नई दिल्ली
आईआईटी दिल्ली में शनिवार को द सस्टेनेबल एन्वाइरनर्जी रिसर्च लैब (एसईआरएल)(Sustainable environergy research lab) में एक खास तरह की बैटरी का डेमो किया गया। इससे प्रदूषण कम होगा और मार्केट में उपलब्ध बैटरियों से ज्यादा चलेगी। अभी बाजार में मौजूद बैटरी 20 साल तक चलती है। यह उसे ज्यादा चलेगी। इसका नाम वनैडियम रेडॉक्स फ्लो बैटरी (वीआरएसबी) है।
पांच लोगों की टीम वीआरएसबी प्रोजेक्ट पर काम कर रही है। इसमें प्रोफेसर अनिल वर्मा और आईआईटी के विभिन्न कोर्स के स्टूडेंट शामिल हैं। प्रोफेसर की मानें, तो छह महीने या एक साल के अंदर यह बैटरी मार्केट में मौजूद होगी। प्रोफेसर अनिल वर्मा ने बताया कि मार्केट में मौजूदा बैटरी से यह बैटरी अलग है।
वीआरएफबी गैर-प्रदूषणकारी है। यह ज्यादा टिकाऊ भी है। फ्लो बैटरी और कन्वेंशनल बैटरी में सबसे बड़ा अंतर इंडिपेंडेंट स्केलिंग ऑफ पॉवर एंड एनर्जी कैपेसिटी का है। फ्लो बैटरी में kWh से MWh रेंज में एनर्जी स्टोर हो जाती है। साथ ही कम खर्च में लंबे समय तक चलती है। इसके अलावा अभी जो मार्केट में बैटरी मौजूद हैं, उन्हें रि-साइकल करने में काफी वायु प्रदूषण होता है। इससे नहीं होगा। उन्होंने बताया कि छह महीने या एक साल में स्टार्टअप के जरिए इसे मार्केट में लाएंगे।
आईआईटी दिल्ली में शनिवार को द सस्टेनेबल एन्वाइरनर्जी रिसर्च लैब (एसईआरएल)(Sustainable environergy research lab) में एक खास तरह की बैटरी का डेमो किया गया। इससे प्रदूषण कम होगा और मार्केट में उपलब्ध बैटरियों से ज्यादा चलेगी। अभी बाजार में मौजूद बैटरी 20 साल तक चलती है। यह उसे ज्यादा चलेगी। इसका नाम वनैडियम रेडॉक्स फ्लो बैटरी (वीआरएसबी) है।
पांच लोगों की टीम वीआरएसबी प्रोजेक्ट पर काम कर रही है। इसमें प्रोफेसर अनिल वर्मा और आईआईटी के विभिन्न कोर्स के स्टूडेंट शामिल हैं। प्रोफेसर की मानें, तो छह महीने या एक साल के अंदर यह बैटरी मार्केट में मौजूद होगी। प्रोफेसर अनिल वर्मा ने बताया कि मार्केट में मौजूदा बैटरी से यह बैटरी अलग है।
वीआरएफबी गैर-प्रदूषणकारी है। यह ज्यादा टिकाऊ भी है। फ्लो बैटरी और कन्वेंशनल बैटरी में सबसे बड़ा अंतर इंडिपेंडेंट स्केलिंग ऑफ पॉवर एंड एनर्जी कैपेसिटी का है। फ्लो बैटरी में kWh से MWh रेंज में एनर्जी स्टोर हो जाती है। साथ ही कम खर्च में लंबे समय तक चलती है। इसके अलावा अभी जो मार्केट में बैटरी मौजूद हैं, उन्हें रि-साइकल करने में काफी वायु प्रदूषण होता है। इससे नहीं होगा। उन्होंने बताया कि छह महीने या एक साल में स्टार्टअप के जरिए इसे मार्केट में लाएंगे।