नई दिल्ली
सर्जिकल स्ट्राइक के बाद राहुल गांधी ने जिस अंदाज में पीएम नरेंद्र मोदी पर खून की दलाली का आरोप लगाकर हमला किया, उसके बाद इस मुद्दे पर जारी सियासत पूरी तरह बदल गई। वह सीधे तौर पर सभी दलों के निशाने पर आ गए। जानकारों के अनुसार, राहुल के इस बयान ने बीजेपी को वह मौका दे दिया जिसके आधार पर अब वह यूपी, पंजाब सहित पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में इसको जोरदार तरीके से उठाएगी।
नहीं मिला किसी का साथ
गुरुवार शाम दिल्ली में अपनी किसान यात्रा समाप्त करने के बाद राहुल ने खून की दलाली वाला बयान दिया और बीजेपी ने तुरंत उनको घेरने की रणनीति बना ली। शुक्रवार को खुद पार्टी अध्यक्ष अमित शाह राहुल को जवाब देने उतरे। राहुल के समर्थन में किसी भी दल का नेता सामने नहीं आया। इतना ही नहीं दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल ने भी उनकी निंदा कर खुद को इस विवाद से बाहर निकालने की कोशिश की।
सारी मेहनत पानी में?
राहुल ने यूपी में 25 दिनों की किसान यात्रा की थी। पार्टी यहां गंभीरता से चुनाव लड़ने की कोशिश कर रही है। उसे उत्तराखंड में सरकार बनाने की चुनौती है। पंजाब और गोवा में सत्ता में वापसी के लिए भी पार्टी संघर्ष कर रही है। ऐसे में राहुल का बयान पार्टी के लिए मुसीबत बन सकता है। पार्टी के रणनीतिकारों के अनुसार, अभी चुनाव में समय है और धारणा को ठीक किया जा सकता है। पार्टी के एक नेता ने माना कि इन दिनों चुनाव में परसेप्शन का बहुत बड़ा रोल होता है और इस तरह का बयान नुकसानदेह हो सकता है।
तब पलट गई थी बाजी
2007 में गुजरात विधानसभा चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने राज्य के तत्कालीन सीएम नरेंद्र मोदी के लिए 'मौत का सौदागर' शब्द का इस्तेमाल किया था। उस चुनाव में कांग्रेस और बीजेपी के बीच कांटे की टक्कर होने की उम्मीद जताई जा रही थी। सोनिया के बयान के बाद मोदी के काउंटर अटैक ने पूरी चुनावी की रंगत बदल दी और वह लगातार दूसरी बार बड़ी जीत पाने में सफल रहे। जानकारों के अनुसार, राहुल ने तकरीबन वही गलती दोहराई है। यह उनके पक्ष में कतई नहीं जा सकता है। इसी तरह दिल्ली विधानसभा चुनाव से ठीक पहले पीएम मोदी ने एक रैली में अरविंद केजरीवाल को इशारों में नक्सली कहा था, जिसका चुनावी लाभ केजरीवाल ने उठाया। दरअसल, जिनके खिलाफ तीखे और आपत्तिजनक बयान आते हैं, पांरपरिक तौर पर अंत में उन्हें ही जनता के बीच अधिक समर्थन मिलता रहा है।
क्षेत्रीय नेताओं ने दिखाया संयम
अगर कांग्रेस और आम आदमी पार्टी (आप) को छोड़ दें तो क्षेत्रीय दलों के बड़े नेताओं ने सर्जिकल ऑपरेशन पर बहुत संयमित रुख अपनाया। इस मामले में अधिकतर नेताओं ने सरकार का साथ दिया और राजनीतिक बयानबाजी से परहेज किया। राहुल के इस बयान की कांग्रेस की सहयोगी पार्टी जेडीयू और आरजेडी ने भी आलोचना की। कांग्रेस के अंदर सबसे बड़ा संकट यही है कि ऐसे आत्मघाती गोल से वह बीजेपी तो दूर अपने सहयोगियों और दूसरी क्षेत्रीय ताकतों के बीच अलग-थलग पड़ जाती है।
