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लोकसभा चुनाव में उम्मीदवारी को नाराजगी नहीं : खेतान

​आम आदमी पार्टी (आप) में इस्तीफे का सिलसिला जारी है। कुछ दिन पहले आशुतोष के इस्तीफे के बाद अब आशीष खेतान ने भी पार्टी से दूरी बना ली है

नवभारत टाइम्स 22 Aug 2018, 7:22 pm
नई दिल्ली
नवभारतटाइम्स.कॉम khetan

आम आदमी पार्टी (आप) में इस्तीफे का सिलसिला जारी है। कुछ दिन पहले आशुतोष के इस्तीफे के बाद अब आशीष खेतान ने भी पार्टी से दूरी बना ली है। खेतान ने कहा कि उन्होंने व्यक्तिगत वजहों से चुनावी राजनीति से दूर होने का फैसला किया। साथ ही इन खबरों का भी खंडन किया कि लोकसभा चुनाव में उम्मीदवारी को लेकर वह नाराज हैं।

खेतान ने अप्रैल में दिल्ली डायलॉग कमिशन से इस्तीफा दिया था और तब से ही वह पार्टी की ऐक्टिव पॉलिटिक्स से दूर हैं। उन्होंने अपने इस्तीफे की खबरों पर रिएक्ट करते हुए ट्वीट किया, 'मैं पूरी तरह अपनी लीगल प्रैक्टिस पर फोकस कर रहा हूं और अभी ऐक्टिव पॉलिटिक्स में शामिल नहीं हूं। मैंने लीगल प्रफेशन जॉइन करने के लिए अप्रैल में डीडीसी से इस्तीफा दिया था। मैं अफवाहों में इंटरेस्टेड नहीं हूं।'

खेतान 2014 में नई दिल्ली सीट से आप के उम्मीदवार थे। उन्होंने फेसबुक पोस्ट लिखकर अपनी नाराजगी की खबरों का खंडन किया है। खेतान ने लिखा कि इस साल की शुरुआत में मैंने ऐक्टिव पॉलिटिक्स छोड़ने का फैसला कर लिया था। क्योंकि पार्टी और सरकार क्राइसिस से गुजर रही थी इसलिए मैंने सही वक्त का इंतजार किया।


उन्होंने कहा कि मैं एक बार से ज्यादा बार पार्टी को अपने फैसले के बारे में बताया भी। खेतान ने लिखा कि मेरे राजनीति से दूर होने के फैसले को किसी भी तरह आप से नाराजगी के तौर पर नहीं देखना चाहिए। मुझे पार्टी से प्यार और सम्मान दोनों मिला है, जिसका मैं हमेशा शुक्रगुजार रहूंगा। उन्होंने लिखा पार्टी ने मुझे बहुत सम्मान से अगला लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए कहा लेकिन मैंने पूरे आदर के साथ मना कर दिया। क्योंकि एक और चुनाव लड़ना मुझे फिर से राजनीति में सक्रिय करता और इस वक्त मैं यह नहीं चाहता।


कुछ दिन पहले ही आशुतोष ने भी पार्टी से इस्तीफा दिया है। वह राज्यसभा सीट के दावेदार थे और सुशील गुप्ता को राज्यसभा भेजने से भी नाराज थे। आप में इस्तीफे के सिलसिले से पार्टी में बगावती तेवर अपनाए नेताओं ने फिर से निशाना साधा है। कुमार विश्वास ने ट्वीट किया ‘सब साथ चले, सब उत्सुक थे, तुमको आसन तक लाने में! कुछ सफल हुए ‘निर्वीर्य’ तुम्हें यह राजनीति समझाने में! इन आत्मप्रवंचित बौनों का दरबार बनाकर क्या पाया? जो शिलालेख बनता उसको अखबार बनाकर क्या पाया?’

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