब चलाने के लिए दे देता था। जबकि जिस दोस्त को वह कैब चलाने के लिए देता था, वह भी कार चोरी मामले में दो बार जेल में बंद हो चुका है और उसका पूरा आपराधिक रिकॉर्ड है। लेकिन वह भी ऐप बेस्ड कैब कंपनी को अपनी सेवाए देता था।

पुलिस का कहना है कि उन्हें कंपनी से यह बात करके गहराई से तहकीकात करनी होगी कि उनके पास असली और नकली ड्राइवर को पहचनाने का क्या सिस्टम है। केवल गाड़ी में जीपीएस लगना ही काफी नहीं है। बल्कि यह भी सुनिश्चित होना चाहिए कि क्या प्रत्येक बुकिंग लेने से पहले उनकी कंपनी में जो ड्राइवर रजिस्टर्ड है वह असली भी है या नहीं। क्योंकि, जगरूक कस्टमर तो असली ड्राइवर को पहचान लेगा। लेकिन कई बार ऐसे कस्टमर भी होते हैं जो केवल बुकिंग होने के बाद गाड़ी में सवार हो जाते हैं और फिर यह नहीं देखते कि उनकी कैब का ड्राइवर वही है जिसकी फोटो उनके मोबाइल में कैब बुक कराते वक्त आई थी।
लेखक के बारे में
मनीष अग्रवाल
मनीष अग्रवाल, नवभारत टाइम्स में असिस्टेंट एडिटर हैं। वह केंद्रीय गृह मंत्रालय, रेलवे और एविएशन मिनिस्ट्री के अलावा केंद्रीय सड़क, परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय, पैरामिलिट्री फोर्स, सीबीआई, एनआईए, ईडी और भारतीय चुनाव आयोग भी कवर करते हैं। इससे पहले वह क्राइम, कस्टम और तिहाड़ जेल कवर करते थे। वह एनबीटी में 20 साल से भी अधिक समय से अपनी सेवाएं दे रहे हैं।... और पढ़ें

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