सर्जिकल स्ट्राइक के बाद राहुल गांधी ने जिस अंदाज में पीएम नरेंद्र मोदी पर खून की दलाली का आरोप लगाकर हमला किया, उसके बाद इस मुद्दे पर जारी सियासत पूरी तरह बदल गई। वह सीधे तौर पर सभी दलों के निशाने पर आ गए। जानकारों के अनुसार, राहुल के इस बयान ने बीजेपी को वह मौका दे दिया जिसके आधार पर अब वह यूपी, पंजाब सहित पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में इसको जोरदार तरीके से उठाएगी।
नहीं मिला किसी का साथ
गुरुवार शाम दिल्ली में अपनी किसान यात्रा समाप्त करने के बाद राहुल ने खून की दलाली वाला बयान दिया और बीजेपी ने तुरंत उनको घेरने की रणनीति बना ली। शुक्रवार को खुद पार्टी अध्यक्ष अमित शाह राहुल को जवाब देने उतरे। राहुल के समर्थन में किसी भी दल का नेता सामने नहीं आया। इतना ही नहीं दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल ने भी उनकी निंदा कर खुद को इस विवाद से बाहर निकालने की कोशिश की।
सारी मेहनत पानी में?
राहुल ने यूपी में 25 दिनों की किसान यात्रा की थी। पार्टी यहां गंभीरता से चुनाव लड़ने की कोशिश कर रही है। उसे उत्तराखंड में सरकार बनाने की चुनौती है। पंजाब और गोवा में सत्ता में वापसी के लिए भी पार्टी संघर्ष कर रही है। ऐसे में राहुल का बयान पार्टी के लिए मुसीबत बन सकता है। पार्टी के रणनीतिकारों के अनुसार, अभी चुनाव में समय है और धारणा को ठीक किया जा सकता है। पार्टी के एक नेता ने माना कि इन दिनों चुनाव में परसेप्शन का बहुत बड़ा रोल होता है और इस तरह का बयान नुकसानदेह हो सकता है।
तब पलट गई थी बाजी
2007 में गुजरात विधानसभा चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने राज्य के तत्कालीन सीएम नरेंद्र मोदी के लिए 'मौत का सौदागर' शब्द का इस्तेमाल किया था। उस चुनाव में कांग्रेस और बीजेपी के बीच कांटे की टक्कर होने की उम्मीद जताई जा रही थी। सोनिया के बयान के बाद मोदी के काउंटर अटैक ने पूरी चुनावी की रंगत बदल दी और वह लगातार दूसरी बार बड़ी जीत पाने में सफल रहे। जानकारों के अनुसार, राहुल ने तकरीबन वही गलती दोहराई है। यह उनके पक्ष में कतई नहीं जा सकता है। इसी तरह दिल्ली विधानसभा चुनाव से ठीक पहले पीएम मोदी ने एक रैली में अरविंद केजरीवाल को इशारों में नक्सली कहा था, जिसका चुनावी लाभ केजरीवाल ने उठाया। दरअसल, जिनके खिलाफ तीखे और आपत्तिजनक बयान आते हैं, पांरपरिक तौर पर अंत में उन्हें ही जनता के बीच अधिक समर्थन मिलता रहा है।
क्षेत्रीय नेताओं ने दिखाया संयम
अगर कांग्रेस और आम आदमी पार्टी (आप) को छोड़ दें तो क्षेत्रीय दलों के बड़े नेताओं ने सर्जिकल ऑपरेशन पर बहुत संयमित रुख अपनाया। इस मामले में अधिकतर नेताओं ने सरकार का साथ दिया और राजनीतिक बयानबाजी से परहेज किया। राहुल के इस बयान की कांग्रेस की सहयोगी पार्टी जेडीयू और आरजेडी ने भी आलोचना की। कांग्रेस के अंदर सबसे बड़ा संकट यही है कि ऐसे आत्मघाती गोल से वह बीजेपी तो दूर अपने सहयोगियों और दूसरी क्षेत्रीय ताकतों के बीच अलग-थलग पड़ जाती है।