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आप दो बार विधायक और इस समय मंत्री है, जमानत नहीं दे सकते... सत्येंद्र जैन की बढ़ी मुश्किल

न्यायाधीश ने कहा कि जैन के वरिष्ठ वकील ने तर्क दिया कि ईडी ने गवाहों को जीवन के खतरे की आशंका जताई थी, जबकि 2018 से 2022 तक गवाह उपलब्ध थे और कई बार उनसे पूछताछ की गई थी। इसलिए उन्हें प्रभावित करने या धमकी देने का कोई सवाल ही नहीं था और ऐसा कोई आरोप नहीं लगाया गया था। वकील ने कहा था कि ईडी ने जमानत आवेदन को हराने के लिए जानबूझकर याचिका दायर की थी।

Edited byVineet Tripathi | नवभारत टाइम्स 19 Jun 2022, 10:59 am

हाइलाइट्स

  • मनी लॉन्ड्रिंग केस: बीमारी के आधार पर नहीं मिल पाई राहत
  • जांच के दौरान जैन पूरी तरह से सहयोग नहीं कर रहे हैं- ईडी
    केस के चरण और आरोपी की प्रभावशीलता को देखते हुए नहीं दे सकते जमानत- कोर्ट
  • केस के चरण और आरोपी की प्रभावशीलता को देखते हुए नहीं दे सकते जमानत- कोर्ट

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नवभारतटाइम्स.कॉम New Delhi, June 09 (ANI): Delhi Health Minister Satyendar Jain being brought to ...
नई दिल्ली: साल-2017 में दर्ज मनी लॉन्ड्रिंग (धनशोधन) के एक मामले में गिरफ्तार दिल्ली के मंत्री सत्येंद्र जैन फिलहाल सलाखों के पीछे ही कैद रहेंगे। उन्हें जमानत देने से अदालत ने शनिवार को इनकार कर दिया। मंत्री की अर्जी ठुकराए जाने के पीछे कई कारण बताए गए। इस मामले मे कोर्ट ने कहा कि आप दो बार विधायक और वर्तमान में मंत्री हैं, ऐसे में आपको जमानत नहीं दे सकते। ईडी की ओर से पेश हुए एडिशनल सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू ने कोर्ट से कहा कि जांच के दौरान जैन पूरी तरह से सहयोग नहीं कर रहे हैं, पूछताछ के दौरान टालमटौल जैसे जवाब देते हैं।
तबियत खराब का दिया गया था हवाला
चूंकि, मामले में जांच अभी भी जारी है, इसीलिए आरोपी को जमानत देने के लिए मौजूदा स्टेज अदालत को सही नहीं लगा। मंत्री के प्रभावशाली पद को देखते हुए गवाहों को प्रभावित करने से जुड़ी अभियोजन की आशंका ने दम दिखाया। स्लीप एपनिया (सोते समय सांस लेने में दिक्कत होना) से जुड़ी जैन की बीमारी के गंभीर होने का दावा समर्थित दस्तावेजों के अभाव में कमजोर पड़ गया। ईडी ने 30 मई को जैन को गिरफ्तार किया था। वह 13 दिन तक एजेंसी की रिमांड में रहे। उन्हें 13 जून को अदालत ने न्यायिक हिरासत के तहत जेल भेज दिया था।

इस कारण कोर्ट ने रद्द की याचिका
कोर्ट ने कहा कि आरोपी दो बार विधायक है और वर्तमान में दिल्ली सरकार में मंत्री है। आरोपी को इस तरह नहीं देखा जा सकता है कि वो विदेश भाग सकता है। कोर्ट ने कहा ईडी 2018 से 2021 तक मामले में सोती रही, इस दौरान आरोपी ने विदेश यात्रा भी की और आकर जांच में फिर से शामिल हुए। कोर्ट ने ईडी से कहा कि आप ये तर्क नहीं दे सकते कि आरोपी जमानत मिलने के बाद विदेश भाग सकता है। कोर्ट ने कहा कि इस तथ्य को देखते हुए कि मामला अभी भी जारी है। जांच का चरण और आरोपी की प्रभावशाली स्थिति है, इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि आरोपी गवाहों को प्रभावित कर सकता है। रिमांड के समय ईडी द्वारा पेश किए गए मेडिकल परीक्षा के कागजात को छोड़कर कोई चिकित्सा दस्तावेज पेश नहीं किया गया था। इसलिए आरोपी को जमानत नहीं दी जा सकती थी। केवल इस आधार पर कि वह स्लीप एपनिया से पीड़ित था।

केस के तथ्यों-परिस्थितियों, आरोपों की प्रकृति और इस तथ्य के मद्देनजर कि आवेदन इस चरण पर जमानत देने से जुड़े ट्रिपल टेस्ट को पास नहीं करता है, इसीलिए बिना मेरिट वाले आवेदन को ठुकराया जाता है।
अडिशनल सेशन जज (स्पेशल जज) गीतांजलि गोयल

ईडी की जांच जारी
प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के केस के मुताबिक, मामला हवाला के जरिए जुटाए गए पैसों को वैध बनाने के आरोपों से जुड़ा है। इसमें आरोपी मंत्री ने कथित तौर पर अहम भूमिका निभाई और संबंधित कंपनियों के फैसले लेने में वह पूरी प्रभुता के साथ शामिल रहे जिसका दावा राजेंद्र बंसल, जीवेंद्र मिश्रा, जे. पी. मोहता और वैभव जैन के बयानों पर भरोसा जताते हुए किया गया। ईडी ने अदालत में कहा कि पैसों को जिन कंपनियों के जरिए वैध बनाया गया उनका पूरा कंट्रोल आरोपी के हाथ में था, क्योंकि कंपनियां उनके परिवार के सदस्यों और नजदीकी लोगों द्वारा चलाई जा रही थीं।

दोनों पक्षों की दलीलों का आकलन करने के बाद अदालत ने अर्जी पर अपना आदेश सुनाया। स्पेशल जज ने कहा कि यह सही है कि तमाम गवाहों के बयान पहले ही दर्ज किए जा चुके हैं। ईडी ने खुद बहुत समय लिया है, जिस दौरान आरोपी चाहता तो गवाहों को प्रभावित कर सकता था। हालांकि, इस बात को मद्देनजर रखते हुए कि मामले में जांच अभी भी जारी है और आरोपी एक प्रभावशाली स्थिति में है, इसीलिए गवाहों को प्रभावित करने की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता है।

अडिशनल सॉलिसिटर जनरल ने ईडी की ओर से दलील दी कि आरोपी तमाम तरह के कानूनों का उल्लंघन करने में शामिल रहा है और उसकी आपराधिक पृष्ठभूमि रही है। लेकिन बचाव पक्ष की इस दलील में भी दम है कि सारी कार्यवाहियां एक ही तरह के लेन-देन को लेकर विभिन्न कानूनों के तहत शुरू की गई हैं। जैन के स्लीप एपनिया बीमारी से ग्रसित हाने को लेकर बचाव पक्ष के दावे के बारे में अदालत ने कहा कि न तो जमानत अर्जी में ऐसा कोई खास आधार दिया गया और न ही कोई मेडिकल दस्तावेज पेश किया गया जो यह बता सके कि आरोपी की मेडिकल कंडीशन कितनी खराब है। ऐसे में सिर्फ इस आधार पर उन्हें पीएमएलए की धारा 45(1) से जुड़े प्रावधानों के तहत जमानत नहीं दी जा सकती।
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Vineet Tripathi

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